स्मृति पर बेला
स्मृति एक मानसिक क्रिया
है, जो अर्जित अनुभव को आधार बनाती है और आवश्यकतानुसार इसका पुनरुत्पादन करती है। इसे एक आदर्श पुनरावृत्ति कहा गया है। स्मृतियाँ मानव अस्मिता का आधार कही जाती हैं और नैसर्गिक रूप से हमारी अभिव्यक्तियों का अंग बनती हैं। प्रस्तुत चयन में स्मृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।
28 अक्तूबर 2025
भारतेंदु मिश्र : तरफराति पिंजरा है काठ कै चिराइया
कितना दारुण है यह लिखना—स्वर्गीय भारतेंदु मिश्र। मैं उन्हें दद्दा कहता रहा हूँ। अब दद्दा स्मृतियों में रहेंगे, उनकी आत्मीयताओं का बतरस कानों में बजता रहेगा, उनकी कविताओं की पंक्तियाँ वजह-बे-वजह मस्ति
शारदा सिन्हा स्मृति शेष नहीं, स्मृति अशेष हैं
सो रहो मौत के पहलू में ‘फ़राज़’ नींद किस वक़्त न जाने आए और फिर वह सो गईं—चिर निद्रा में। यह 5 नवंबर 2024 की रात थी। बस एक दिन पहले ही वेंटिलेटर पर आई थीं। पर अब सबको लग ही रहा था कि अब नहीं लौ
असरानी के लिए दस कविताएँ
असरानी एक असरानी के निधन पर हमें कितना ग़मगीन होना चाहिए राजेश खन्ना के निधन से ज़्यादा या राजेश खन्ना के निधन से कम? दो वह कहानी का हिस्सा थे पर कहानी उनके बारे में नहीं थी कभी वह न
असमाप्य अनुष्ठान : रतन थियम का रंगकर्म
नाटक शुरू होने के पहले की थर्ड बेल बजती है। नाट्यशाला का अँधेरा गाढ़ा होते-होते किसी प्रागैतिहासिक, चंद्रमा विहीन रात्रि के ठोस अँधेरे में बदल जाता है। और तब पृथ्वी के किसी सुदूर कोने से एक वृंदगान क
झाँसी-प्रशस्ति : जब थक जाओ तो आ जाना
मेरा जन्म झाँसी में हुआ। लोग जन्मभूमि को बहुत मानते हैं। संस्कृति हमें यही सिखाती है। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर है, इस बात को बचपन से ही रटाया जाता है। पर क्या जन्म होने मात्र से कोई शहर अपना ह
रामचंद्र शुक्ल, हिंदी शब्दसागर और नागरीप्रचारिणी सभा
आज हिंदी के शीर्षस्थ आलोचक और साहित्य के इतिहासकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जयंती है। काशी नागरीप्रचारिणी सभा शुक्लजी की आलोचना की जन्मभूमि है। 1908 से 1930—लगातार 28 वर्षों तक वह ‘सभा’ की ऐतिहासिक प
02 अक्तूबर 2025
स्कूली निबंधों में महात्मा गांधी
गांधी-जयंती आ रही है। बचपन में हमारे पाठ्यक्रम का बड़ा अहम हिस्सा रहे हैं बापू। स्कूल में गाय-भैंस, सहेला-सहेली, माता-पिता, नानी-दादी के घर पर बिताई छुट्टियाँ, रेलगाड़ी का सफ़र, बसंत-बरसात आदि की तरह
रामलीला तेरी याद में नैन हुए बेचैन
नब्बे के दशक के उतरते साल थे। न केबल टीवी गाँव पहुँचा था, न फ़ोन। बिजली पहुँच तो गई थी, पर अक्सर ग़ायब ही रहती थी। न उसके आने का कोई नियम था, न जाने का। लोग भी बिजली पर पूरी तरह आश्रित नहीं थे और न ह
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी और ‘फ़ानी बाक़ी’
आज का दिन मेरे महबूब शहर इलाहाबाद के महबूब साहित्यकार और आलोचक शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी की जन्मतिथि है। वह आसमां में चमकते हुए तारों में से एक हैं, जिसे मैं आज के दिन देखना चाहता हूँ। इलाहाबाद के साहित्
इलाहाबाद मेरे लिए यूटोपिया में तब्दील होता जा रहा है
14 सितंबर 2022 कल किसी ने व्हाट्सएप पर एक स्टेटस लगा रखा था। किसी की मृत्यु का। बहुत सुंदर चेहरा था। जवान था। मैंने पूछा : कौन हैं भाई? जवाब आया : शाइर थे! मैंने पूछा : आत्महत्या? जवाब आया : हाँ!
