आँसू पर दोहे
मानवीय मनोभाव के एक
प्रकट चिह्न के रूप में आँसू हमेशा से काव्य के विषय-वस्तु रहे हैं और वृहत रूप से इनके बहाने से कवियों ने विविध दृश्य और संवाद रचे हैं।
रो रोकर आँसू भरे
हुई पोखरे कीच।
देखा उसमें झाँककर
भीतर बैठा रीछ॥
प्रकट चिह्न के रूप में आँसू हमेशा से काव्य के विषय-वस्तु रहे हैं और वृहत रूप से इनके बहाने से कवियों ने विविध दृश्य और संवाद रचे हैं।
रो रोकर आँसू भरे
हुई पोखरे कीच।
देखा उसमें झाँककर
भीतर बैठा रीछ॥
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