प्रेम पर उद्धरण

प्रेम के बारे में जहाँ

यह कहा जाता हो कि प्रेम में तो आम व्यक्ति भी कवि-शाइर हो जाता है, वहाँ प्रेम का सर्वप्रमुख काव्य-विषय होना अत्यंत नैसर्गिक है। सात सौ से अधिक काव्य-अभिव्यक्तियों का यह व्यापक और विशिष्ट चयन प्रेम के इर्द-गिर्द इतराती कविताओं से किया गया है। इनमें प्रेम के विविध पक्षों को पढ़ा-परखा जा सकता है।

प्रेम महान है, प्रेम उदार है। प्रेमियों को भी वह उदार और महान बनाता है। प्रेम का मुख्य अर्थ है—‘आत्मत्याग’।

जयशंकर प्रसाद

हम विचारों के स्तर पर जिससे घृणा करते हैं, भावनाओं के स्तर पर उसी से प्यार करते हैं।

गोरख पांडेय

आज का प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति प्रेम का भूखा है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

प्रेम जितना ही सच्चा, जितना ही हार्दिक होता है, उतना ही कोमल होता है। वह विपत्ति के सागर में उन्मत्त ग़ोते खा सकता है, पर अवहेलना की एक चोट भी सहन नहीं कर सकता।

प्रेमचंद

क्या ज़िंदगी प्रेम का लंबा इंतज़ार है?

गोरख पांडेय

प्रेम सीधी-सादी गऊ नहीं, ख़ूँख़ार शेर है, जो अपने शिकार पर किसी की आँख भी नहीं पड़ने देता।

प्रेमचंद

प्रेम अकेले होने का एक ढंग है।

श्रीकांत वर्मा

कविता और प्रेम—दो ऐसी चीज़ें हैं, जहाँ मनुष्य होने का मुझे बोध होता है।

गोरख पांडेय

इस भीषण संसार में एक प्रेम करने वाले हृदय को दबा देना सबसे बड़ी हानि है।

जयशंकर प्रसाद

दो प्यार करने वाले हृदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है।

जयशंकर प्रसाद

हत्या की संस्कृति में प्रेम नहीं होता है।

रघुवीर सहाय

प्रेम होता ही अतिवादी है। यह बात प्रौढ़ होकर ही समझ में आती है उसके कि विधाता अमूमन इतना अतिवाद पसंद करता नहीं। खैर, सयाना-समझदार होकर प्यार, प्यार कहाँ रह पाता है!

मनोहर श्याम जोशी

असल बात प्यार करना है, प्यार पाना नहीं।

मृदुला गर्ग

प्रेम परोपकार नहीं होता। जो प्रेमी बलिदान चाहे, वह प्रेमी नहीं होता। बलिदान के बाद प्रेम, प्रेम नहीं रहता, परोपकार बन जाता है। आदर्श नहीं, घमंडी और बनावटी परोपकार।

मृदुला गर्ग

प्रेम को वही जानता है जो समझ गया है कि प्रेम को समझा ही नहीं जा सकता।

मनोहर श्याम जोशी

प्रेम किन्हीं सयानों द्वारा बहुत समझदारी से ठहरायी जानेवाली चीज़ नहीं।

मनोहर श्याम जोशी

प्रेम होता ही अतिवादी है। यह बात प्रौढ़ होकर ही समझ में आती है उसके कि विधाता अमूमन इतना अतिवाद पसंद करता नहीं। खैर, सयाना-समझदार होकर प्यार, प्यार कहाँ रह पाता है!

मनोहर श्याम जोशी

प्रेम में सिर्फ़ चुम्बन और सहवास और सुख-शैया ही नहीं, सब कुछ है, नरक है, स्वर्ग है, दर्प है, घृणा है, क्रोध है, द्वेष है, आनंद है, लिप्सा है, कुत्सा है, उल्लास है, प्रतीक्षा है, कुंठा है, हत्या है।

श्रीकांत वर्मा

जैसे ईख से रस निकाल लेने पर केवल सीठी रह जाती है, उसी प्रकार जिस मनुष्य के हृदय से प्रेम निकल गया, वह अस्थि चर्म का एक ढेर रह जाता है।

