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धर्म पर उद्धरण

धारयति इति धर्म:—यानी

जिसने सब कुछ धारण कर रखा है, वह धर्म है। इन धारण की जाती चीज़ों में सत्य, धृति, क्षमा, अस्तेय, शुचिता, धी, इंद्रिय निग्रह जैसे सभी लक्षण सन्निहित हैं। धर्म का प्रचलित अर्थ ‘रिलीज़न’ या मज़हब भी है। प्रस्तुत चयन में धर्म के अवलंब पर अभिव्यक्त रचनाओं का संकलन किया गया है।

धर्म का मुख्य स्तंभ भय है।

प्रेमचंद
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जो धर्म हमारी आत्मा का बंधन हो जाए, उससे जितनी जल्दी हम अपना गला छुड़ा लें उतना ही अच्छा है।

प्रेमचंद

धर्म ईश्वरीय कोप है, दैवीय वज्र है, जो मानव जाति के सर्वनाश के लिए अवतरित हुआ है।

प्रेमचंद

मज़हब रूहाना तस्कीन और निजात का ज़रिया है, कि दुनिया के कमाने का ढकोसला।

प्रेमचंद

अहिंसा परम श्रेष्ठ मानव-धर्म है, पशुबल से वह अन्नत गुना महान् और उच्च है।

मोहनदास करमचंद गांधी

ईसाइयत हमारे लिए अँग्रेज़ियत का ही पर्याय रही है।

श्री नरेश मेहता

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