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यों याद किए गए नवीन सागर

गत शुक्रवार, 27 सितंबर को हौज़ ख़ास विलेज, नई दिल्ली में ‘नवीन सागर स्मृति रचना समारोह’ का पहला आयोजन हुआ। मेरी नज़र में बीते कई सालों में हिंदी-संसार में हो रहे आयोजनों में ऐसा कोई आयोजन हुआ या होता नहीं दिखा है। यह नवीन-प्रयोग तमाम नवीन-प्रेमियों के सहयोग और प्रेम का फल है। यहाँ यह बात नवीन सागर के अंदाज़ में कहूँ तो तमाम राष्ट्रवादी, उत्कृष्टतावादी, कलावादी, शुद्धतावादी और मार्क्सवादी तथा वे तमाम वादी-प्रतिवादी जो कविता की बर्बादी के लिए ज़िम्मेदार हैं, उन्हें यह आयोजन अच्छा नहीं लगेगा, क्योंकि यहाँ वो सब नहीं हुआ जो इन दिनों हिंदी-साहित्य-संसार के आयोजनों में होता रहता है।

नवीन सागर के संसार को देखते हुए

एक अत्यंत उत्कृष्ट कवि नवीन सागर, जिन्हें पढ़ते हुए बार-बार लगता है—जैसे वह अकेलेपन, ख़ामोशी, भीतर के ख़ालीपन और हमारे बीच का पुल हैं। लगता है मानो वह हमारे भीतर की विचित्र-रहस्यमय दुनिया को उजागर करते हैं। वह हमारी उलझनों को शब्द देते हैं। वह हमारे होने की छटपटाहट को शब्दों में कसते हैं। उनके रचना-संसार में हर शब्द अपने भीतर के नाद को रहस्य नहीं रहने देता। वह अपने अर्थ में अर्थ जैसा लगता है। 

नवीन के संसार में रहते हुए, खिड़की के उस तरफ़ जाना मुश्किल नहीं लगता। उनकी कविताएँ एक पुकार भरती हैं कि थामने की कोशिश करो—जीवन में कितनी ही आशाएँ बची हैं। दूर जाना विकल्प नहीं हो सकता। चलने की तरीक़े से रास्ता नहीं बदलता, तुम बदलते हो। उनके संसार की सुंदरता ही यही है कि वह समझ, ऊब, मृत्यु से इतर हमें जीवन को जीवन की तरह से स्वीकार करने का साहस देते हैं।

अनंत अपनी मृत्यु में रहते हैं इतने धुँधले
कि हमारी झलक में बार-बार जन्म लेते हैं संसार!

नवीन सागर स्मृति रचना समारोह : नवीन सागर को और पास से देखना

नवीन सागर स्मृति रचना समारोह—हौज़ ख़ास झील के पास स्थित नवीन-छाया पॉटरी स्टूडियो में हुआ, जहाँ पहुँचने के लिए हम एक गलियारे से गुज़रते हुए निकले और हमारे सामने एक बड़ा-सा हॉल था। हर तरफ़ पॉटरी से जुड़ी चीज़ें रखी हुई थीं, जिसे कम-से-कम एक बार देखे बिना तो आगे निकला नहीं जा सकता था। हॉल में सभी के लिए गद्दे बिछे थे, कोई कुर्सी नहीं। नवीन सागर से जुड़े कार्यक्रम में प्रवेश करते ही ऐसे आत्मीय परिवेश को देखना कार्यक्रम के परिचय का यह अनूठा तरीक़ा बेहद पसंद किया गया। इतने अनौपचारिक माहौल में नवीन-प्रेमियों की संगत कैसी रही होगी, आगे आप कल्पना कर सकते हैं।

बिना किसी हबड़-तबड़ के नवीन-स्मरण शुरू हुआ। जैसा कि तय था—समारोह में रामकुमार तिवारी और शम्पा शाह ने नवीन सागर के जीवन और रचनाओं पर बात करते हुए उनसे जुड़े अपने संस्मरण साझा किए। नवीन सागर को याद करते हुए, रामकुमार तिवारी ने युवा-पीढ़ी को बधाई देते हुए इस बात की ख़ुशी जताई कि नवीन सागर जैसे लेखकों को उनके द्वारा जानने-पढ़ने और महसूस करने का यह प्रयास सुखद और भावुक करने वाला है। उन्होंने यह भी माना कि युवा पीढ़ी जिस तरह आज नवीन सागर के रचना-कर्म से जुड़ रही है, उनकी कविताओं में छिपे जीवन को तलाशा जा रहा है—यह नवीन सागर द्वारा किए गए कविता-जीवन-प्रयोगों का सफल होना है, जिसके लिए वह अकेले बार-बार मनुष्य जाति के अँधरों में, उसकी टूटन में, डुबोने वाली गहराइयों-कष्टों में उतरते रहे कि वह वो भाषा गढ़ सकें जिससे आपको जीवन के दुखों को समझने के लिए जोड़ा जा सके, न कि दूर किया जाए।

