आँसू पर उद्धरण
मानवीय मनोभाव के एक
प्रकट चिह्न के रूप में आँसू हमेशा से काव्य के विषय-वस्तु रहे हैं और वृहत रूप से इनके बहाने से कवियों ने विविध दृश्य और संवाद रचे हैं।
स्मृतियों का प्रतिफल आँसू है
यादों को भी पानी की ज़रूरत होती है—आँसुओं के पानी की।
वह लोक कितना नीरस और भोंडा होता होगा जहाँ विरह-वेदना के आँसू निकलते ही नहीं और प्रिय-वियोग की कल्पना से जहाँ ह्रदय में ऐसी टीस पैदा ही नहीं होती, जिसे शब्दों में व्यक्त न किया जा सके।
कड़वाहट का गोला जब गले में पिघलता है तो आँखों में आँसुओं की चुभन शुरू हो जाती है।
क्यों अश्रु न हों श्रृंगार मुझे?
आँसू में जीवन तरंगित होता रहता है।
कोई यह आँसू आज माँग ले जाता!