साहित्य और संस्कृति की घड़ी
साल 2019 की फ़्रांसीसी फ़िल्म ‘पोर्ट्रेट ऑफ़ ए लेडी ऑन फ़ायर’ इस सदी की उन चुनिंदा फ़िल्मों में से एक है, जिनका ज़िक्र ज़रूरी है। इस फ़िल्म की सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि आप कोई भी कोण, कोई भी दृश्य या कोई भी स
प्रिय विनोद कुमार शुक्ल जी, आपको मेरा सादर प्रणाम! मैंने जब ‘हिंद युग्म’ महोत्सव (रायपुर) में आपको पहली बार देखा और आपसे मिली तो मेरे मन में पहले जो भी भ्रांतियों के बादल घिरे थे, सब छँट गए। सो
—किराया, साहब... —मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं। एक काम करो, सीधे चल पड़ो 1/1 बिशप लेफ़्राॅय रोड की ओर। वहाँ एक लंबा साया दरवाज़ा खोलेगा। उससे कहना कि ऋत्विक घटक टैक्सी करके रास्तों से लौटा... जेबें
वर्ष 2025 गुजराती साहित्य के इतिहास में एक विशेष वर्ष है—इस वर्ष गुजराती भाषा और संस्कृति के एक विलक्षण साधक, फ़ादर वालेस (Father Carlos González Vallés) की जन्मशती मनाई जा रही है। फ़ादर वालेस का जन्
अप्रत्याशित हमेशा भय के भार तले दबा रहता है। नहीं घटने की इच्छा के साथ अदृश्य, जिसे हमेशा दूर से ही न कह दिया जाए। रोकथाम के लिए शरीर हरदम चौकन्ना रहता है। क़रीने से हर छोटी-बड़ी तैयारी की जाती है। ख
जब भी मैं किसी थके हुए आदमी को देखती हूँ, जिसकी गर्दन पर पसीने से भीगा गमछा रखा होता है, मुझे सोबरन कक्का याद आते हैं। उनके माथे का पसीना उसी में उतरता, खेत की मिट्टी उसी से झाड़ी जाती और जब वह चुप ह
02 नवम्बर 2025
भरतपुर की वह दुपहर साहित्य की ऊष्मा से भरी हुई थी। हवा में हल्की गर्मी थी, लेकिन सभा-गृह के भीतर विचारों की शीतल छाया पसरी हुई थी। देश का स्वतंत्रता-संग्राम अपने चरम पर था और साहित्यकार इस संघर्ष के
कहा गया है कि इंसान दो दुनियाओं में जीता है-अंदरूनी और बाहरी। अंदरूनी दुनिया अध्यात्म की दुनिया होती है जिसे वो किसी तरह की कला जैसे कि साहित्यिक लेखन, नृत्य, संगीत, चित्रकारी, स्थापत्य या मुजस्समे आ
सवेरा कमरे में पसर गया था इसलिए हमें उठना पड़ा। कमरे का दरवाज़ा खुलते ही बालकनी शुरू हो जाती, जहाँ से मंदिर का शिखर दिखता जो गली के उस तरफ़ पार्क के दक्षिणी छोर पर था, जिसमें संघ की शाखा लगती। हम बाल
सिट्रीज़ीन—वह ज्ञान के युग में विचारों की तरह अराजक नहीं है, बल्कि वह विचारों को क्षीण करती है। वह उदास और अनमना कर राह भुला देती है। उसकी अंतर्वस्तु में आदमी को सुस्त और खिन्न करने तत्त्व हैं। उसके स