प्रेमचंद

एक रमणीय स्त्री का सारा इतिहास प्रेम का इतिहास होता है।

स्वदेश दीपक

प्रेम का उपहार दिया नहीं जा सकता, वह प्रतीक्षा करता है कि उसे स्वीकार किया जाए।

रवीन्द्रनाथ टैगोर

तानाशाह प्रेमिका एक प्रेमी से बहुत जल्द उकता जाती है। पालतू बनाने और निस्तेज करने के लिए उसे नया पुरुष चाहिए।

स्वदेश दीपक

प्रेम खिड़की से अंदर आता है, दरवाज़े से बाहर चला जाता है।

स्वदेश दीपक

हम प्यार करते हुए भी सच को, गंदगी को, अँधेरे को, पाप को भूल नहीं पाते हैं।

राजकमल चौधरी

ज़िंदगी का राज़ या अर्थ तो शायद ही हाथ लगे, फूलों और पत्तों और परिंदों से ही प्यार करते रहना चाहिए।

कृष्ण बलदेव वैद

जब एक पुरुष एक स्त्री से प्रेम करता है, तो वह अपने समस्त पूर्व-प्रेमियों को ध्यान में रखती है, यदि उसमें और किसी भी भूतपूर्व प्रेमी में कुछ भी समानता है, तब उसकी सफलता की बहुत कम आशा है।

भुवनेश्वर

नष्ट होने की भावना भी प्रेम का एक अविभाज्य अंग है।

श्रीकांत वर्मा

प्यार के दिनों में हम शरीर से सुगंध में बदल जाते हैं।

स्वदेश दीपक
  • संबंधित विषय : देह

जिसे हम जागृतावस्था कहते हैं—वे सिर्फ़ पीड़ा के क्षण हैं—दो प्रेम-स्वप्नों के बीच।

निर्मल वर्मा

प्रेम और युद्ध के तरीक़े एक जैसे। जो हारे, वह युद्धबंदी।

स्वदेश दीपक

जब हम प्यार कर रहे होते हैं तो मूर्ख होते हैं।

स्वदेश दीपक

प्रेम या दाम्पत्य ‘स्वर्गीय विधान’ की तरह नहीं होते। उसे खोजना और पाना पड़ता है। और अक्सर जब आप समझते हैं कि आपने उसे पूरी तरह पा लिया है, तभी आप उसे खो रहे होते हैं।

दूधनाथ सिंह

प्यार में बस इतनी कोशिश करनी है– एक-दूसरे को मुक्त करो। कि साथ आसानी से संभव होता है। हमें इसे सीखने की ज़रूरत नहीं।

रेनर मारिया रिल्के

मेरा मानना है कि प्यार और सम्मान करने की क्षमता, मनुष्य को दिया हुआ ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर

जब हम प्यार करते हैं, तो स्त्री को धीरे-धीरे उस दीवार के सहारे खड़ा कर देते हैं, जिसके पीछे मृत्यु है; हम दीवार के सहारे उसका सिर टिका कर उसे सहलाते हैं, चूमते हैं, बातों में उसे बहलाते हैं, बराबर यह आशा लगाए रहते हैं—कि वह कहीं मुड़कर दीवार के पीछे झाँक ले।

निर्मल वर्मा

प्रेम क्षणों में ही नवजात, सुंदर और अप्रतिम रहता है। फिर भी उस प्रेम को पाने के लिए ‘होल-टाइमर’ होना पड़ता है।

दूधनाथ सिंह

प्रेम जब गिनने बैठता है तो बहुत उदारता से।

मनोहर श्याम जोशी

प्रेम में मैला-कुचैला होना पड़ता है। प्रेम में अपने व्यक्तित्व को झुकाना और छोटा करना पड़ता है। अपने को ‘नहीं’ करना पड़ता है, भूलना पड़ता है—इज़्ज़त-आबरू, घर-द्वार, कविता-कला, खान-पान, जीवन-मरण, ध्येय, उच्चताएँ-महानताएँ—सब धूल में मिल जाती हैं… तब मिलता है प्रेम।

दूधनाथ सिंह

प्रेम के प्रमाण के सिवाय, प्रेम जैसी कोई भी चीज़ मौजूद नहीं है।

ज़्यां कॉक्त्यू

प्यार, आशा और निराशा के बीच एक काँपता हुआ पुल है।

यून फ़ुस्से

एक जादू है, जो हर बार उन्हें महसूस होता है जो वास्तव में प्रेम करते हैं। जितना आधिक वे देते हैं उससे कहीं आधिक वे अर्जित करते हैं।

रेनर मारिया रिल्के

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए