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बच्चे पर उद्धरण

हिंदी के कई कवियों ने

बच्चों के वर्तमान को संसार के भविष्य के लिए समझने की कोशिश की है। प्रस्तुत चयन में ऐसे ही कवियों की कविताएँ संकलित हैं। इन कविताओं में बाल-मन और स्वप्न उपस्थित है।

बच्चा एक अनकही कहानी होता है, उसकी कहानी हमारे दिए शब्दों में नहीं कही जा सकती। उसे अपने शब्द ढूँढ़ने का समय और स्थान चाहिए, ढूँढ़ने के लिए ज़रूरी आज़ादी और फ़ुर्सत चाहिए। हम इनमें से कोई शर्त पूरी नहीं करते। हम उन्हें अपने उपदेश सुनने से फ़ुर्सत नहीं देते, उन्हें सुनने की फ़ुर्सत हमें हो–यह संभव ही नहीं।

कृष्ण कुमार

बच्चों को भाषा पढ़ाने का भला क्या मतलब हो सकता है, सिवाय इस दृष्टि-विस्तार के, क्योंकि भाषा तो वे पहले से जानते हैं। हमें पढ़ना-लिखना सिखाने के आग्रह को भाषा सिखाने का मुख्य उद्देश्य यही समझना चाहिए।

कृष्ण कुमार

संविधान सुधार दिया गया, उच्चतम न्यायालय कह चुका, पर हमें बच्चों की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही। वे हमारे बीच रहते हैं; हमारी परछाइयों के घेरे में क़ैद। परछाई से बाहर तभी जाने दिए जाते हैं जब परछाई उन पर पड़ चुकी होती है और उनकी आवाज़ पूरी तरह एक स्वीकृत ज़बान में गढ़ी जा चुकती है। क्या आश्चर्य कि ऐसे समाज में बाल साहित्य न्यून मात्रा में है।

कृष्ण कुमार

याद रखो : प्यार एकदम बकवास है। सच्चा प्यार सिर्फ़ माँ और बच्चे के बीच होता है।

एडना ओ’ब्रायन

मैं समझता हूँ कि बेकार राज्य-प्रबंधन बेकार परिवार-प्रबंधन को प्रोत्साहित करता है। हमेशा हड़ताल पर जाने को तत्पर मज़दूर अपने बच्चों को भी व्यवस्था के प्रति आदर-भाव नहीं सिखा सकता।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

नौ महीने की गर्भावस्था से गुज़रकर एक माँ महसूस करती है कि इतने दर्द और बेचैनी से पैदा हुआ वह बच्चा उसका है।

शुलामिथ फ़ायरस्टोन

खेल बच्चों का काम है और यह कोई मामूली काम नहीं है।

अल्फ़्रेड एडलर

समस्या हमेशा बच्चों की माँ या मंत्री की पत्नी होने में और—कभी भी—जो हो वह नहीं होने में होती है।

बेट्टी फ्रीडन

बच्चों की जिस कहानी का आनंद केवल बच्चे ही उठा सकते हैं, वह बच्चों की अच्छी कहानी बिल्कुल भी नहीं है।

सी. एस. लुईस

ज़्यादातर समय, वे बच्चे स्वस्थ और मज़बूत होते हैं, प्रकृति अपनी देखभाल ख़ुद करती है।

डेबोरा फ़ेल्डमैन

बच्चे को पालने का सबसे बेहतर तरीक़ा उसे छोड़ देना है!

शुलामिथ फ़ायरस्टोन

आप बच्चों के लिए क्या करते हैं, यह मायने रखता है; और वे इसे कभी भूल नहीं सकते हैं।

टोनी मॉरिसन

उस प्यार से बढ़कर कोई प्यार नहीं है जिसे भेड़िया भेड़ के उस बच्चे के लिए महसूस करता है, जिसे वह खाता नहीं है।

एलेन सिक्सू

बच्चे कभी भी अपने बड़ों की बातों को बहुत अच्छी तरह से नहीं सुनते हैं, लेकिन वे उनकी नक़ल ज़रूर करते हैं।

