साहित्य और संस्कृति की घड़ी
01 जनवरी 2026
मैं विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यासों का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। उनके उपन्यासों ने जीवन को नए ढंग से देखना सिखाया है। यथार्थ को अलग-अलग तरीक़े से कैसे व्यक्त किया जा सकता है, यह बताया है। उनके सारे उपन्या
वाक्य-विनोद-विन्यास-शुक्ल—मतलब विनोद कुमार शुक्ल का वाक्य-विन्यास। हालाँकि विनोद कुमार शुक्ल ख़ुद शायद ही कभी इस तरह की तोड़-मरोड़ अपने वाक्य के साथ करते हों। वाक्य मतलब वह वाक्य नहीं जिसे व्याकरण की
31 दिसम्बर 2025
आने-जाने से ही मिलकर यह संसार बना है। इन दोनों के बीच कोई विच्छेद नहीं है। विच्छेद की कल्पना हम अपने मन में ही करते रहते हैं। सृष्टि, स्थिति और प्रलय ये तीनों एकमेव होकर रह रहे हैं। सदा एक साथ बने हु
एमजे, परंपराएँ कवियों को कहीं का नहीं छोड़तीं। ऐसे ही दिनचर्या की आदत। यह चाहते हुए भी कि किसी तरह की आदत बुरी न बने, कई नशे आदमी ज़िंदगी में ओढ़ लेता है। एक बहुत भारी साल के तमाम होते-होते, जिस इ
30 दिसम्बर 2025
विनोद कुमार शुक्ल ने जैसी कविता लिखी है, वैसी किसी और ने नहीं लिखी है। यहाँ मुक्तिबोध की बात करें तो उनकी नक़ल संभव नहीं है। उनके समकालीन आलोचक तो उन्हें समझ ही नहीं पाए, क्योंकि वह बहुत अलग कवि थे।
सूचियाँ सर्वत्र व्याप्त अव्यवस्था में एक व्यवस्था गढ़ती हैं। पर यह उनकी नियति है कि वे प्राय: संदिग्ध होती हैं। इस दृश्य में यह सजगता का दायित्व है कि वह सदा दे दिए गए से बाहर देखे और यह स्वीकार करे क
जाते-जाते कुछ भी नहीं बचेगा जब तब सब कुछ पीछे बचा रहेगा और कुछ भी नहीं में सब कुछ होना बचा रहेगा विनोद कुमार शुक्ल की यह कविता पंक्तियाँ मुझे दैविक, दैहिक और गहरे आध्यात्मिक ताप की आँच में तपने
28 दिसम्बर 2025
विनोद कुमार शुक्ल के बारे में मुझे एक मर्मस्पर्शी बात यह लगती है कि वह हमेशा छोटी जगहों पर रहे। जो जगहें बड़ी, केंद्रीय या सत्ता के नज़दीक मानी जाती हैं; वह उनसे दूर रहते रहे हैं। एक और बात यह है कि
कितना बहुत है परंतु अतिरिक्त एक भी नहीं एक पेड़ में कितनी सारी पत्तियाँ अतिरिक्त एक पत्ती नहीं एक कोंपल नहीं अतिरिक्त एक नक्षत्र अनगिनत होने के बाद। अतिरिक्त नहीं है गंगा अकेली एक होने के बाद—
26 दिसम्बर 2025
यह एक विरल संयोग है कि विनोद कुमार शुक्ल जितने बड़े कवि हैं, उतने ही बड़े कथाकार भी हैं। यह बात हिंदी के बहुत कम लेखकों में है। यदि मैं हिंदी की परंपरा में उन्हें देखूँ तो यह बहुत विशाल है—यह काम इति