सौ बार मंच पर उतर चुकी एक कविता के बारे में
एक भाषा में कालजयी महत्त्व प्राप्त कर चुकीं साहित्यिक कृतियों के पुनर्पाठ के लिए केवल समालोचना पर निर्भर रहना एक तरह की अकर्मठता और पिछड़ेपन का प्रतीक है। यह निर्भरता तब और भी अनावश्यक है जब आलोचना-पद
एक भाषा में कालजयी महत्त्व प्राप्त कर चुकीं साहित्यिक कृतियों के पुनर्पाठ के लिए केवल समालोचना पर निर्भर रहना एक तरह की अकर्मठता और पिछड़ेपन का प्रतीक है। यह निर्भरता तब और भी अनावश्यक है जब आलोचना-पद
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