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जनता पर उद्धरण

महाकवि विद्यापति मध्यकाल के पहले ऐसे कवि हैं, जिनकी पदावली में जन-भाषा में जनसंस्कृति की अभिव्यक्ति हुई है।

मैनेजर पांडेय

जो लोग 'जनता का साहित्य' से यह मतलब लेते हैं कि वह साहित्य जनता के तुरंत समझ में आए, जनता उसका मर्म पा सके, यही उसकी पहली कसौटी है—वे लोग यह भूल जाते हैं कि जनता को पहले सुशिक्षित और सुसंस्कृत करना है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

आज की दुनिया में जिस हद तक शोषण बढ़ा हुआ है; जिस हद तक भूख और प्यास बढ़ी हुई है, उसी हद तक मुक्ति-संघर्ष भी बढ़ा हुआ है और उसी हद तक बुद्धि तथा हृदय की भूख-प्यास भी बढ़ी हुई है। आज के युग में साहित्य का यह कार्य है कि वह जनता के बुद्धि तथा हृदय की इस भूख-प्यास का चित्रण करे और उसे मुक्तिपथ पर अग्रसर करने के लिए ऐसी कला का विकास करे, जिससे जनता प्रेरणा प्राप्त कर सके और जो स्वयं जनता से प्रेरणा ले सके।

गजानन माधव मुक्तिबोध

‘जनता का साहित्य’ का अर्थ, जनता को तुरंत ही समझ में आनेवाले साहित्य से हरगिज़ नहीं है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

प्रारंभिक श्रेणी के लिए उपयुक्त साहित्य तो साहित्य है और सर्वोच्च श्रेणी के लिए उपयुक्त साहित्य, जनता का साहित्य नहीं है—यह कहना जनता से गद्दारी करना है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

लोकतांत्रिक चुनावों का सारा मक़सद; बड़ी-बड़ी समस्याओं पर मतदाताओं के विचार को समझना, और मतदाताओं को उनके प्रतिनिधियों को चुनने की ताक़त प्रदान करना है।

जवाहरलाल नेहरू

हर राष्ट्र के लिए और हर व्यक्ति के लिए जिसको बढ़ना है, काम-काज और सोच-विचार के उन सँकरे घेरों को—जिनमें ज़्यादातर लोग बहुत अरसे से रहते आए हैं—छोड़ना होगा और समन्वय पर ख़ास ध्यान देना होगा।

जवाहरलाल नेहरू

किसी किसी तरह की तपस्या का ख़याल; हिंदुस्तानी विचारधारा का एक अंग है और ऐसा ख़याल सिर्फ़ चोटी के विचारकों के यहाँ है, बल्कि साधारण अनपढ़ जनता में फैला हुआ है।

जवाहरलाल नेहरू

भक्ति आंदोलन, जनसंस्कृति के अपूर्व उत्कर्ष का अखिल भारतीय आंदोलन है। ऐसे आंदोलन में अनेक स्वरों का समावेश कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

मैनेजर पांडेय

जनता अच्छी तरह जानती है कि नेता भावनाओं के व्यापारी होते हैं, फिर भी उनकी बातों में जाती है।

कृष्ण कुमार

संसद को संविधान का दुश्मन मानकर आप संविधान की रक्षा कैसे कर सकते हैं? जनता को जनतंत्र का दुश्मन मान लिया जाए, तो फिर जनतंत्र की रक्षा कैसे होगी?

राजेंद्र माथुर

गांधी ने भारत की प्रेतभाषा को पढ़ा और प्रेतों से वार्तालाप करके उन्हें मनुष्य जैसा बर्ताव करना सिखाया। लेकिन प्रेतों को याद ही नहीं कि गांधी उनसे मिला था। वे मंत्र के इशारे पर नाचते हैं, लेकिन उच्चार बंद होते ही उन्हें याद नहीं रहता कि मंत्र था।

राजेंद्र माथुर

जनता शिक्षित हो या अशिक्षित—स्मृति सबकी बराबर होती है।

कृष्ण कुमार

जो पंच कहता है वह परमेश्वर की आवाज़ होती है, ऐसा कहते हैं। जो जगत है वह पंच के समान है। इसलिए जो जगत कहता है, वही सही तरीक़े से ईश्वर का न्याय है।

