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हाशिया

समय की अपनी रफ़्तार होती हैं। इस रफ़्तार में बहुत-सी जगहें छूटती रहती हैं। इन जगहों की भी अपनी लिखन और कहन होती है। ये इबारतें केंद्र और उसकी संरचना से स्वतंत्र होती है, इसलिए हाशिए पर नज़र आती हैं। लेकिन यह हाशिया यथार्थ का प्रतिनिधित्व और उसका सामना उसकी आँख में आँख डालकर करता है। इसलिए साहित्य के संसार में सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है। यहाँ ऐसे ही हाशिए से एक चयन संकलित है।

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