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दर्द पर उद्धरण

‘आह से उपजा होगा गान’

की कविता-कल्पना में दर्द, पीड़ा, व्यथा या वेदना को मानव जीवन के मूल राग और काव्य के मूल प्रेरणा-स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है। दर्द के मूल भाव और इसके कारण के प्रसंगों की काव्य में हमेशा से अभिव्यक्ति होती रही है। प्रस्तुत चयन में दर्द विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

जब इंसान अपने दर्द को ढो सकने में असमर्थ हो जाता है तब उसे एक कवि की ज़रूरत होती है, जो उसके दर्द को ढोए अन्यथा वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा।

श्रीकांत वर्मा

सर्जन एक यंत्रणा भरी प्रक्रिया है।

अज्ञेय

इस सामाजिक व्यवस्था में ही नहीं, एक जीवंत और उल्लसित भावी व्यवस्था में भी ज्ञान का माध्यम सदा कष्ट ही रहेगा।

रघुवीर सहाय

किसी दुःख के परिणाम से कोई ज़हर नहीं खा सकता। यह तो षड्यंत्र होता है। आदमी को बुरी तरह हराने के बाद ज़हर का विकल्प सुझाया जाता है।

विनोद कुमार शुक्ल

कड़वाहट का गोला जब गले में पिघलता है तो आँखों में आँसुओं की चुभन शुरू हो जाती है।

कृष्ण बलदेव वैद

मेरा काम हमेशा नासाज़ हालात में ही हुआ है, साज़गार हालात में नहीं।

कृष्ण बलदेव वैद

अकेलेपन, दुःख और एकांत को जो दार्शनिक जामा पहनाने की आदत है, वह तभी सुंदर और महान लगती है, जब ख़त्म हो जाने का डर हो।

दूधनाथ सिंह

उत्पीड़न की चिंगारी को अत्याचारी अपने ही आँचल में छिपाए रहता है।

जयशंकर प्रसाद

दुःख से होने वाला मिलन टूटने वाला नहीं है। इसमें भय है और संशय। आँसुओं से जो हँसी फूटती है वह रहती है, रहती और चिर दिन रहती है।

रवींद्रनाथ टैगोर

विश्वास जितना पक्का होता है, उसके टूटने में उतना ही दर्द होता है। हिलता हुआ दाँत एक झटके में बाहर जाता है, पर जमा हुआ दाँत जब ‘‘डेंटिस्ट’’ निकलता है, तो सारे शरीर को हिला देता है।

हरिशंकर परसाई

दर्द कभी-कभी मुक्ति का साधन बन जाता है, तनाव से स्वतंत्रता का…

मलयज

दुःख, साथी है सुख का। जीवन की अलग-अलग ऋतुओं में वे साथ नृत्य करते हैं।

यून फ़ुस्से
  • संबंधित विषय : सुख

हमारे घाव हमारी सहनशीलता के स्मरण हैं। जो युद्ध हमने लड़े और जीते, वे उनकी कथाएँ कहते हैं।

यून फ़ुस्से

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