जेम्स बाल्डविन
  • संबंधित विषय : नक़ल

एक गृहिणी के काम का कोई महत्व नहीं होता है : उस काम को बस फिर से करना होता है। बच्चों को पालना कोई वास्तविक पेशा नहीं है, क्योंकि बच्चे एक ही तरीक़े से बड़े होते हैं, उनका पालन-पोषण किया जाए या नहीं।

जेर्मेन ग्रीयर

हर शिशु इस संदेश के साथ जन्मता है कि इश्वर अभी तक मनुष्यों के कारण शर्मसार नहीं है।

रवींद्रनाथ टैगोर

बालक समय आए बिना जन्म लेता है, मरता है और असमय में बोलता ही है। बिना समय के जवानी नहीं आती और बिना समय के बोया हुआ बीज भी नहीं उगता है।

वेदव्यास

जिस प्रकार बच्चे अँधेरे में जाने से भयभीत होते हैं, उसी प्रकार मनुष्य मृत्यु से भयभीत होते हैं।

फ़्रांसिस बेकन

बंधुओं तथा मित्रों पर नहीं, शिष्य का दोष केवल उसके गुरु पर पड़ता है। माता-पिता का अपराध भी नहीं माना जाता क्योंकि वे तो बाल्यावस्था में ही अपने बच्चों को गुरु के हाथों में समर्पित कर देते हैं।

भास

चूँकि अज्ञानता मनुष्य में एक प्रकार का मानसिक दिवालियापन ही है। वे लोग जो असहाय बच्चों या छोटे जीवों को प्रताड़ित करने में आनंद पाते हैं—असल में पागल हैं।

अकीरा कुरोसावा

वेग के साथ घूमती हुई, चक्र का भ्रम उत्पन्न करने वाली काल-गति देखी नहीं जाती। कल जो शिशु था, आज वही पूर्ण युवा है और कल प्रात: वही जरा-जीर्ण शरीर वाला हो जाएगा।

क्षेमेंद्र

हमारे भीतर जो प्राण-शक्ति है, उसी का नाम अमृत है। बच्चे के भीतर यह प्राण शक्ति या जीवन की धारा इतनी बलवती होती है कि उसके मनःक्षेत्र में मृत्यु का भाव कभी आता ही नहीं। यह असंभव है कि बच्चे को हम मृत्यु का ज्ञान करा सकें।

वासुदेवशरण अग्रवाल

बच्चों की आँखों से देखे गए वयस्क बस खाना खाते हैं और संभोग करते हैं।

पीएत्रो चिताती

मनुष्य और पक्षी में एकरूपता नहीं होती है, इसे छोटा बच्चा भी जानता है। उससे अगर मनुष्य का रेखाचित्र बनाने को कहा जाए तो वह एक तरह की रेखाओं का प्रयोग करेगा, जिन रेखाओं का व्यवहार पक्षी का चित्र बनाते समय वह बिल्कुल नहीं करता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

हम बाल अधिकार की बात भले करें, रचना का बुनियादी अधिकार देने की मनस्थिति में हम फ़िलहाल नहीं हैं, क्योंकि रचना का अर्थ होता है–अपना मन ख़ुद बनाने का अधिकार। इस अधिकार का उपयोग करना करना भी अधिकार में शामिल है।

कृष्ण कुमार

बालकों मूर्खों की तो गिनती क्या, महान लोगों की भी चित्तवृत्ति सदा एकाग्र नहीं रहती।

कल्हण

कहानी का आकर्षण बुनियादी स्वभाव का अंग है और इस अंग का विकास बचपन में अपने आप शुरू हो जाता है।

कृष्ण कुमार

बच्चे की ज़िंदगी एक लंबी ज़िंदगी है। उसमें एक किताब आकर चली नहीं जानी चाहिए।

रघुवीर सहाय

बाल साहित्य एक आधुनिक चीज़ है जिसकी प्रेरणा के स्त्रोत लोक साहित्य निधि में पहचाने जा सकते है।

कृष्ण कुमार

शिशु के जीवन में अनेक पथ अज्ञात रहते हैं, वहाँ पर कल्पना की अबाध गति देखने को मिलती है और प्रत्येक शिशु इसी अज्ञात को अपने-अपने चरित्र और क्षमता के अनुसार, अनेक और विभिन्न मूर्तियों के माध्यम से पहचानता हुआ चलता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