महात्मा गांधी

चाहिए यह कि लीडर तो जनता की नस-नस की बात जानता हो, पर लीडर के बारे में कुछ भी जानता हो।

श्रीलाल शुक्ल

भक्ति-आंदोलन व्यापक सांस्कृतिक आंदोलन है; जिसकी अभिव्यक्ति दर्शन, धर्म, कला, साहित्य, भाषा और संस्कृति के दूसरे रूपों में दिखाई देती है।

मैनेजर पांडेय

जनता के दोष छिपाकर उसका बचाव करना अथवा दोष दूर किए बिना अधिकार प्राप्त करना—मुझे हमेशा अरूचिकर लगा है।

महात्मा गांधी

इतिहास के पाठ को ठीक से जाँचकर समझना कठिन होता है। सभी देशों के इतिहास में देखा जाता है कि जब कोई बड़ी घटना सामने आती है; तो उसके पहले लोगों पर किसी प्रबल आघात का प्रभाव पड़ चुका होता है, और लोगों के मन आंदोलित हो चुके होते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर

राजा प्रजा का सबसे आला दर्जे का सेवक होता है।

महात्मा गांधी

आज़ाद हिंदुस्तान में सारे देश पर जनता का अधिकार है।

महात्मा गांधी

हे निशाचर! जो लोक-विरोधी कठोर कर्म करने वाला है, उसे सब लोग सामने आए हुए दुष्ट सर्प की भाँति मारते हैं।

वाल्मीकि

जय बोलने के मामले में हिंदुस्तानी का भला कोई मुक़ाबला कर सकता है।

श्रीलाल शुक्ल

क्रांति आम जनता और व्यक्ति से शक्ति के संचय तथा संधान की माँग करती है।

व्लादिमीर लेनिन

यदि लाखों साधु जनता के सेवक बन जाएँ तो देश के रचनात्मक निर्माण के लिए इतनी बड़ी फौज सहज ही तैयार हो सकती है।

महात्मा गांधी

राष्ट्रीय समाकलन का सरलतम उपाय है, अंतरावलंबन के ऐसे रूपों का विकास—जिसमें अलग-अलग समूहों का काम एक-दूसरे के बिना चल सके।

श्यामाचरण दुबे

गोस्वामी जी पूरे लोकदर्शी थे। लोक-धर्म पर आघात करने वाली जिन बातों का प्रचार उनके समय में दिखाई पड़ा, उनकी सूक्ष्म दृष्टि उन पर पूर्ण रूप में पड़ी।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

जितना समय और पैसा पार्लियामेन्ट खर्च करती है, उतना समय और पैसा अगर अच्छे लोगों को मिले तो प्रजा का उद्धार हो जाए।

महात्मा गांधी

जमहूरियत में अगर लोगों को मध्य हकूमत की रस्सी में बाँधा जाए तो टूट पड़ेंगे। वे एतबार करने से ही बढ़ सकते हैं।

महात्मा गांधी

जनसाधारण का मंगल बहुत-सी बातों के समन्वय से ही होता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

मूर्खता, दुर्बलता, पक्षपात, ग़लत धारणा, ठीक धारणा, हठधर्मिता और समाचारपत्रों के अंशों के मिले-जुले रूप का नाम जनमत है।

रॉबर्ट पील

साहित्य-क्षेत्र में सामान्य जनता तभी सक्रिय हो उठती है, जब उसमें कोई व्यापक सांस्कृतिक आंदोलन चल रहा हो। ऐसा आंदोलन, जो उसके आत्म-गौरव और आत्मगरिमा को स्थापित और पुनस्थापित कर रहा हो।

गजानन माधव मुक्तिबोध

लोकतंत्र इसी पर टिका है कि लोग देश के मुद्दों पर सक्रिय होकर और अक़्लमंदी से जुड़ाव रखें, और चुनावों में हिस्सा लें—जिसका परिणाम सरकारों के गठन के रूप में सामने आता है।

जवाहरलाल नेहरू

सामंतवाद के विघटन और जनसंस्कृति के उत्थान की प्रक्रिया से उपजे भक्तिकाव्य में सामंतवाद विरोधी स्वर का मुखर होना स्वाभाविक है।

मैनेजर पांडेय

दुर्भिक्ष में जब दल के दल आदमी मर रहे हों तब कोई उसे प्रहसन का विषय नहीं समझता, लेकिन हम सहज ही कल्पना कर सकते हैं कि यह एक मसख़रे-शैतान के लिए बड़े कौतुक का दृश्य है।

