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अहंकार पर उद्धरण

यहाँ प्रस्तुत चयन में

अहंकार विषयक कविताओं को संकलित किया गया है। रूढ़ अर्थ में यह स्वयं को अन्य से अधिक योग्य और समर्थ समझने का भाव है जो व्यक्ति का नकारात्मक गुण माना जाता है। वेदांत में इसे अंतःकरण की पाँच वृत्तियों में से एक माना गया है और सांख्य दर्शन में यह महत्त्व से उत्पन्न एक द्रव्य है। योगशास्त्र इसे अस्मिता के रूप में देखता है।

पाप के समय भी मनुष्य का ध्यान इज़्ज़त की तरफ़ रहता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

पुरुष को स्त्री को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उसने उसे परम रहस्य कहकर पुरस्कृत किया; लेकिन वास्तव में घमंड के बहाने उसके अधिकार की उपेक्षा की गई।

रघुवीर चौधरी

अभिमानी व्यक्ति की शान और उसके अपयश के बीच केवल एक पग की दूरी है।

पब्लिलियस साइरस

अद्वैत सिद्धांत ही हमारे लिए माँ का दूध है। जन्म से ही हम द्वेष, भेदबुद्धि और अहं से रहित हैं।

वल्लथोल नारायण मेनन

अगर स्त्री का मुद्दा इतना बेतुका है, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि पुरुष के अहंकार ने इसे चर्चा का विषय बना लिया है।

सिमोन द बोउवार

हर अहंकार, एकता से बहुत दूर, उच्चतम स्तर पर एक बहु-विविधता वाला संसार है।

हरमन हेस

जब आप अहंकार के साथ चढ़ावा चढ़ाते हैं तो आप और आपका चढ़ावा दोनों ही पतित हो जाते हैं।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

आहतों का भी अपना एक अहंकार होता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

किसी ख़ाली कुप्पी का अहंकार से फूली कुप्पी जैसा दिखने की मजबूरी शर्मनाक है।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

जिसके चित्त में ‘नहीं’ है, वह समग्र से एक नहीं हो पाता है। सर्व के प्रति ‘हाँ’ अनुभव करना जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है क्योंकि वह ‘स्व’ को मिटाती है और ‘स्वयं’ से मिलाती है।

ओशो

सत्य की आकांक्षा है तो स्वयं को छोड़ दो।

ओशो

कुल, धन, ज्ञान, रूप, पराक्रम, दान और तप- ये सात मुख्य रूप से मनुष्यों के अभिमान के हेतु हैं।

क्षेमेंद्र

महाराज! यह कर्म यदि अभिमानपूर्वक किया जाए तो सफल नहीं होता। त्यागपूर्वक किया हुआ कर्म महान फलदायक होता है।

वेदव्यास

हम दुर्बल मनुष्य राग-द्वेष से ऊपर रहकर कर्म करना नहीं जानते, अपने अभिमान के आगे जाति के अभिमान को तुच्छ समझ बैठते हैं।

हरिकृष्ण प्रेमी

वे सब, जिन्हें समाज घृणा की दृष्टि से देखता है, अपनी शक्तियों को एकत्र करें तो इन महाप्रभुओं और उच्च वंशाभिमानियों का अभिमान चूर कर सकते हैं।

हरिकृष्ण प्रेमी

हे राजन्! जिसके हाथ, पैर और मन अपने वश में हों तथा जो विद्वान् तपस्वी और यशस्वी हो, वही तीर्थसेवन का फल पाता है। जो प्रतिग्रह से दूर हो, जो अपने पास जो कुछ है उसी से संतुष्ट रहे और जो अहंकार रहित हो, वही तीर्थं का फल पाता है। जो दंभ आदि दोषों से रहित हो, कर्तृत्व के अहंकार से रहित हो, अल्पाहारी हो और जितेंद्रिय हो, वह सब पापों से मुक्त होकर तीर्थ का फल पाता है। जिसमें क्रोध हो, जो सत्यवादी और दृढ़व्रती हो तथा जो सब प्राणियों के प्रति आत्मभाव रखता हो, वही तीर्थ का फल पाता है।

वेदव्यास

‘मैं’ को भूल जाना और ‘मैं’ से ऊपर उठ जाना सबसे बड़ी कला है।

ओशो

मैं जन्म लेता हूँ, बड़ा होता हूँ, नष्ट होता हूँ। प्रकृति से उत्पन्न सभी धर्म देह के कहे जाते हैं। कर्तृत्व आदि अहंकार के होते हैं। चिन्मय आत्मा के नहीं। मैं स्वयं शिव हूँ।

आदि शंकराचार्य

अहंकार एकमात्र जटिलता है। जिन्हें सरल होना है, उन्हें इस सत्य को अनुभव करना होगा।

ओशो

गर्व का पतन निश्चित है।

विलियम शेक्सपियर

यह दुनिया एक है। अनेकों ऐसी-ऐसी असंख्य दुनियाओं में से एक है। मैं उस पर का एक नगण्य बिंदु हूँ। फिर अहंकार कैसा!

जैनेंद्र कुमार

वह ज़ेहन किस काम का, जो हमारे गौरव की हत्या कर डाले!

