गांधीवाद पर उद्धरण
गांधीवाद महात्मा गांधी
के आदर्शों, आस्थाओं और जीवन-दर्शन पर आधारित विचारधारा है। इसका प्रभाव युगीन और परवर्ती काव्य पर भी परिलक्षित होता है।

बिना आत्मशुद्धि के प्राणिमात्र के साथ एकता का अनुभव नहीं किया जा सकता है और आत्मशुद्धि के अभाव से अहिंसा धर्म का पालन करना भी हर तरह नामुमकिन है।

ईश्वर जीवन है, सत्य है, प्रकाश है। वह प्रेम है, वह सर्वोच्च शिव है—शुभ है।

मुझे दुनिया को कोई नई चीज़ नहीं सिखानी है। सत्य और अहिंसा अनादि काल से चले आए हैं।

शास्त्रों ने हमें दो बहुमूल्य वचन दिए हैं। उनमें से एक है—‘अहिंसा परमो धर्मः’ और दूसरा है—‘सत्यान्नास्ति परो धर्मः।’

मैं ईसा को महान् कलाकार मानता हूँ; क्योंकि उन्होंने सत्य की उपासना की, उसे ढूँढ़ा और अपने जीवन में उसे प्रगट किया।

सत्य और अहिंसा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

सत्याग्रह का अर्थ है विरोधी को पीड़ा देकर नहीं, अपितु स्वयं कष्ट उठाकर सत्य की रक्षा करना।
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श्री गोपालकृष्ण गोखले का नाम मेरे लिए एक पवित्र नाम है। वह मेरे राजनीतिक गुरु हैं।

गौ-सेवा के बारे में दिल की बात कहूँ तो आप रोने लग जाएँ, और मैं रोने लग जाऊँ... इतना दर्द मेरे दिल में भरा हुआ है।

साधन हमारे बस की बात है, इसलिए अहिंसा परम धर्म हुई और सत्य परमेश्वर हुआ।

आत्मविश्वास रावण का सा नहीं होना चाहिए जो समझता था कि मेरी बराबरी का कोई है ही नहीं। आत्मविश्वास होना चाहिए विभीषण जैसा, प्रह्लाद जैसा। उनके जी में यह भाव था कि हम निर्बल हैं, मगर ईश्वर हमारे साथ है और इस कारण हमारी शक्ति अनंत है।
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अपनी कल्पना के इस सत्य की आराधना करते हुए मनुष्य अंतिम शुद्ध सत्य तक पहुँच ही जाता है। और वही परमात्मा है।

शुद्ध बनने का अर्थ है मन से, वचन से और काया से निर्विकार बनना, राग-द्वेषादि से रहित होना।
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सत्य में अहिंसा छिपी हुई है और अहिंसा में सत्य।

गांधी मानते हैं कि मनुष्य का लोभ ही उसके नाश का कारण है। लेकिन मार्क्स के अनुसार यह लोभ ही मानव के इतिहास की प्रगति का लक्षण है। मार्क्स की तरह गांधी पूर्वग्रह से पीड़ित नहीं थे।
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यदि आपको झगड़ा करके ईश्वर का नाम लेना है; तो वह नाम तो ईश्वरका होगा, पर काम शैतान का होगा।

यदि गांधीवाद ग़लत बात के लिए है तो इसे नष्ट हो जाने दो। सत्य और अहिंसा तो कभी नष्ट नहीं होगे। परंतु यदि गांधीवाद मतांधता का दूसरा नाम है, तो यह नष्ट कर देने योग्य ही है।

ईश्वर जब आपके हृदय में आ जायेगा, तो आप वही करेंगे जो वह करायेगा। इसलिए हमें विचारशील प्राणी रहना चाहिए।

शांति से ही हिन्दू-मुस्लिम एकता क़ायम हो सकेगी। मैं जानता हूँ कि यह बड़ा कठिन काम है।

राम ईश्वर का भक्त था, इसलिए बात भी वैसी ही करता था। उसको मैंने भगवान नहीं माना है—भक्त ही माना है।

हिंदुस्तान का जीवन देहातों के जरिए ही है।

अहिंसा मेरा ईश्वर है और सत्य मेरा ईश्वर है।

जो ख़ुदा का यानी ईश्वर का दुश्मन है, वह राक्षस है।

जो धर्म ईश्वर का नहीं है वह शैतान का है और वह किसी काम का नहीं हो सकता।

क्रोध-भरे दिल से प्रार्थना करने में दिल की स्वच्छता नहीं हो सकती, इसलिए शांति को ही प्रार्थना समझें।

जब नई बातें नहीं कही जातीं, तो हक़ीक़तों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है।
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गांधी और मार्क्स, दोनों अपनी-अपनी संस्कृति के विशेष अनुभव के कारण ही सार्वत्रिक सच की स्थापना कर सके।
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हमारे दिल में ज्वालामुखी दहक रहा हो, तब भी ठंडा रहने में हमारी अहिंसा की परीक्षा है।

