
ख़तरों से घृणा की जाए तो वे और बड़े हो जाते हैं।

भगवान और डॉक्टर की हम समान आराधना करते हैं, परंतु करते तभी हैं जब हम संकट में होते हैं, पहले नहीं। संकट समाप्त होने पर दोनों की समान उपेक्षा की जाती हैं—ईश्वर को भुला दिया जाता है, और डॉक्टर को तुच्छ मान लिया जाता है।

ख़तरा टलते ही ईश्वर का विस्मरण हो जाता है।
