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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

29 जून 2024

‘दुनिया के मजदूरो! आराम करो।’

‘दुनिया के मजदूरो! आराम करो।’

किसी को कभी भी कोई भी काम नहीं करना चाहिए। काम दुनिया के सारे दुखों की जड़ है। बुराई चाहे कोई हो, सारी की सारी या तो काम से पैदा होती हैं, या फिर काम की दुनिया में रहने से। दुखों से मुक्ति का मतलब

28 जून 2024

विपश्यना जहाँ आँखें बंद करते ही एक संसार खुलता है

विपश्यना जहाँ आँखें बंद करते ही एक संसार खुलता है

एक Attention is the new Oil अरबों-करोड़ों रुपए इस बात पर ख़र्च किए जाते हैं कि हमारे ध्यान का कैसे एक टुकड़ा छीन लिया जाए। सारा बाज़ार, ख़ासकर वर्चुअल संसार दर्शक (पढ़ें : ग्राहक) के इस ध्यान को भटका

27 जून 2024

जौनपुर भड़ैंती उर्फ़ नक़ल : एक ख़त्म होती नाट्य-विधा

जौनपुर भड़ैंती उर्फ़ नक़ल : एक ख़त्म होती नाट्य-विधा

कुछ वर्ष पूर्व तक पूर्वांचल के देहातों-क़स्बों-शहरों की दीवारों पर हिंदुस्तानी, अवधी या भोजपुरी में लिखे सूचना-पट्ट इस तरह के होते थे—कल्लू नक़्क़ाल, बिस्मिल्लाह भाँड, रमपत हरामी मंडली इत्यादि...  कि

26 जून 2024

इंडिया फ़ेलो अपने 17वें बैच के लिए ले रहा है आवेदन

इंडिया फ़ेलो अपने 17वें बैच के लिए ले रहा है आवेदन

इंडिया फ़ेलो युवा भारतीयों के लिए सामाजिक नेतृत्व हासिल करने का कार्यक्रम है। यह भारतीय परिवेश में ज़मीनी स्तर से जुड़कर, काम करते हुए, अनुभव हासिल करते हुए भारत के अध्येताओं को अपनी नेतृत्व क्षमता खोज

26 जून 2024

विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य

विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य

महोदया ‘श’ के लिए  एक ‘स्त्री दुःख है।’ मैंने हिंदी समाज में गीत चतुर्वेदी और आशीष मिश्र की लोकप्रिय की गई पतली-सुतली सिगरेट जलाते हुए एक सुंदर फ़ेमिनिस्ट से कहा और फिर डर कर वाक्य बदल दिया—

25 जून 2024

ओशो अपनी पुस्तकों के विषय में

ओशो अपनी पुस्तकों के विषय में

मेरे पिता वर्ष में कम से कम तीन या चार बार बंबई जाया करते थे और वह सभी बच्चों से पूछा करते थे, “तुम अपने लिए क्या पसंद करोगे?” वह मुझसे भी पूछा करते, “अगर तुम को किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो मैं उसको

24 जून 2024

सूफ़ी आंदोलन के कुछ अनछुए पहलू

सूफ़ी आंदोलन के कुछ अनछुए पहलू

सन्यासी फ़क़ीर विद्रोह के नायक बाबा मजनू शाह आज़ादी के लिए देश में कई लड़ाईयाँ लड़ी गई हैं और कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना बलिदान दिया है। इतिहास में दर्ज पहला स्वाधीनता संग्राम फ़क़ीर-सन्यासी वि

23 जून 2024

क्या है क़व्वाली वाया सूफ़ी-संगीत का खुलता दरीचा

क्या है क़व्वाली वाया सूफ़ी-संगीत का खुलता दरीचा

हिंदुस्तान में क़व्वाली सिर्फ़ संगीत नहीं है। क़व्वाली इंसान के भीतर एक सँकरे मार्ग का निर्माण करती है, जिसमें एक तरफ़ ख़ुद को डालने पर दूसरी तरफ़ ईश्वर मिलता है। क़व्वाली की विविध विधाएँ हिंदुस्तान म

22 जून 2024

गंगा-जमुनी तहज़ीब और हिंदुस्तानी सूफ़ीवाद

गंगा-जमुनी तहज़ीब और हिंदुस्तानी सूफ़ीवाद

हमारी इस साझा संस्कृति का निर्माण एक दिन में नहीं हुआ है। यह धीरे-धीरे विकसित हुई है। कई सामाजिक प्रयोग हुए हैं और अपने विरोधाभासों को किनारे रखकर समानताओं पर कार्य किया गया है। शुरूआती दौर का सूफ़ी-स

21 जून 2024

कोटि जनम का पंथ है, पल में पहुँचा जाय

कोटि जनम का पंथ है, पल में पहुँचा जाय

हिंदुस्तान में सूफ़ी-भक्ति आंदोलन एक ऐसी पुरानी तस्वीर लगता है, जिसके टुकड़े-टुकड़े कर विभिन्न दिशाओं में फेंक दिए गए। जिसे जो हिस्सा मिला उसने उसी को सूफ़ी मान लिया। हिंदी, उर्दू, फ़ारसी, पंजाबी, बंगाली,

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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