साहित्य और संस्कृति की घड़ी
17 अगस्त 2025
• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे हैं
श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत
03 अगस्त 2025
• नशे की वजह से कभी-कभार थोड़ा बहुत ग़ुस्सा बन जाता है और आपसी चिल्प-पों के बाद ऊपर आसमान में गुम हो जाता है। इस नशे की स्थिति में ऐसा भी लगता है कि हम सजग हो गए हैं। साहित्य के सन्वीक्षा-संसार में
इस जुलाई की उमस भरी शनिवार की दुपहर में; जब नोएडा के अधिकांश दफ़्तरों में कर्मचारी छुट्टी पर थे, ‘हिन्दवी’ की संपादकीय टीम एक कमरे में बैठकर अपने आचरण के अनुरूप हिंदी-साहित्य में एक नया प्रयोग कर रही
13 जुलाई 2025
• संभवतः संसार की सारी परंपराओं के रूपक-संसार में नाविक और चरवाहे की व्याप्ति बहुत अधिक है। गीति-काव्यों, नाटकों और दार्शनिक चर्चाओं में इन्हें महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आधुनिक समाज-विज्ञान
09 जुलाई 2025
क्या तलाश है, कुछ पता नहीं* वह पीता रहा अपनी ज़िंदगी को एक सिगरेट की तरह तापता रहा अपनी उम्र को एक अलाव की तरह और हम ढूँढ़ते हैं उस राख के क़तरे तलाशते हैं उसके बेचैन होंठों की थरथराहट उसकी
मिरा वक़्त मुझ से बिछड़ गया मिरा रंग-रूप बिगड़ गया जो ख़िज़ाँ से बाग़ उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ मुज़्तर ख़ैराबादी ज़्यादा नहीं बीस बरस पहले तक, गाँवों में बाग़ों का अस्तित्व बचा हुआ
29 जून 2025
• उस लड़की की छवि हमेशा के लिए स्टीफ़न की आत्मा में बस गई, और फिर उस आनंद में डूबा हुआ पवित्र मौन किसी भी शब्द से नहीं टूटा... आप सोच रहे होंगे कि यहाँ किसी आशिक़ की किसी माशूक़ के लिए मक़बूलियत की बा
16 जून 2025
लेख से पहले चंद शब्द कुछ दिन पहले अपने पुराने काग़ज़ात उलट-पलट रही थी कि एक विलक्षण लेख हाथ आया। पंडित वाहिद काज़मी का लिखा—हेडलाइन प्लस, जुलाई 2003 में प्रकाशित। शीर्षक पढ़कर ही झुरझुरी आ गई। एक स
15 जून 2025
• अवसर कोई भी हो सबसे केंद्रीय महत्व केक का होता है। वह बिल्कुल बीचोबीच होता हुआ, फूला हुआ, चमकता हुआ, अकड़ा हुआ, आकर्षित करता हुआ रखा होता है। वह एक विचारहीन प्रविष्टि के रूप में हर जगह आवश्यक बन