दर्द पर उद्धरण
‘आह से उपजा होगा गान’
की कविता-कल्पना में दर्द, पीड़ा, व्यथा या वेदना को मानव जीवन के मूल राग और काव्य के मूल प्रेरणा-स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है। दर्द के मूल भाव और इसके कारण के प्रसंगों की काव्य में हमेशा से अभिव्यक्ति होती रही है। प्रस्तुत चयन में दर्द विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।


मुझे अपनी कल्पना को साकार करने के लिए अकेलेपन के दर्द की ज़रूरत है।

स्त्रियाँ कभी क्रूरता पर नहीं रोतीं। वे दूसरों के दिए दर्द पर नहीं रोतीं। रोने के लिए उनका अपना दर्द ही काफ़ी होता है।

स्त्रियाँ कभी क्रूरता पर नहीं रोतीं। वे दूसरों के दिए दर्द पर नहीं रोतीं। रोने के लिए उनका अपना दर्द ही काफ़ी होता है।

प्रेम करना सुरक्षा का कोई स्थान प्रदान नहीं करता है। हम नुक़सान, चोट, दर्द का जोखिम उठाते हैं। हम अपने नियंत्रण से बाहर की ताक़तों द्वारा कार्य किए जाने का जोखिम उठाते हैं।

किसी ने मुझे कभी नहीं बताया कि दुःख बहुत कुछ डर की तरह महसूस होता है।

अगर पीड़ा से कविता नहीं आती तो और कहाँ से कविता आती है, जैसे पत्थर को निचोड़कर ख़ून निकाला जाता है!


मैंने जितनी भी मुश्किलें झेली हैं, वे मुझे एक भयानक दर्द के लिए तैयार करने की दिशा में केवल पूर्वाभ्यास थीं।

दर्द को बरक़रार नहीं रखा जा सकता है, इसे ‘विकसित करके’ हास्य में परिवर्तित करने की ज़रूरत है।

प्यार के बारे में सबसे दुखद बात यह है कि वह हमेशा बना नहीं रह सकता।

दर्द प्रक्रिया का हिस्सा है।

प्यार इतना दर्दनाक इसलिए होता है, क्योंकि यह हमेशा दो लोगों के बीच दो लोग जो दे सकते हैं; उससे अधिक की चाहत होता है।

मुझे दर्द के अनुभव और कुछ नहीं के बीच चुनना पड़े, तब मैं दर्द का चयन करूँगा।

मैं तब तक किसी भी दर्द को सहन कर सकता हूँ, जब तक उसका कोई अर्थ हो।

दर्द के बारे में लिखना आसान है। दुख में हम सभी सुख से अलग-अलग होते हैं, लेकिन ख़ुशी के बारे में कोई क्या लिख सकता है?

वह सिर्फ़ उसी के वेदनात्मक प्रहार से मारा जा सकता था जिसके लिए वह मरने को तैयार हो।

मेरा घर भी वहीं है जहाँ पीड़ा का निवास है। जहाँ-जहाँ दुःख विद्यमान है वहाँ-वहाँ मैं विचरता हूँ।

सिर्फ़ पीड़ा ही सच है, बाक़ी हर चीज़ पर संदेह किया जा सकता है।

थोड़ी देर के लिए दर्द को सुन्न कर देने से दर्द तब और भी तेज़ होगा, जब आप अंततः इसे महसूस करेंगे।

जो हमें दर्द देता है, उसे हम बहुत आसानी से भूल जाते हैं।


जब इंसान अपने दर्द को ढो सकने में असमर्थ हो जाता है तब उसे एक कवि की ज़रूरत होती है, जो उसके दर्द को ढोए अन्यथा वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा।

इस सामाजिक व्यवस्था में ही नहीं, एक जीवंत और उल्लसित भावी व्यवस्था में भी ज्ञान का माध्यम सदा कष्ट ही रहेगा।

किसी दुःख के परिणाम से कोई ज़हर नहीं खा सकता। यह तो षड्यंत्र होता है। आदमी को बुरी तरह हराने के बाद ज़हर का विकल्प सुझाया जाता है।

यह बजाय इसके इस भविष्यवाणी से संबंधित है जो पुरुषों को उनके जीवन के हर क्षण में होती है, एक पूर्वाभास जो दृढ़ता से दबाया और छिपा होता है—कि अगर उन्हें अपने ही हाल पर छोड़ दिया जाए, समय की नीरस, शांत संगति में, तो वे जल्दी से कमज़ोर हो जाएँगे।

अगर कुछ मुझे दुख पहुँचाता है, तो मैं उसे अपने मानसिक मानचित्र से हटा देती हूँ। वे स्थान जहाँ मैंने ठोकर खाई, जहाँ मैं गिरी, जहाँ मुझे चोट लगी, जहाँ चीज़ें पीड़ादायक थीं—ऐसे स्थान अब मेरे भीतर नहीं हैं।

कड़वाहट का गोला जब गले में पिघलता है तो आँखों में आँसुओं की चुभन शुरू हो जाती है।

मेरा काम हमेशा नासाज़ हालात में ही हुआ है, साज़गार हालात में नहीं।

दुःख से होने वाला मिलन टूटने वाला नहीं है। इसमें न भय है और न संशय। आँसुओं से जो हँसी फूटती है वह रहती है, रहती और चिर दिन रहती है।

विश्वास जितना पक्का होता है, उसके टूटने में उतना ही दर्द होता है। हिलता हुआ दाँत एक झटके में बाहर आ जाता है, पर जमा हुआ दाँत जब ‘‘डेंटिस्ट’’ निकलता है, तो सारे शरीर को हिला देता है।

उत्पीड़न की चिंगारी को अत्याचारी अपने ही आँचल में छिपाए रहता है।

अकेलेपन, दुःख और एकांत को जो दार्शनिक जामा पहनाने की आदत है, वह तभी सुंदर और महान लगती है, जब ख़त्म हो जाने का डर न हो।


दुःख, साथी है सुख का। जीवन की अलग-अलग ऋतुओं में वे साथ नृत्य करते हैं।

हमारे घाव हमारी सहनशीलता के स्मरण हैं। जो युद्ध हमने लड़े और जीते, वे उनकी कथाएँ कहते हैं।
