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दर्द पर उद्धरण

‘आह से उपजा होगा गान’

की कविता-कल्पना में दर्द, पीड़ा, व्यथा या वेदना को मानव जीवन के मूल राग और काव्य के मूल प्रेरणा-स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है। दर्द के मूल भाव और इसके कारण के प्रसंगों की काव्य में हमेशा से अभिव्यक्ति होती रही है। प्रस्तुत चयन में दर्द विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

दुखों में अज्ञान-दुःख सबसे बड़ा दुःख है।

अश्वघोष

मुझे अपनी कल्पना को साकार करने के लिए अकेलेपन के दर्द की ज़रूरत है।

ओरहान पामुक

स्त्रियाँ कभी क्रूरता पर नहीं रोतीं। वे दूसरों के दिए दर्द पर नहीं रोतीं। रोने के लिए उनका अपना दर्द ही काफ़ी होता है।

रघुनाथ चौधरी

स्त्रियाँ कभी क्रूरता पर नहीं रोतीं। वे दूसरों के दिए दर्द पर नहीं रोतीं। रोने के लिए उनका अपना दर्द ही काफ़ी होता है।

रघुवीर चौधरी

मैंने जितनी भी मुश्किलें झेली हैं, वे मुझे एक भयानक दर्द के लिए तैयार करने की दिशा में केवल पूर्वाभ्यास थीं।

ऐनी एरनॉ

दर्द को बरक़रार नहीं रखा जा सकता है, इसे ‘विकसित करके’ हास्य में परिवर्तित करने की ज़रूरत है।

ऐनी एरनॉ

किसी ने मुझे कभी नहीं बताया कि दुःख बहुत कुछ डर की तरह महसूस होता है।

सी. एस. लुईस
  • संबंधित विषय : डर

प्रेम करना सुरक्षा का कोई स्थान प्रदान नहीं करता है। हम नुक़सान, चोट, दर्द का जोखिम उठाते हैं। हम अपने नियंत्रण से बाहर की ताक़तों द्वारा कार्य किए जाने का जोखिम उठाते हैं।

बेल हुक्स

अगर पीड़ा से कविता नहीं आती तो और कहाँ से कविता आती है, जैसे पत्थर को निचोड़कर ख़ून निकाला जाता है!

जे. एम. कोएट्ज़ी

किसी ने एक संघर्ष, एक दर्द, एक मौत सही।

हरमन हेस

प्यार के बारे में सबसे दुखद बात यह है कि वह हमेशा बना नहीं रह सकता।

विलियम फॉकनर

मुझे दर्द के अनुभव और कुछ नहीं के बीच चुनना पड़े, तब मैं दर्द का चयन करूँगा।

विलियम फॉकनर

मैं तब तक किसी भी दर्द को सहन कर सकता हूँ, जब तक उसका कोई अर्थ हो।

हारुकी मुराकामी

दर्द प्रक्रिया का हिस्सा है।

मार्क मैंसन

वह सिर्फ़ उसी के वेदनात्मक प्रहार से मारा जा सकता था जिसके लिए वह मरने को तैयार हो।

गाब्रिएल गार्सीया मार्केस

प्यार इतना दर्दनाक इसलिए होता है, क्योंकि यह हमेशा दो लोगों के बीच दो लोग जो दे सकते हैं; उससे अधिक की चाहत होता है।

एडना ओ’ब्रायन

दर्द के बारे में लिखना आसान है। दुख में हम सभी सुख से अलग-अलग होते हैं, लेकिन ख़ुशी के बारे में कोई क्या लिख सकता है?

ग्राहम ग्रीन
  • संबंधित विषय : सुख

मेरा घर भी वहीं है जहाँ पीड़ा का निवास है। जहाँ-जहाँ दुःख विद्यमान है वहाँ-वहाँ मैं विचरता हूँ।

किशनचंद 'बेवस'
  • संबंधित विषय : घर
    और 1 अन्य

थोड़ी देर के लिए दर्द को सुन्न कर देने से दर्द तब और भी तेज़ होगा, जब आप अंततः इसे महसूस करेंगे।

जे. के. रोलिंग

सिर्फ़ पीड़ा ही सच है, बाक़ी हर चीज़ पर संदेह किया जा सकता है।

जे. एम. कोएट्ज़ी
  • संबंधित विषय : सच

जो हमें दर्द देता है, उसे हम बहुत आसानी से भूल जाते हैं।

ग्राहम ग्रीन

जो कार्य करने से तो धर्म होता हो और कीर्ति बढ़ती हो और अक्षय, यश ही प्राप्त होता हो, उल्टे शरीर को कष्ट होता हो, उस कर्म का अनुष्ठान कौन करेगा?

वाल्मीकि

वह लोक कितना नीरस और भोंडा होता होगा जहाँ विरह वेदना के आँसू निकलते ही नहीं और प्रिय-वियोग की कल्पना से जहाँ हृदय में ऐसी टीस पैदा ही नहीं होती, जिसे शब्दों में व्यक्त किया जा सके।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

सर्जन एक यंत्रणा भरी प्रक्रिया है।

अज्ञेय

मेरे विचार में तो पीड़क होने से पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है। धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महँगा सौदा नहीं है।

प्रेमचंद

जब इंसान अपने दर्द को ढो सकने में असमर्थ हो जाता है तब उसे एक कवि की ज़रूरत होती है, जो उसके दर्द को ढोए अन्यथा वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा।

