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आँसू पर उद्धरण

मानवीय मनोभाव के एक

प्रकट चिह्न के रूप में आँसू हमेशा से काव्य के विषय-वस्तु रहे हैं और वृहत रूप से इनके बहाने से कवियों ने विविध दृश्य और संवाद रचे हैं।

स्मृतियों का प्रतिफल आँसू है

श्रीकांत वर्मा

यादों को भी पानी की ज़रूरत होती है—आँसुओं के पानी की।

कृष्ण बलदेव वैद

वह लोक कितना नीरस और भोंडा होता होगा जहाँ विरह-वेदना के आँसू निकलते ही नहीं और प्रिय-वियोग की कल्पना से जहाँ ह्रदय में ऐसी टीस पैदा ही नहीं होती, जिसे शब्दों में व्यक्त किया जा सके।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

कड़वाहट का गोला जब गले में पिघलता है तो आँखों में आँसुओं की चुभन शुरू हो जाती है।

कृष्ण बलदेव वैद

अश्रु-प्रवाह तर्क और शब्द-योजना के लिए निकलने का कोई मार्ग नहीं छोड़ता।

प्रेमचंद

क्यों अश्रु हों श्रृंगार मुझे?

महादेवी वर्मा

आँसू में जीवन तरंगित होता रहता है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

कोई यह आँसू आज माँग ले जाता!

महादेवी वर्मा

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