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प्रसिद्ध पर उद्धरण

अज्ञात होना, प्रसिद्धि का नया चलन है।

चक पैलनिक

बेइज़्ज़ती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज़्ज़त बच जाती है।

हरिशंकर परसाई

कला को कभी भी लोकप्रिय बनने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए।

ऑस्कर वाइल्ड

कुसंस्कारों की जड़ें बड़ी गहरी होती हैं।

हरिशंकर परसाई

नशे के मामले में हम बहुत ऊँचे हैं। दो नशे ख़ास हैं—हीनता का नशा और उच्चता का नशा, जो बारी-बारी से चढ़ते रहते हैं।

हरिशंकर परसाई

जूते खा गए—अज़ब मुहावरा है। जूते तो मारे जाते हैं। वे खाए कैसे जाते है? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है कि जूते भी खा सकता है।

हरिशंकर परसाई

गिरे हुए आदमी की उत्साहवर्धक भाषण देने की अपेक्षा सहारे के लिए हाथ देना चाहिए।

हरिशंकर परसाई

रोटी खाने से ही कोई मोटा नहीं होता, चंदा या घूस खाने से होता है। बेईमानी के पैसे में ही पौष्टिक तत्त्व बचे हैं।

हरिशंकर परसाई

शासन का घूँसा किसी बड़ी और पुष्ट पीठ पर उठता तो है, पर जाने किस चमत्कार से बड़ी पीठ खिसक जाती है और किसी दुर्बल पीठ पर घूँसा पड़ जाता है।

हरिशंकर परसाई

प्रतिभा पर थोड़ी गोंद तो होनी चाहिए। किसी को चिपकाने के लिए कोई पास से गोंद थोड़े ही ख़र्च करेगा।

हरिशंकर परसाई

इज़्ज़तदार आदमी ऊँचे झाड़ की ऊँची टहनी पर दूसरे के बनाए घोंसले में अंडे देता है।

हरिशंकर परसाई

दूसरे के मामले में हर चोर मजिस्ट्रेट हो जाता है।

हरिशंकर परसाई

जो जितना अंड-बंड बकता है, वह उतना ही बड़ा महात्मा होता है।

हरिशंकर परसाई

पुल पार उतरने के लिए नहीं, बल्कि उद्घाटन के लिए बनाए जाते हैं। पार उतरने के लिए उसका उपयोग हो जाता है, प्रासंगिक बात है।

हरिशंकर परसाई

हर लड़का बाप से आगे बढ़ना चाहता है। जब वह देखता है कि चतुराई में यह आगे नहीं बढ़ सकता तो बेवकूफ़ी में आगे बढ़ जाता है।

हरिशंकर परसाई

साहित्य में बंधुत्य से अच्छा धंधा हो जाता।

हरिशंकर परसाई

मुसीबत का यही स्वभाव है कि आदमी को अपने ही से लड़ने के लिए शक्ति दे देती है।

हरिशंकर परसाई

सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है।

हरिशंकर परसाई

24-25 साल के लड़के-लड़की को भारत की सरकार बनाने का अधिकार तो मिल चुका है, पर अपने जीवन-साथी बनाने का अधिकार नहीं मिला।

हरिशंकर परसाई

कुत्ते भी रोटी के लिए झगड़ते हैं, पर एक के मुँह में रोटी पहुँच जाए जो झगड़ा ख़त्म हो जाता है। आदमी में ऐसा नहीं होता।

हरिशंकर परसाई

ख्याति मिलने की कुंठा भीतर-भीतर विरोधी बना देती है।

देवीशंकर अवस्थी

पैसा खाने वाला सबसे डरता है। जो सरकारी कर्मचारी जितना नम्र होता है, वह उतने ही पैसे खाता है।

हरिशंकर परसाई

सिर नीचा करके चोर की नज़र डालने की अपेक्षा, माथा, ऊँचा करके, ईमानदारी की दृष्टि डालना, अधिक अच्छा है।

हरिशंकर परसाई

कोट आदमी की इज़्ज़त भी बचाता है। और क़मीज़ की भी।

हरिशंकर परसाई

वोट देने वाले से लेकर साहित्य-मर्मज्ञ ता जाति का पता पहले लगाते हैं।

हरिशंकर परसाई

जनता कच्चा माल है। इससे पक्का माल विधायक, मंत्री आदि बनते है पक्का माल बनने के लिए कच्चे माल को मिटना ही पड़ता है।

हरिशंकर परसाई

सचेत आदमी सीखना मरते दम तक नहीं छोड़ता। जो सीखने की उम्र में ही सीखना छोड़ देते हैं, वे मूर्खता और अहंकार के दयनीय जानवर हो जाते हैं।

हरिशंकर परसाई

मूर्ख से-मूर्ख आदमी तब बुद्धिमान हो जाता है जब उसकी शादी पक्की हो जाती है।

हरिशंकर परसाई

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