वहीं शम्पा शाह को नवीन-स्मरण करते हुए सुनना, समय-यात्रा में जाने जैसा था। वह जब नवीन सागर को याद कर रही थीं—उनकी ऊर्जा, उनका स्वर, उनकी आभा ने यह महसूस करने को मजबूर किया कि वह नवीन सागर की रचनाओं, उनकी बातों, जीवन के कितने क़रीब हैं। नवीन सागर के निधन के समय को याद करते हुए, जब वह बताती हैं कि कैसे उनका जाना जो तय था, लेकिन वह उनको कभी आता नहीं दिखा। नवीन सागर के निधन की एक रात पहले ही वह उनसे मिलकर गईं और अगले दिन वह नहीं थे। उनके नहीं होने का भान जब महसूस हुआ और ‘जब ख़ुद नहीं था’ से वह दुबारा गुज़रीं तो उन्हें लगा कि जैसे यह तय था, लेकिन यह उन्हें क्यों नहीं दिखा! यह कैसे हुआ कि एक व्यक्ति जो आपका इतना प्रिय है, वह न जाने कब से अँधेरे में, कब से सोया नहीं है, और आपको वह यह महसूस न होने दे। शम्पा शाह का पूरा नवीन-स्मरण बार-बार आँखों में नमी लाता रहा।

समारोह में आगे अविनाश मिश्र ने नवीन सागर की कुछ चुनिंदा कविताओं का पाठ किया और अंत में देवी प्रसाद मिश्र, शायक आलोक, सौरभ अनंत, अखिलेश सिंह, अंकिता शाम्भवी ने नवीन-स्मरण करते हुए अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया।

नवीन-छाया पॉटरी स्टूडियो : एक कृतज्ञ और प्यारी परिकल्पना 

हौज़ ख़ास स्थित नवीन-छाया पॉटरी स्टूडियो में हुआ ‘नवीन सागर स्मृति रचना समारोह’ इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि नवीन सागर के बीतने के 24 सालों में पहली बार इस तरह का कोई आयोजन हुआ है। जहाँ नवीन-प्रेमियों ने उन्हें और नज़दीक से जाना और याद किया। जबकि वह कहते रहे—

अपने भूले रहने की याद में
जीवन अच्छा लगता है।

नवीन-छाया पॉटरी स्टूडियो की देख-रेख-संचालन अनिरुद्ध सागर और उनकी टीम करती है। अनिरुद्ध इस स्टूडियो की कल्पना का श्रेय अपने माता-पिता छाया सागर और नवीन सागर को देते हैं। कार्यक्रम में ही रामकुमार तिवारी ने अनिरुद्ध और नवीन सागर से जुड़ा एक संस्मरण सुनाया —

अनिरुद्ध सागर जब कक्षा नौ में थे, तो एक रोज़ पिता नवीन सागर से आकर बोले कि स्कूल नहीं जाना चाहते। नवीन ने पूछा क्यों नहीं जाना? तो अनिरुद्ध का जवाब आया—“क्योंकि अच्छा नहीं लगता।”

नवीन ने उनकी बात मानी और कहा—‘‘मत जाओ।’’ 

पीछे से छाया सागर बोलीं—‘‘यह कैसी बात हुई स्कूल नहीं जाएगा तो क्या करेगा!’’

नवीन सागर का जवाब था—‘‘बाबू बन जाएगा, कुम्हार, बढ़ई कुछ बन जाएगा... क्या बुरा है छाया। उसका मन नहीं है तो नहीं है।’’

ऐसी हमारी ज़िंदगी
ऐसी हमारी प्यास है
हम सोचते हैं कोई क्या कहेगा।

यहाँ से अनिरुद्ध पंद्रह साल की उम्र में भारत भवन आए और बाक़ी उन्होंने पिता के विश्वास को कैसे एक कला-स्टूडियो का रूप दिया—यह देखने के लिए आप नवीन-छाया पॉटरी स्टूडियो आ सकते हैं।

कई बार कार्यक्रमों से लौटते हुए, मन में यह सवाल आया है कि यहाँ आकर क्या बदला? इतने सालों में पहली बार जवाब मिला—नहीं आता तो बहुत कुछ छूट जाता और यह विचार भी पुष्ट नहीं हो पाता कि कला, साहित्य और जीवन में आप हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगे अगर आप सच्चाई से, विश्वास से, मनुष्यता से, मौलिक होकर उसे निभाने की कोशिश करते रहेंगे।

समारोह में उपस्थित रहे लोगों को देखकर, एक बात साफ़ है कि नए पाठकों की पीढ़ी में हिंदी-साहित्य के बिला-वजह ही बनाए हुए प्रतिमानों के इतर नवीन सागर जैसे रचनाकारों की तलाश और सघन होगी। देर है तो बस उनसे उनके परिचय होने की...

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