
शांति को चाहो। लेकिन ध्यान रहे कि उसे तुम अपने ही भीतर नहीं पाते हो, तो कहीं भी नहीं पा सकोगे। शांति कोई बाह्य वस्तु नहीं है।

स्मरण रहे कि महत्वाकांक्षा अशांति का मूल है। जिसे शांति चाहनी है, उसे महत्वकांक्षा छोड़ देनी पड़ती है। शांति का प्रारंभ वहाँ से है, जहाँ कि महत्वाकांक्षा का अंत होता है।
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स्पष्ट और शांत उसकी आवाज़ श्रोताओं के ऊपर तैरती रही, जैसे एक प्रकाश, जैसे एक तारा भरा आकाश।

लेखन कितना शांत है, छपना उतना ही शोर-शराबे वाला।

जीवन में आप जो सबसे अच्छा सबक़ सीख सकते हैं, वह है शांत रहने में महारत हासिल करना। शांति एक महाशक्ति है।

आपके भीतर एक शांति और आश्रय है जहाँ आप किसी भी समय वापस जा सकते हैं और स्वयं बन सकते हैं।

धर्म पालन करते हुए मन को जो शांति रहनी चाहिए, वह न रहे ; तो यह माना जा सकता है कि कहीं न कहीं हमारी भूल हुई होगी।

यदि एक पुरुष को मार देने से कुटुंब के शेष व्यक्तियों का कष्ट दूर हो जाए और एक कुटुंब का नाश कर देने से सारे राष्ट्र में शांति छा जाए तो वैसा करना सदाचार का नाशक नहीं है।

भीड़ की सतही कार्यवाहियों की अपेक्षा, कला और साहित्य राष्ट्र की आत्मा को महान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। वे हमें शांति और निरभ्र विचार के राज्य में ले जाते हैं, जो क्षणिक भावनाओं और पूर्वाग्रह से प्रभावित नहीं होते।

जो परस्पर भेद-भाव रखते हैं, वे कभी धर्म का आचरण नहीं करते। वे सुख भी नहीं पाते। उन्हें गौरव नहीं प्राप्त होता तथा उन्हें शांति की वार्ता भी नहीं सुहाती।

जीवन अविकल कर्म है, न बुझने वाली पिपासा है। जीवन हलचल है, परिवर्तन है; और हलचल तथा परिवर्तन में सुख और शांति का कोई स्थान नहीं।

वस्त्र उतारने के काल में ही तीर्थ जल से शीतजन्य त्रास होता है, स्नान कर लेने पर अनुपम ब्रह्मानंद सदृश आह्नदसुख की उपलब्धि होती है। इसी प्रकार प्रारंभ में रणभूमि में शरीर का त्याग करने वालों को विह्वलता होती है किंतु उसके पश्चात् तो मोक्ष-सुख की प्राप्ति से परम शांति मिलती है।

हे सौम्य, जब तक घातक काल समीप नहीं आता, तब तक बुद्धि को शांति में लगाओ क्योंकि मृत्यु इस संसार में सब अवस्थाओं में रहने वाले की सब प्रकार से हत्या करती है।

यह संगीत ही है जो दिल का विस्तार करता है और श्रोता को परमानंद और भय से शांत कर देता है।

चेतना जब आत्मा में ही विश्रांति पा जाए, वही पूर्ण अहंभाव है।

शांत कमरा इतना शांतिपूर्ण और आरामदायक था कि उसमें चिंता नहीं की जा सकती थी।

भारतीय जीवन धीरे-धीरे जीने का जीवन है। उसमें उद्वेग और आवेग नहीं, संतोष और शांति ही उसके मूल आधार हैं।

जहाँ-कहाँ भी जो कुछ खाकर, जैसा तैसा वस्त्र पहन कर, जहाँ-कहाँ भी रहकर, जो आत्मतुष्ट रहता है, निर्जन स्थान में रहता है, और दूसरों के संसर्ग को ऐसे त्यागता है, जैसे काँटे को, वह बुद्धिमान शांति-सुख के रस को जानता है और वही ज्ञानी है।

जो पुरुष निश्चय ही अंतरात्मा में ही सुख वाला है, अंतरात्मा में ही शांति वाला है तथा जो अंतरात्मा ज्ञान वाला है, वह योगी स्वयं ब्रह्मरूप होकर ब्रह्म की शांति प्राप्त करता है।

युद्ध इसी मेज़ पर शुरू हुए हैं और समाप्त भी । यह आतंक की परछाईं से छिपने की सटीक जगह है। एक भयावह जीत का जश्न मनाने की जगह भी।

जितेंद्रिय, तत्पर और श्रद्धावान पुरुष ज्ञान को प्राप्त करता है। ज्ञान प्राप्त हो जाने से शीघ्र ही उसको परम शांति प्राप्त हो जाती है।

शरद ऋतु की पहली ठंडी रातों की शांति जैसी कोई शांति नहीं है।

हे पृथ्वी! तुम आज की नहीं, जन्म से ही चिरंतन सुंदरी हो! तुम मेरी अनन्त शांति की विश्रामस्थली और अतीत की स्वप्नलीला-भूमि हो।

ओ मेरे स्नेही देश! तुम्हारी दुखी कुटिया में स्वर्ग की शांति है। ऐसी प्रीति, सहज प्राणस्पर्शी भाषा और सेवा का महिमामय त्याग, मैं कहाँ पाऊँगी?

युद्ध की जिम्मेवारी केवल उन्हीं लोगों पर नहीं होती, जो उसकी घोषणा करते हैं। उसकी जिम्मेवारी उन लोगों पर भी होती है, जो समय पर उसे रोकने का प्रयास नहीं करते।

मृत्यु का शोक जैसा बड़ा है उसकी शांति और माधुर्य भी वैसे ही बड़े हैं।


जब भी आपको ग़ुस्सा आए, तो उसे शांति से गुजरने दें। ग़ुस्सा शांत होने दें। जब आपका ग़ुस्सा शांत हो जाए, तो सोचें और लिखें कि कौन सी भावना ने इस ग़ुस्से को जन्म दिया।

प्रेम, लज्जा, सद्योग, दयार्द्रता तथा सत्य वचन—ये पाँच शांति के स्तम्भ हैं।

देखो कि ईसाई कितनी शांतिपूर्वक मर सकता है।

कभी भी अच्छा युद्ध या बुरी शांति नाम की वस्तु नहीं

तुम्हारा 'यदि' एकमात्र शांति-निर्माता है; 'यदि' में बहुत गुण हैं।

ख़ेद है कि न तो मेरे पास आशा है, न स्वास्थ्य, न आंतरिक शांति, न बाह्य शांति और न ही सब धनों से श्रेष्ठ संतोष, जो कि संत ध्यान में पा लेता है और आंतरिक गौरव का मुकुट धारे भ्रमण करता है।

शांति ईमानदारी से नहीं मिलती, या मिलती है तो हर एक को नहीं।

शांति के लिए ‘स्वाहा’ उच्चारण के साथ दी गई एक आहुति संपूर्ण सृष्टि के लिए कितनी मांगलिक होती है, इसे कभी मानवेतर सृष्टि में पैठ कर कोई देखे, तभी समझा जा सकता है।
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