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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

29 अक्तूबर 2025

‘कहाँ गए वे लोकगीतों वाले दिन’

‘कहाँ गए वे लोकगीतों वाले दिन’

कभी-कभी मेरे मन में एक दृश्य उतरता है। दृश्य—घनघोर बारिश का। चारों तरफ़ पानी-ही-पानी। मैं अकेले किसी वृक्ष के नीचे बैठा हुआ हूँ और कोई पद सुन रहा हूँ—कोई सूफ़ी-संगीत। मुझे आश्चर्य होता है कि जब-तब मैं

29 अक्तूबर 2025

चौदहवीं तितली कहीं नहीं मिली

चौदहवीं तितली कहीं नहीं मिली

धूप इतनी तीखी थी कि मेरी गर्दन पर पसीने की बूँदें काँटों की तरह निकल आई थीं, लेकिन में उसकी आँखों से झरती ओस में राहत महसूस कर रहा था। उसने कहा—मैंने तुम्हारे इन पत्रों को बार-बार पढ़ा। ना जलाने की

28 अक्तूबर 2025

भारतेंदु मिश्र : तरफराति पिंजरा है काठ कै चिरइया

भारतेंदु मिश्र : तरफराति पिंजरा है काठ कै चिरइया

कितना दारुण है यह लिखना—स्वर्गीय भारतेंदु मिश्र। मैं उन्हें दद्दा कहता रहा हूँ। अब दद्दा स्मृतियों में रहेंगे, उनकी आत्मीयताओं का बतरस कानों में बजता रहेगा, उनकी कविताओं की पंक्तियाँ वजह-बे-वजह मस्ति

28 अक्तूबर 2025

शारदा सिन्हा स्मृति शेष नहीं, स्मृति अशेष हैं

शारदा सिन्हा स्मृति शेष नहीं, स्मृति अशेष हैं

सो रहो मौत के पहलू में ‘फ़राज़’ नींद किस वक़्त न जाने आए और फिर वह सो गईं—चिर निद्रा में। यह 5 नवंबर 2024 की रात थी। बस एक दिन पहले ही वेंटिलेटर पर आई थीं। पर अब सबको लग ही रहा था कि अब नहीं लौ

27 अक्तूबर 2025

लिखने का सही समय

लिखने का सही समय

लिखने का सही समय क्या होता है? शायद वही समय—जब भीतर कुछ बेचैन करता है, चुपचाप करवटें बदलता है और शब्द बनकर बाहर आना चाहता है। बचपन में जब पहली बार पेंसिल उठाई थी तो यह नहीं पता था कि उससे करना क्य

27 अक्तूबर 2025

विनोद कुमार शुक्ल से दूसरी बार मिलना

विनोद कुमार शुक्ल से दूसरी बार मिलना

दादा (विनोद कुमार शुक्ल) से दुबारा मिलना ऐसा है, जैसे किसी राह भूले पंछी का उस विशाल बरगद के पेड़ पर वापस लौट आना—जिसकी डालियों पर फुदक-फुदक कर उसने उड़ना सीखा था। विकुशु को अपने सामने देखना जादू है।

25 अक्तूबर 2025

लोलिता के लेखक नाबोकोव साहित्य-शिक्षक के रूप में

लोलिता के लेखक नाबोकोव साहित्य-शिक्षक के रूप में

हमारे यहाँ अनेक लेखक हैं, जो अध्यापन करते हैं। अनेक ऐसे छात्र होंगे, जिन्होंने क्लास में बैठकर उनके लेक्चरों के नोट्स लिए होंगे। परीक्षोपयोगी महत्त्व तो उनका अवश्य होगा—किंतु वह तो उन शिक्षकों का भी

24 अक्तूबर 2025

लोक : भोजपुरी लोकगीत : विस्मृत धरोहर

लोक : भोजपुरी लोकगीत : विस्मृत धरोहर

भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह सामाजिक पहचान, वर्ग, जाति और सत्ता संरचनाओं से निर्मित राजनीति की भी वाहक होती है। इसे ‘प्रतीकात्मक पूँजी’ के तौर पर भी देखा जा सकता है, जो किसी समाज की सा

23 अक्तूबर 2025

सिनेमा में प्रेमचंद : साहित्य, बाज़ार और प्रतिरोध

सिनेमा में प्रेमचंद : साहित्य, बाज़ार और प्रतिरोध

“जिन हाथों में फ़िल्म की क़िस्मत है, वे बदक़िस्मती से इसे इंडस्ट्री समझ बैठे हैं। इंडस्ट्री को ‘मज़ाक़’ और इसलाह से क्या निस्बत? वह तो एक्सप्लायट करना जानती है और यहाँ इंसान के मुक़द्दसतरीन (पवित्रतम

22 अक्तूबर 2025

झाड़ियों का शाप

झाड़ियों का शाप

यह घटना नवंबर के आस-पास की है, जब सेमेस्टर का ख़ौफ़ हर विद्यार्थी पर तारी होता है। इन दिनों में हर अच्छा और गदहा विद्यार्थी आपको रट्टा मारते मिलेगा और बात अगर हॉस्टल में रहने वाले लड़कों की हो तो कहन