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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

16 मार्च 2025

‘रविवासरीय : 3.0 : कभी-कभी लगता है कि गोविंदा भी कवि है’

‘रविवासरीय : 3.0 : कभी-कभी लगता है कि गोविंदा भी कवि है’

• यहाँ प्रस्तुत मज़मून लगभग चार वर्ष पुराना है, लेकिन इसके नायक से संबंधित समाचार रोज़-रोज़ कुछ इस क़दर आते हैं कि यह रोज़-रोज़ नया होता जाता है! • गत वर्ष के एक अक्टूबर की सुबह पाँच बजे के आस-पास छह गोल

14 मार्च 2025

जीवन का आनंद है होली

जीवन का आनंद है होली

होली हिंदू जीवन का आनंद है। जीवन में यदि आनंद न हो तो वह किस काम का? जिये सो खेले फाग, मरे सो लेखे लाग। मानो जीवन का सुख होली है और जीना है तो होली के लिए। चार त्योहार हिंदुओं के मुख्य हैं। श्र

09 मार्च 2025

रविवासरीय : 3.0 : ‘चारों ओर अब फूल ही फूल हैं, क्या गिनते हो दाग़ों को...’

रविवासरीय : 3.0 : ‘चारों ओर अब फूल ही फूल हैं, क्या गिनते हो दाग़ों को...’

• इधर एक वक़्त बाद विनोद कुमार शुक्ल [विकुशु] की तरफ़ लौटना हुआ। उनकी कविताओं के नवीनतम संग्रह ‘केवल जड़ें हैं’ और उन पर एकाग्र वृत्तचित्र ‘चार फूल हैं और दुनिया है’ से गुज़रना हुआ। गुज़रकर फिर लौटना हुआ।

02 मार्च 2025

रविवासरीय : 3.0 : आधा सुचिंतित, आधा सुगठित, बाक़ी तार्किक

रविवासरीय : 3.0 : आधा सुचिंतित, आधा सुगठित, बाक़ी तार्किक

• गत रविवासरीय पढ़कर हिंदी-जगत में संभव हुए भगदड़रत व्यवहार के बाद, इस बार इस स्तंभ [रविवासरीय] की संरचना पर कुछ बातें दर्ज करने का दिल कर रहा है और कुछ उत्तर-प्रतिउत्तर प्रस्तुत करने का भी... इस स्

23 फरवरी 2025

रविवासरीय : 3.0 : ‘जो पेड़ सड़कों पर हैं, वे कभी भी कट सकते हैं’

रविवासरीय : 3.0 : ‘जो पेड़ सड़कों पर हैं, वे कभी भी कट सकते हैं’

• मैंने Meta AI से पूछा : भगदड़ क्या है? मुझे उत्तर प्राप्त हुआ :  भगदड़ एक ऐसी स्थिति है, जब एक समूह में लोग अचानक और अनियंत्रित तरीक़े से भागने लगते हैं—अक्सर किसी ख़तरे या डर के कारण। यह अक्सर

16 फरवरी 2025

रविवासरीय : 3.0 : ‘मेरा दुश्मन बनने में अब वह कितना वक़्त लेगा’

रविवासरीय : 3.0 : ‘मेरा दुश्मन बनने में अब वह कितना वक़्त लेगा’

• प्रशंसा का पहला वाक्य आत्मीय लगता है, लेकिन प्रशंसा के तीसरे वाक्य में प्रशंसा का तर्क भी हो; तब भी उससे बचने का मन करता है, क्योंकि प्रशंसा के दूसरे वाक्य से ही ऊब होने लगती है। • विष्णु खरे की

09 फरवरी 2025

रविवासरीय : 3.0 : ‘इन्हें कोई काश ये बता दे मकाम ऊँचा है सादगी का...’

रविवासरीय : 3.0 : ‘इन्हें कोई काश ये बता दे मकाम ऊँचा है सादगी का...’

• एक प्रकाशक को देखकर मेरे मन में सबसे पहला ख़याल यही आता है कि उससे किताब ले लूँ। यहाँ ‘किताब ले लेने’ का अर्थ एकायामी नहीं है।  • हिंदी के साहित्यिक प्रकाशकों के विषय में जो बात सबसे ज़्यादा परेशा

05 फरवरी 2025

'बहुत भेदक, कुशाग्र और कल्पनाशील पुस्तकें ही बचेंगी'

'बहुत भेदक, कुशाग्र और कल्पनाशील पुस्तकें ही बचेंगी'

नई दिल्ली में जन्मीं साहित्यिक पत्रकारिता से लंबे समय तक संबद्ध रहने वालीं गगन गिल नब्बे के दशक में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ के साथ अपनी अभूतपूर्व उपस्थिति से हिंदी कविता के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़

01 जनवरी 2025

निर्वाण से नरक तक : जेंडर पुनर्मूल्यांकन सर्जरी के लिए जूझता भारतीय ट्रांसजेंडर

निर्वाण से नरक तक : जेंडर पुनर्मूल्यांकन सर्जरी के लिए जूझता भारतीय ट्रांसजेंडर

ट्रांस महिला रीता फ़ौजदार को जेंडर पुनर्मूल्यांकन सर्जरी के लिए पैसे जुटाने के दौरान यह नहीं पता था कि उसे ऑपरेशन के बाद भी डेढ़ महीने तक कड़ी देखभाल की ज़रूरत होगी। उसके डॉक्टर ने ऑपरेशन की हर पेचीद

24 दिसम्बर 2024

श्याम बेनेगल : ग़ैर-समझौतापरस्त रचनात्मक मिशन का सबसे भरोसेमंद और बुलंद स्मारक

श्याम बेनेगल : ग़ैर-समझौतापरस्त रचनात्मक मिशन का सबसे भरोसेमंद और बुलंद स्मारक

अस्सी के दशक की ढलान पर तेज़ी से लुढ़क रहे एक असंस्कृत समय में टीवी पर ‘भारत एक खोज’ शीर्षक धारावाहिक के अथ और इति का पार्श्वसंगीत अपने-आप में ग़ुस्ताख़ी से कम नहीं था। कास्टिंग में शामिल नाम और व