देह पर उद्धरण
देह, शरीर, तन या काया
जीव के समस्त अंगों की समष्टि है। शास्त्रों में देह को एक साधन की तरह देखा गया है, जिसे आत्मा के बराबर महत्त्व दिया गया है। आधुनिक विचारधाराओं, दासता-विरोधी मुहिमों, स्त्रीवादी आंदोलनों, दैहिक स्वतंत्रता की आवधारणा, कविता में स्वानुभूति के महत्त्व आदि के प्रसार के साथ देह अभिव्यक्ति के एक प्रमुख विषय के रूप में सामने है। इस चयन में प्रस्तुत है—देह के अवलंब से कही गई कविताओं का एक संकलन।
एक रंग होता है नीला और एक वह जो तेरी देह पर नीला होता है।
मैं शरीर में रहकर भी शरीर-मुक्त, और समाज में रहकर भी समाज-मुक्त हूँ।
शरीर के महत्त्व को, अपने देश के महत्त्व को समझने के लिए बीमार होना बेहद ज़रूरी बात है।
वर्तमान ही मेरे शरीर का एकमात्र प्रवेश-द्वार है।
प्यार के दिनों में हम शरीर से सुगंध में बदल जाते हैं।
भोगते हुए व्यक्ति की देह ही जिह्वा होती है।
वह इसीलिए ‘नहीं है’, क्योंकि इंद्रिय-गम्य नहीं है।
इंद्रियाँ सीमा को ही देख-सुन-कह या अनुभव कर सकती हैं।