जो माता पिता बिना अनुमति के अपने बालकों के पत्र पढ़ने की अच्छा रखते हैं, वे माता-पिता नहीं बल्कि ज़ालिम हैं।

महात्मा गांधी

बच्चों को चुपचाप पढ़ने देना और कोई आलेख या पुस्तक पढ़ लेने के बाद उस पर प्रश्न पूछना या यूँ ही कुछ चर्चा करने के प्रलोभन से बाज़ आना—एक रोचक नवाचार हो सकता है।

कृष्ण कुमार

बाल साहित्य बच्चों के जीवन में पढ़ाई के वर्चस्व को चुनौती दे सकता है। वह पढ़ाई की जगह पढ़ने के माहौल की माँग करता है।

कृष्ण कुमार

जन्म देने के चालीस दिन तक, नवजात बच्चे और जच्चा के लिए चालीस कब्रों के मुँह खुले हुए होते हैं। हर गुज़रते दिन के साथ एक-एक कब्र का मुँह बंद होता जाता है।

बानू मुश्ताक़

आख़िर ईश्वर है क्या? एक शाश्वत बालक जो शाश्वत उपवन में शाश्वत क्रीड़ा में लगा हुआ है।

श्री अरविंद

पाँच-सात वर्ष तक की आयु के बच्चे की दृष्टि संज्ञा की ग़ुलाम नहीं होती। वे चींज़ों को देखते हैं, उनकी संज्ञान नहीं करते। संज्ञान करना यानी संसार का वर्गीकरण और नामांकन करना।

कृष्ण कुमार

जो बच्चे ज्ञानी हैं, उन्हें माँ भी दूर रखती है।

संत तुकाराम

बच्चों का मनोलोक अनेक विशेषज्ञों ने टटोला है, पर किसी से प्लेटो के इस कथन को झुठलाना संभव नहीं हो पाया कि बच्चे के मन में झाँकना एक विदेश यात्रा है—कुछ-कुछ समझ में आता है, बहुत कुछ रह जाता है।

कृष्ण कुमार

बच्चों की शिक्षा यदि वैचारिक गहराई की जगह सतही रुझान भर दे तो इसके दूरगामी परिणाम होने लाज़िमी हैं।

कृष्ण कुमार

बालकों को मारपीट कर पढ़ाने का मैं हमेशा विरोधी रहा हूँ।

महात्मा गांधी

पीड़ा हठीले बच्चे की तरह है। समझा-बुझा कर किसी तरह थोड़ी देर के लिए वह वश में कर ली जा सकती है।

सियारामशरण गुप्त

फ़्लाबेयर की तरह वह भी कहा करता था कि वे सारे लोग जिनके बच्चे होते हैं, वे सत्य के साथ रह रहे होते हैं।

पीएत्रो चिताती
  • संबंधित विषय : सच

बालकों पर प्रेम की भाँति द्वेष का असर भी अधिक होता है।

प्रेमचंद

गुलिवर इसीलिए क्लासिक है क्योंकि वह बच्चों की स्वाभाविक इच्छाओं का प्रतिबिंब पेश करता है।

कृष्ण कुमार

बच्चों की अक्षय कल्पना उन्हें खेल में संलग्न रखती है, किसी एक पुराने खेल की स्मृति के आधार पर वह सारे नए-नए खेलों की रूप-रचना करता हुआ चलता रहता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

आन्द्रे फावात एक ऐसे निराले विद्वान थे जिन्होंने पारंपरिक कहानियों की मदद से बच्चों का मनोविज्ञान समझने की कोशिश की।

कृष्ण कुमार

बच्चों का हृदय कोमल थाला है, चाहे इसमें कटीली झाड़ी लगा दो, चाहे फूलों के पौधे।

जयशंकर प्रसाद
  • संबंधित विषय : दिल

बालक स्थूल विविधता से विशेष परिचित नहीं होता, इसी से वह केवल जीवन को पहचानता है।

महादेवी वर्मा

बच्चे झट से सत्य के आस-पास पहुँच जाते हैं।

स्वदेश दीपक
  • संबंधित विषय : सच

कुलगत विरोध होने पर भी बालकों का अपराध नहीं माना जाता है।

भास