भूले-भटके दिन : कुछ रूमानी टुकड़े
मैंने अपने सबसे असुरक्षित क्षणों में जब-जब तुम्हें याद किया है, तब-तब यह सवाल आया कि बीतते समय के साथ मैं तुम्हारे लिए महत्त्वपूर्ण रहूँगा कि नहीं! संभव है, यह प्रश्न तुम्हारे ज़ेहन में भी उठता होगा,
ज़ुबिन गार्ग : समय जब ठहर जाए...
कोई मनुष्य कितना प्रिय हो सकता है, जीते जी इसका सही अंदाज़ा लगाना कठिन होता है। अपने जीवन काल में कई महानुभावों को इस संसार का मोह त्याग करते हुए हम सबने देखा होगा, उनकी अंतिम यात्रा में बड़ी भीड़ भी हम
इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो-4
तीसरी कड़ी से आगे... आगे डायोसिस चर्च ऑफ़ लखनऊ के प्रभारी का आवास है। मैं जब छात्रावास में रहता था। तब एक बार ऐसा हुआ कि छात्रावास ने व्यवस्थाओं से दूर-दूर तक अपना नाता तोड़ लिया। न साफ़-सफ़ाई, न
‘मुक्तिबोध’ की परम अभिव्यक्ति ‘विद्रोही’
मुक्तिबोध का रहस्यमय व्यक्ति जो उनके परिपूर्ण का आविर्भाव है, वह रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ है। मुक्तिबोध के काव्य में बड़ी समस्या है—सेंसर की। वहाँ रचना-प्रक्रिया के तीसरे क्षण में ‘जड़ीभूत सौंदर्याभिरु
मुक्तिबोध का दुर्भाग्य
आज 11 सितंबर है—मुक्तिबोध के निधन की तारीख़। इस अर्थ में यह एक त्रासद दिवस है। यह दिन याद दिलाता है कि आधुनिक हिंदी कविता की सबसे प्रखर मेधा की मृत्यु कितनी आसामयिक और दुखद परिस्थिति में हुई। जैसा कि
भारत भवन और ‘अँधेरे में’ मुक्तिबोध की पांडुलिपियाँ
जब हमने तय किया कि भारत भवन जाएँगे तो दिन शाम की कगार पर पहुँच चुका था। ऊँचे किनारे पर पहुँचकर सूरज को अब ताल में ढलना था। महीना मई का था, लिहाज़ा आबोहवा गर्म थी। शनिवार होने के बावजूद लोगों की उपस्थ
ऋषिकेश : नदी के नगर का नागरिक होना
शहर हम में उतने ही होते हैं, जितने हम शहर में होते हैं। ऋषिकेश मेरे लिए वक़्त का एक हिस्सा है। इसकी सड़कों, गलियों, घाटों और मंदिरों को थोड़ा जिया है। जीते हुए जो महसूस होता है, वही तो जीवन का अनुभव
वापसियों की यात्रा क्या त्रासदियों के अंत से शुरू होती है?
