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स्वार्थ पर उद्धरण

जिस तरह स्वार्थ और शिकायत से मन रोगी और धुँधला हो जाता है, उसी तरह प्रेम और उसके उल्लास से दृष्टि तीखी हो जाती है।

हेलेन केलर

गृहस्थी के संचय में, स्वार्थ की उपासना में, तो सारी दुनिया मरती है। परोपकार के लिए मरने का सौभाग्य तो संस्कार वालों को ही प्राप्त होता है।

प्रेमचंद

जो आदमी सच्चा कलाकार है, वह स्वार्थमय जीवन का प्रेमी नहीं हो सकता।

प्रेमचंद

जो मोहवश अपने हित की बात नहीं मानता है, वह दीर्घसूत्री मनुष्य अपने स्वार्थ से भ्रष्ट होकर केवल पश्चाताप का भागी होता है।

वेदव्यास

भक्ति और प्रेम से मनुष्य निःस्वार्थी बन सकता है। मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है।

सुभाष चंद्र बोस

प्रेम यज्ञ में स्वार्थ और कामना का हवन करना होगा।

जयशंकर प्रसाद

न्याय और निष्काम कर्मयोग हृदय का है। बुद्धि से हम निष्कामता को नहीं पहुँच सकते।

महात्मा गांधी

सभी पुरुष स्वार्थी, क्रूर और अविवेकी हैं—और मैं चाहती हूँ कि मुझे उनमें से कोई मिल जाए।

शुलामिथ फ़ायरस्टोन

माता दुर्गे! तुम्हारी संतान हैं हम। हम तुम्हारे प्रसाद से, तुम्हारे प्रभाव से महत् कार्य के, महत् भाव के उपयुक्त हो जाएँ। विनाश करो क्षुद्रता का, विनाश करो स्वार्थ का, विनाश करो भय का।

श्री अरविंद

सच्चा प्रेम त्याग से बना होता है, दिखावे का प्रेम स्वार्थ से।

भाई परमानंद

मुझे लोभ रूपी सर्प ने डस लिया है और स्वार्थ रूपी संपत्ति से मेरे पैर भारी हो गए हैं। आशा रूपी तरंगों ने मेरे शरीर को तपा डाला है। और गुरुकृपा से संतोषरूपी वायु शीतलता प्रदान कर रहा है। मुझे विषयरूप नीम मीठा लगता है और भजनरूपी मधुर गुड़ कड़वा लग रहा है।

संत एकनाथ

प्रथा स्वयं को स्वार्थ के अनुरूप ढाल लेती है।

टैसिटस