रवींद्रनाथ टैगोर

समाज में सदा ही शक्तिमान लोग नहीं होते लेकिन देश की शक्ति अलग-अलग स्थानों पर जमा ऐसे लोगों की प्रतिक्षा करती है।

रवींद्रनाथ टैगोर

‘जनता शांति चाहती है’, ‘हमारी सभ्यता की नींव विश्वबंधुत्व और प्रेम पर पड़नी चाहिए’ आदि-आदि किताबी बातें सुनकर कमीना-से-कमीना देश भी सिर हिलाकर ‘हाँ’ करने से बाज़ नहीं आता और उस राजनीतिज्ञ का यह भ्रम और भी फूल जाता है कि उसने कितनी सच्ची बात कही है।

श्रीलाल शुक्ल

तुम्हें खाने-पीने पहनने-ओढ़ने का कष्ट तभी तक है जब तक कि जनता हो और अगर तुम इन कष्टों से छुटकारा चाहते हो तो जनतापन छोड़कर बड़प्पन हथियाने की कोई तरकीब निकालो।

श्रीलाल शुक्ल

आज का बुद्धिजीवी देशज चिंतन से कटता जा रहा है, साधारण जन से उसकी दूरी बढ़ती जा रही है। वह अधिकांशतः विदेशी भाषा में लिखता और छपता है। विदेशों में छपना बड़े सम्मान की बात मानी जाती है। भारतीय भाषाओं में लिखने वाले की या तो अनदेखी की जाती है, या उसे दूसरे या तीसरे दर्जे का बुद्धिजीवी मान लिया जाता है।

श्यामाचरण दुबे

अपने महान पुरुषों को देवता का रूप दे देना और देवता के आसन पर बिठाने के बाद उनके उपदेशों को छोड़ देना, मनुष्य जाति को ज़्यादा पसंद है।

जवाहरलाल नेहरू

जनता के साहित्य से अर्थ है ऐसा साहित्य; जो जनता के जीवन-मूल्यों को, जनता के जीवनादर्शों को प्रतिष्ठापित करता हो, उसे अपने मुक्तिपथ पर अग्रसर करता हो। इस मुक्तिपथ का अर्थ राजनीतिक मुक्ति से लगाकर अज्ञान से मुक्ति तक है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जो राजा अपना कर्तव्य-पालन नहीं करता और प्रजा अपना धर्म-पालन करती रहे तो पीछे वह प्रजा, राजा की जगह ले लेती है।

महात्मा गांधी

अंधी प्रजा, ज्ञान से विहीन है और मृतक की भाँति चुपचाप अन्याय सहती है।

गुरु नानक

दुनिया वैसी ही बनेगी जैसी कि उसके सयाने आदमी सोचते हैं।

महात्मा गांधी

कांग्रेस क्योंकि पूरी तरह जनाधारित थी, इसलिए वह भारत की जनता की तरह ही परिभाषाविहीन थी। यदि वह एकांगी होती तो कोई लेनिन या माओ उसे ज़रूर मिलता, जो किताब लिखकर उसे रणनीति देता। लेकिन कांग्रेस परिभाषाहीन थी, इसलिए उसे परिभाषा देने की सबसे आज़ादी थी।

राजेंद्र माथुर

देश का भविष्य नेताओं और मंत्रियों की मुट्ठी में नहीं है, देश की जनता के ही हाथ में है।

यशपाल

जनता के पीठ-बल के बिना, सत्ताधीश कुछ नहीं कर सकते।

महात्मा गांधी

जनता को अर्थात् ग़रीबों की सेवा करने की मेरी प्रबल इच्छा ने, ग़रीबों के साथ मेरा संबंध हमेशा ही अनायास जोड़ दिया।

महात्मा गांधी

दुनिया का नया देवता 'जनता' है। दुनिया की सारी चीज़ें सभी के लिए हैं। सभी कुछ हर एक के लिए है। जीवन का सर्वस्व एकता में है। सारा जीवन हर एक के लिए है और हर एक सारे जीवन के लिए है।

मैक्सिम गोर्की

वैर का आधार व्यक्तिगत होता है, घृणा का सार्वजनिक।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता की सरकार।

अब्राहम लिंकन