प्रेमचंद

कुछ पाने की और कुछ होने की आकांक्षा ही दु:ख है। दु:ख कोई नहीं चाहता, लेकिन आकांक्षाएँ हों तो दु:ख बना ही रहेगा।

ओशो

पुरुष, प्रकृति, बुद्धि, पाँच विषय, दस इंद्रियों, अहंकार, अभिमान और पंच महाभूत इन पच्चीस तत्त्वों का समूह ही 'प्राणी', नाम से कहा जाता है।

वेदव्यास

दुर्बलतम शरीरों में अहंकार प्रबलतम होता है।

विलियम शेक्सपियर

जागृति का जो विस्मरण है वही स्वप्नसृष्टि का विस्तार है। वस्तु से विमुख जो अहंकार है वही त्रिगुणात्मक संसार है।

संत एकनाथ

खान-पान के अतिरेक से किसी उद्देश्य को नहीं पाएगा और निराहार बनकर अहंकारी बन जाएगा। भोजन युक्त हो (न कम, अधिक) उसी से समरसता रहेगी। समरसतायुक्त आहार-विहार से ही बंद द्वार खुल जाएँगे।

लल्लेश्वरी

इंसान घमंडी बनकर ईश्वर की सहायता नहीं माँग सकता, अपनी दीनता स्वीकार करके ही मांग सकता है।

महात्मा गांधी

गया जाने से बात समाप्त नहीं होती, वहाँ जाकर चाहे तू कितना ही पिंडदान दे। बात तो तभी समाप्त होगी, जब तू खड़े-खड़े इस 'मैं' को लुटा दे।

बुल्ले शाह

चेतना जब आत्मा में ही विश्रांति पा जाए, वही पूर्ण अहंभाव है।

जयशंकर प्रसाद

अभिमान एक व्यक्तिगत गुण है, उसे समाज के भिन्न-भिन्न व्यवसायों के साथ जोड़ना ठीक नहीं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

द्वेष से किसमें दोष नहीं जाता? प्रेम से किसकी उन्नति नहीं होती? अभिमान से किसका पतन नहीं हो सकता? नम्रता से किसकी उन्नति नहीं हो सकती?

क्षेमेंद्र

आत्मस्वरूप को भूलकर जो अहंभाव उठता है वही अहंकार है, जो विकार से त्रिगुण को क्षुब्ध करता है।

संत एकनाथ

अभिमानी व्यक्ति स्वयं को ही खा जाता है।

विलियम शेक्सपियर

आडंबर से पूजा करने पर मन में अहंकार पैदा होता है। धातु, पत्थर, मिट्टी की मूरत से तुझे क्या काम? तू छिपकर पूजा कर कि किसी को कानों-कान ख़बर हो और मनोमय प्रतिमा बनाकर हृदय के पद्मासन में स्थापित कर।

रामप्रसाद सेन

आहतों का भी अपना एक अहंकार होता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अहंता और ममता के नाश से सर्वथा अहम्-विहीन होने पर जब जीव स्वरूपस्थ हो जाता है तो उसे कृतार्थ कहा जाता है।

वल्लभाचार्य

यश तो अहं की तृप्ति है।

रांगेय राघव

यदि अहं भाव करता हूँ तो हे ईश्वर! तू प्राप्त नहीं होता और यदि तू प्राप्त हो जाता है तो अहं-भाव नहीं रह पाता।

गुरु नानक

युद्ध अहंकार की संतान है और अहंकार धन-संपत्ति की पुत्री है।

जोनाथन स्विफ़्ट

प्रभु के द्वार पर हमारे ‘मैं’का ताला है। जो उसे तोड़ देते है, वे पाते हैं कि द्वार तो सदा से ही खुले थे।

ओशो

मनुष्य का अहंकार ऐसा है कि प्रासादों का भिखारी कुटी का अतिथिदेवता बनना भी स्वीकार नहीं करेगा।

महादेवी वर्मा

‘मैं’ से बड़ा और कोई असत्य नहीं। उसे छोड़ना ही संन्यास है। संसार नहीं, ‘मैं’ छोड़ना है क्योंकि वस्तुतः मैं-भाव ही संसार है।

ओशो

अच्छा गृहस्थ, भला सामाजिक मनुष्य, भला देशभक्त होने के लिए शुरू में ही अहं को त्यागना होगा। अहं को त्यागने से ही अहं का विस्तार होता है।

बिमल मित्र

जो हम करते हैं वह दूसरे भी कर सकते हैं—ऐसा मानें। मानें तो हम अहंकारी ठहरेंगे।

महात्मा गांधी

जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता, उसे ले लेने की स्पर्द्धा से बढ़कर दूसरा दंभ नहीं।

जयशंकर प्रसाद

हम भी दान देते हैं, कर्म करते हैं। लेकिन जानते हो क्यों? केवल अपने बराबर वालों को नीचा दिखाने के लिए। हमारा दान और धर्म कोरा अहंकार है, विशुद्ध अहंकार।

प्रेमचंद

मन, बुद्धि और अहंकार का लय प्रलय है।

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

जब मैं शुद्ध ज्ञान को खोजने चला तब देखा कि ज्ञान की पीठ पर अहंकार का भूत सवार रहता है।

संत तुकाराम

छोटेपन में अहंकार का दर्प इतना प्रचंड होता है कि वह अपने को ही खंडित करता रहता है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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