श्रीकांत वर्मा

दुःख-दर्द, निःसंगता और अकेलापन, ये जीनियस के भाग्य में होते हैं, क्योंकि काल के वह विरुद्ध सोचता है। जीनियस मानता है कि राजमत और लोकमत, दोनों त्रासक हो सकते हैं।

रामधारी सिंह दिनकर

प्रेम से प्रेम करने वाली आँख का पानी जब घास पर पड़ता है तो ओस का हीरा बनकर चमकता है, जब इंसान पर ज़ुल्म देखा है तो अँगारा बन कर गिरता है, जब दर्द देखकर गिरता है तो लहू की बूंद बनकर, और जब इंसान को भूखा देखता है तो वह गेहूँ बन जाता है। और नफ़रत से प्रेम करने वाली आँखों का पानी जब घास पर पड़ता है तो घास झुलस जाती है, जब इंसान पर ज़ुल्म देखता है तो उसमें बर्फ़ की-सी बे-दिल ठंडक जाती है, जब दर्द देखकर गिरता है तो बंदूक़ की गोली बनकर और जब इंसान को भूखा देखता है तो वह ग़ुलामी का दस्तावेज़ बन जाता है।

रांगेय राघव

प्रियतम आवे तो निद्रा नहीं आती, और अगर भी जाए तब भी नहीं आती। इनके मध्य में मेरे ये नेत्र असह्य दुःख से पीड़ित हैं।

तिरुवल्लुवर

इस सामाजिक व्यवस्था में ही नहीं, एक जीवंत और उल्लसित भावी व्यवस्था में भी ज्ञान का माध्यम सदा कष्ट ही रहेगा।

रघुवीर सहाय

किसी दुःख के परिणाम से कोई ज़हर नहीं खा सकता। यह तो षड्यंत्र होता है। आदमी को बुरी तरह हराने के बाद ज़हर का विकल्प सुझाया जाता है।

विनोद कुमार शुक्ल

परोपकार पुण्य तथा पर पीड़ा पाप है।

लूसिया कैरम

पीड़ा हठीले बच्चे की तरह है। समझा-बुझा कर किसी तरह थोड़ी देर के लिए वह वश में कर ली जा सकती है।

सियारामशरण गुप्त

पुरुषार्थी सर्वत्र भाग्य के अनुसार प्रतिष्ठा प्राप्त करता है, परंतु पुरुषार्थहीन सम्मान से भ्रष्ट होकर घाव पर नमक छिड़कने के समान कष्ट पाता है।

वेदव्यास

प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह तो हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है कभी झुँझलाता है, बदला लेता है।

महात्मा गांधी

मैं ख़रीद बैठा पीड़ा को यौवन के चिरसंचित धन से!

बच्चन सिंह
  • संबंधित विषय : धन

प्यार के धन का, सचमुचही कोई अपने हाथ से अमंगल नहीं कर सकता। उसका निज का दुःख चाहे जितना हो वह सहना ही होगा।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है।

भारवि
  • संबंधित विषय : समय

यह बजाय इसके इस भविष्यवाणी से संबंधित है जो पुरुषों को उनके जीवन के हर क्षण में होती है, एक पूर्वाभास जो दृढ़ता से दबाया और छिपा होता है—कि अगर उन्हें अपने ही हाल पर छोड़ दिया जाए, समय की नीरस, शांत संगति में, तो वे जल्दी से कमज़ोर हो जाएँगे।

ओल्गा तोकार्चुक

अगर कुछ मुझे दुख पहुँचाता है, तो मैं उसे अपने मानसिक मानचित्र से हटा देती हूँ। वे स्थान जहाँ मैंने ठोकर खाई, जहाँ मैं गिरी, जहाँ मुझे चोट लगी, जहाँ चीज़ें पीड़ादायक थीं—ऐसे स्थान अब मेरे भीतर नहीं हैं।

ओल्गा तोकार्चुक

जिस पर बन आई हो—वह दर्द क्या जाने।

लल्लेश्वरी

कोई भी यथार्थतः मूल्यवान वस्तु ऐसी नही है जो कष्टों श्रम के बिना ख़रीदी जा सके।

थॉमस एडिसन

कड़वाहट का गोला जब गले में पिघलता है तो आँखों में आँसुओं की चुभन शुरू हो जाती है।

कृष्ण बलदेव वैद

मेरा काम हमेशा नासाज़ हालात में ही हुआ है, साज़गार हालात में नहीं।

कृष्ण बलदेव वैद

दुःख से होने वाला मिलन टूटने वाला नहीं है। इसमें भय है और संशय। आँसुओं से जो हँसी फूटती है वह रहती है, रहती और चिर दिन रहती है।

रवींद्रनाथ टैगोर

विश्वास जितना पक्का होता है, उसके टूटने में उतना ही दर्द होता है। हिलता हुआ दाँत एक झटके में बाहर जाता है, पर जमा हुआ दाँत जब ‘‘डेंटिस्ट’’ निकलता है, तो सारे शरीर को हिला देता है।

हरिशंकर परसाई

उत्पीड़न की चिंगारी को अत्याचारी अपने ही आँचल में छिपाए रहता है।

जयशंकर प्रसाद

अकेलेपन, दुःख और एकांत को जो दार्शनिक जामा पहनाने की आदत है, वह तभी सुंदर और महान लगती है, जब ख़त्म हो जाने का डर हो।

दूधनाथ सिंह

दर्द कभी-कभी मुक्ति का साधन बन जाता है, तनाव से स्वतंत्रता का…

मलयज

दुःख, साथी है सुख का। जीवन की अलग-अलग ऋतुओं में वे साथ नृत्य करते हैं।

यून फ़ुस्से
  • संबंधित विषय : सुख