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ईश्वर पर उद्धरण

ईश्वर मानवीय कल्पना

या स्मृति का अद्वितीय प्रतिबिंबन है। वह मानव के सुख-दुःख की कथाओं का नायक भी रहा है और अवलंब भी। संकल्पनाओं के लोकतंत्रीकरण के साथ मानव और ईश्वर के संबंध बदले हैं तो ईश्वर से मानव के संबंध और संवाद में भी अंतर आया है। आदिम प्रार्थनाओं से समकालीन कविताओं तक ईश्वर और मानव की इस सहयात्रा की प्रगति को देखा जा सकता है।

जो अपने कर्मों को ईश्वर का कर्म समझकर करता है, वही ईश्वर का अवतार है।

जयशंकर प्रसाद

हर शिशु इस संदेश के साथ जन्मता है कि इश्वर अभी तक मनुष्यों के कारण शर्मसार नहीं है।

रवींद्रनाथ टैगोर

खुदा को मखौल की सख्त जरूरत है। लोगों को चाहिए, दिल खोलकर खुदा का मखौल उड़ाएँ। तभी वह आसमान से उतरकर ज़मीन पर सकता है।

मृदुला गर्ग

अगर इस दुनिया को ईश्वर का ख़्वाब समझ लिए जाए तो ईश्वर से अपेक्षा कम हो जाए, हमदर्दी ज़्यादा।

कृष्ण बलदेव वैद

कितनी ख़राब पटकथा लिखता है परमात्मा, परमात्मा क़सम।

मनोहर श्याम जोशी

कोई नहीं जानता कि आदिम प्रकाश का वह प्रथम, बीज-ज्योति-कण या समय का वह प्रथम बीज-क्षण इतने गणनातीत वर्षों के बीत जाने पर भी महाज्रोति या महाकाल तक पहुँचा है कि नहीं।

श्री नरेश मेहता

वास्तव में—मालिक का दर्जा ईश्वर के पास ही है। ईश्वर ने सृष्टि रची, बनाई, आकाश बनाया लेकिन मकान नहीं बनाए। मनुष्य पृथ्वी पर खुले आकाश के नीचे तो रह नहीं सकता था। तब मकान मालिकों ने मनुष्यों के रहने के लिए मकान बनाए। जो किराए के लिए मकान बनवाते हैं, वे ईश्वर के समान ही पूज्य हैं। पर इस बात को बहुत कम किरायेदार समझते है।

हरिशंकर परसाई

ईश्वर अनाम रहे, इसीलिए देवता हैं।

निर्मल वर्मा

सत्ता के संपूर्ण सत्य को समझने के लिए हमें व्यक्ति तथा विश्व के साथ ईश्वर को भी मानना चाहिए।

सुमित्रानंदन पंत

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