शास्त्रों का यानी वेद का निचोड़ इतना ही है कि ईश्वर है और वह एक ही है। कुरान का और बाइबिल का भी यही निचोड़ है।
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सत्य से ही धर्म बढ़ता है और यह बात तो मैंने हिंदू-धर्म से ही सीखी है।

गांधी जी ने जो परिवर्तन चाहा था; वह व्यक्ति का भीतरी परिवर्तन था और वह समाज का था, क्योंकि भीतर और बाहर में कोई विभेद न करने वाला दर्शन था वह। सामाजिक पीड़ा को भी गांधी जी ने व्यक्ति की आंतरिक वेदना के रूप में देखा।

असली भंगी को भीतर की भी सफ़ाई करनी होती है, जो मैं कर रहा हूँ।

जो भूमि अमर हिमालय से घिरी हुई है और गंगा की स्वास्थ्य-प्रद धाराओं से सिंचित होती है क्या वह हिंसा से अपना नाश कर लेगी?

हमारे अगणित असुविधारूपी तालों को खोलने के लिए सताग्रहरूपी एक मुख्य कुंजी है।

जो मनुष्य यह कहता है कि धर्म का राजनीति से कोई संबंध नहीं है, वह धर्म को नहीं जानता; ऐसा कहने में मुझ संकोच नहीं होता और न ऐसा कहने में मैं अविनय करता हूँ।

मेरी भक्तिपूर्ण खोज ने मुझे ‘ईश्वर सत्य है’ के प्रचलित मंत्र के बजाय ‘सत्य ही ईश्वर है’ का अधिक गहरा मंत्र दिया।

मैं सनातनी हिंदू हूँ, इसलिए ईसाई, बौद्ध और मुसलमान होनेका दावा करता हूँ।

मेरी दृष्टि से अणु-परमाणु में जो है, वही ब्रह्मांड भर में है—'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे'—इसी सूत्र का मैं माननेवाला हूँ।

मेरा विश्वास है कि अगर मैं अपने यक़ीन पर मजबूती से क़ायम रहा तो मैं सिर्फ हिंदू-धर्म की ही नहीं, इस्लाम की भी सेवा करूंगा।
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मेरी प्रार्थना जगत को दिखाने के लिए नहीं है। मेरी प्रार्थना मन की शांति के लिए है, दिल की सफाई के लिए है।

मैं यह कहने की हिम्मत करता हूँ कि बदला लेने की भावना छोड़कर अगर सब हिंदू और सिख अपने मुसलमान भाइयों के हाथों दिल में गुस्सा लाये बिना मर भी जाए तो वे सिर्फ हिंदू और सिख मज़हब की ही नहीं, इस्लाम और दुनियाकी भी रक्षा करेंगे।

स्वराज्य-प्राप्ति के लिए अस्पृश्यता को हटाने की बात गांधीजी की मौलिक देन थी।
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हमारे महाभारत में जो बात कही गई है; वह सिर्फ हिंदुओं के काम की ही नहीं है, दुनियाभर के काम की है।
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शांति ही प्रार्थना है।
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यदि आदमी शांति से न रहे, कभी अपने विचारों को भीतर से न देखे, जीवन भर दौड़-दंगल में ही रहे और हर वक्त गरम बना रहे तो वह उस शक्ति को पैदा नहीं कर सकता जिसे शौकत अली साहब ‘ठंडी ताकत’ कहा करते थे।
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अहिंसा और सत्य ऐसे ओत-प्रोत और ताने-बाने की तरह एक-दूसरे में मिले हुए हैं, जैसे सिक्के के दो रुख़ या चिकनी चकती के दो पहलू।

सत्य की अपनी खोज में मैंने बहुत से विचारों को छोड़ा है और अनेक नई बातें मैंने सीखी भी है।

मैं एक नम्र, किंतु अत्यंत सच्चा सत्यशोधक हूँ।
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'गीता' में आए हुए महान् शब्दों के अर्थ प्रत्येक युग में बदलेंगे और व्यापक बनेंगे। परंतु 'गीता' का मूल-मंत्र कभी नहीं बदलेगा। यह मंत्र जिस रीति से जीवन में साधा जा सके, उस रीति को दृष्टि में रखकर जिज्ञासु 'गीता' के महा-शब्दों का मनचाहा अर्थ कर सकता है।

गांधीवाद ज़रूर गांधी का सरलीकृत रूप है। वैसे तो कोइ भी विचारधारा उस आदमी के विचारों का सलीकरण होती है जिसके नाम के इर्द-गिर्द वह उभरती है, पर गांधीवाद गांधी के मुक़ाबले ज़्यादा ही सरलीकृत है।