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अहंकार पर उद्धरण

यहाँ प्रस्तुत चयन में

अहंकार विषयक कविताओं को संकलित किया गया है। रूढ़ अर्थ में यह स्वयं को अन्य से अधिक योग्य और समर्थ समझने का भाव है जो व्यक्ति का नकारात्मक गुण माना जाता है। वेदांत में इसे अंतःकरण की पाँच वृत्तियों में से एक माना गया है और सांख्य दर्शन में यह महत्त्व से उत्पन्न एक द्रव्य है। योगशास्त्र इसे अस्मिता के रूप में देखता है।

पाप के समय भी मनुष्य का ध्यान इज़्ज़त की तरफ़ रहता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

वह ज़ेहन किस काम का, जो हमारे गौरव की हत्या कर डाले!

प्रेमचंद

आहतों का भी अपना एक अहंकार होता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता, उसे ले लेने की स्पर्द्धा से बढ़कर दूसरा दंभ नहीं।

जयशंकर प्रसाद

केवल महत्ता का प्रदर्शन, मन पर अनुचित प्रभाव का बोझ है।

जयशंकर प्रसाद

अहं से आज़ादी आसान तो नहीं, लेकिन बतौर आदर्श यह ज़रूरी है।

कृष्ण बलदेव वैद

अपने अहं को मार देने और अपने आत्मसम्मान को मार देने में फ़र्क़ है।

कृष्ण बलदेव वैद

अभिमानी व्यक्ति स्वयं को ही खा जाता है।

शेक्सपियर

गर्व का पतन निश्चित है।

शेक्सपियर

छोटेपन में अहंकार का दर्प इतना प्रचंड होता है कि वह अपने को ही खंडित करता रहता है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

जो हम करते हैं वह दूसरे भी कर सकते हैं—ऐसा मानें। मानें तो हम अहंकारी ठहरेंगे।

मोहनदास करमचंद गांधी

अपने अहँकार को भेद्य बनाओ। इच्छा, बहुत महत्त्व की वस्तु नहीं, शिकायतें किसी काम की नहीं, शोहरत कुछ भी नहीं है। निर्मलता, धैर्य, ग्रहणशीलता और एकाँत ही सब कुछ है।

रेनर मारिया रिल्के

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