
अंतःकरण हम सबको कायर बना देता है।

जब ताक़तवर लोग इतने कमज़ोर थे कि वे कमज़ोर को नुक़सान नहीं पहुँचा सकते थे, तब कमज़ोर व्यक्तियों को इतना मज़बूत होना चाहिए था कि वे चले जाते।

अंतःकरण तो कायरों द्वारा प्रयुक्त शब्दमात्र है, सर्व-प्रथम इसकी रचना शक्तिशालियों को भयभीत रखने के लिए हुई थी।

जब ताक़तवर लोग इतने कमज़ोर थे कि वे कमज़ोर को नुक़सान नहीं पहुँचा सकते थे, तब कमज़ोर व्यक्तियों को इतना मज़बूत होना चाहिए था कि वे चले जाते।

मैं चाहता हूँ कि तुम उतने कमज़ोर हो जाओ जितना कमज़ोर मैं हूँ।

हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो। यह तेरे योग्य नहीं है। हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़ा हो।

हे संजय! ज्ञान का विधान भी कर्म को साथ लेकर ही है, अतः ज्ञान में भी कर्म विद्यमान है। जो कर्म के स्थान पर कर्मों के त्याग को श्रेष्ठ मानता है, वह दुर्बल है, उसका कथन व्यर्थ ही है।

हम दुर्बल मनुष्य राग-द्वेष से ऊपर रहकर कर्म करना नहीं जानते, अपने अभिमान के आगे जाति के अभिमान को तुच्छ समझ बैठते हैं।

दुर्बलतम शरीरों में अहंकार प्रबलतम होता है।

औरों की कमज़ोरियों की तरफ़ न देखें, औरों की नुक्ता-चीनी न करें—अपनी तरफ़ देखें। अगर हर एक आदमी अपना-अपना कर्तव्य करता है, अपना-अपना फ़र्ज़ अदा करता है, तो दुनिया का काम बहुत आगे जाएगा।

जो महापुरुष यह देखता है कि प्रत्येक व्यक्ति में, चाहे वह कितना ही ग़रीब या जंगली क्यों न हो—सर्वोच्च नैतिक विकास की क्षमता है, वही महापुरुष समाज का उद्धारक होता है। वह मानव स्वभाव के सार को जानता है। वह उन लोगों में शक्ति भर देता है जो प्रत्यक्षतः कमज़ोर हैं। वह पृथ्वी के कूड़ा करकट से वीर उत्पन्न कर देता है।

अत्याचार सदा ही दुर्बलता है।
