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साफ़ पर उद्धरण

स्वच्छता इत्यादि के नियमों का पालन करते हुए और खाद्याखाद्य के विवेक की रक्षा करते हुए, सब वर्णों के एक पंक्ति में खाने में कोई भी दोष नहीं है। किसी ख़ास वर्ण के आदमी का ही बनाया भोजन होना बिल्कुल ज़रूरी नहीं है।

महात्मा गांधी

शारीरिक स्वच्छता के सिवा और भी साफ-सुथरी आदतें डालने की ज़रूरत है।

महात्मा गांधी

मनुष्य को चाहिए कि वह ईर्ष्यारहित, स्त्रियों का रक्षक, संपत्ति का न्यायपूर्वक विभाग करने वाला, प्रियवादी, स्वच्छ तथा स्त्रियों के निकट मीठे वचन बोलने वाला हो, परंतु उनके वश में कभी हो।

वेदव्यास

हमारा काम तभी अंतरात्मा से प्रेरित हो सकता है जब अपने-आप में वह स्वच्छ हो, उसका हेतु स्वच्छ हो और उसका परिणाम भी स्वच्छ हो।

महात्मा गांधी

आज की भारतवर्ष की स्थिति में कताई तथा मलमूत्र साफ़ करके इसकी उचित व्यवस्था करना, आश्रम में यज्ञ-कर्म माना गया है।

महात्मा गांधी

स्वच्छ क्रांति तो प्रेम न्याय के सिद्धांत से ही हो सकती है।

राल्फ़ वाल्डो इमर्सन

ग़लती स्वीकार करना झाड़ू के समान है, जो गंदगी को हटाकर सतह को साफ़ कर देती है।

महात्मा गांधी

यह कितनी ग़लत बात है कि हम मैले रहें और दूसरों को साफ़ रहने की सलाह दें।

महात्मा गांधी

मल, कूड़ा-करकट आदि अनर्थकारी पदार्थों के संबंध की व्यवस्था के लिए किया हुआ परिश्रम भी, यज्ञ का एक प्रकार ही कहा जाता है। ऐसा परिश्रम हरेक को अवश्य करना चाहिए।

महात्मा गांधी

असली भंगी को भीतर की भी सफ़ाई करनी होती है, जो मैं कर रहा हूँ।

महात्मा गांधी

आहार-विहार की भूलों को दूर किए बिना, सिर्फ़ हवा-पानी के सुधार से रोग दूर करने की इच्छा करना—शरीर को साफ़ पानी से धोकर मैले गमछे से पोंछने जैसा है।

महात्मा गांधी

जो आदमी अपने हाथ साफ़ नहीं रखता, वह साफ़ चीज़ क्या देखेगा और उसकी कहाँ तक क़दर करेगा।

महात्मा गांधी

ईंट-चूने की चुनाई पहले हृदय-मंदिर की चुनाई बहुत ज़रूरी है अगर यह हो जाए तो और सब तो हुआ ही है।

महात्मा गांधी
  • संबंधित विषय : दिल

हमारी आँखों को ऐसा अभ्यास होना चाहिए कि वे गंदगी को देखकर खामोश रह सकें।

महात्मा गांधी

जब चीज़ें साफ़ होती हैं, काफ़ी देर हो चुकती है।

कृष्ण कुमार