अचानक ही तुम्हें अपनी भटक का उद्गम मिल गया है। वह इतना अस्ल है कि तुम उससे घबरा गए हो। तुम चाहते हो, तुम जितनी जल्दी हो सके—उसे भाषा में उतार दो। भले ही वह अधूरा ही उतरे, लेकिन क़ुबूल हो जाए। भले उसक
30-31 अगस्त को दिल्ली में होगा ‘एक है अमृता’
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता कहते हैं अगर प्यार इंसान की शक्ल लेता, तो उसका चेहरा अमृता प्रीतम के जैसा होता। ‘एक है अमृता’ उसी प्यार की बात करता है। ‘एक है
'सारा दिन सड़कों पे ख़ाली रिक्शे-सा पीछे-पीछे चलता है'
हमारी नई-नई शादी हुई थी और मैंने शिवानी से कहा, “अच्छा तुम्हें एक बात बताता हूँ।” उसने सिर हिलाया। मैंने कहा, “तुम्हें पता है, तुम्हारे एक दूसरे ससुर भी हैं।” शिवानी हैरानी से मेरी तरफ़ द
28 अगस्त को अजमेर में होगा ‘लहर’-संपादक प्रकाश जैन का जन्मशती-आयोजन
अजमेर की साहित्यिक धरती ने अनेक नामचीन हस्तियों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक हैं साहित्यकार और लघु पत्रिका लहर के संपादक प्रकाश जैन—जिन्होंने न केवल कविता के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई, बल्कि ह
काग़ज़ी है पैरहन : इस्मत चुग़ताई के बनने की दास्तान
उर्दू गद्य साहित्य की बेहतरीन और बहुचर्चित हस्ताक्षर इस्मत चुग़ताई की आत्मकथा है—‘काग़ज़ी है पैरहन’। यह किताब इस्मत चुग़ताई की शुरूआती ज़िंदगी और उनकी निर्मिति की कहानी को बहुत रोचक अंदाज़ में बयाँ करती है
देश-प्रेम और पहले प्रेम के दरमियान
मैं एक कहानी कहना चाहता हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि कथा-कहन के पैमानों पर यह सही बैठती नहीं है। फिर यह कहानी कैसे हुई—जब यह मानकों पर खरा नहीं उतरती तो। जो भी हो मैं कोशिश भरपूर करूँगा। मुझे पता है कि
8 अगस्त को ज़िक्र-ए-इरशाद
8 अगस्त 2025 को नई दिल्ली के मंडी हाउस स्थित एलटीजी ऑडिटोरियम में एक विशेष स्मृति संध्या का आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन प्रसिद्ध शायर, गीतकार, नाटककार और कहानीकार इरशाद ख़ान सिकंदर की जयंती के अवस
सैयारा : अच्छी कहानियाँ स्मृतियों की जिल्द हैं
‘हम कोशिकाओं से नहीं, स्मृतियों से बने हैं।’ शिवेन्द्र का यह कथन, जो मैंने एक बार ‘सदानीरा’ पत्रिका में पढ़ा था, उस वक़्त केवल एक दिलचस्प विचार लगा था। मगर अब, इसका अर्थ मेरे लिए कहीं गहरा हो गया है।
09 जुलाई 2025
गुरु दत्त : कुछ कविताएँ
क्या तलाश है, कुछ पता नहीं* वह पीता रहा अपनी ज़िंदगी को एक सिगरेट की तरह तापता रहा अपनी उम्र को एक अलाव की तरह और हम ढूँढ़ते हैं उस राख के क़तरे तलाशते हैं उसके बेचैन होंठों की थरथराहट उसकी
बारहमासी के फूल
मुझे तस्वीरें निकालने का बड़ा भारी शौक़ है। ख़ूब तस्वीरें निकालता हूँ उनकी—जो सुंदर लग जाए मन को, जो रमणीक हो, जो मनोरम हो। इसी कारण फूलों की तस्वीरें भी निकालता आया हूँ, लेकिन इस वसंत मैंने फूलों पर ग
8/4 बैंक रोड, इलाहाबाद : फ़िराक़-परस्तों का तीर्थ
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एम.ए. में पढ़ने वाले एक विद्यार्थी मेरे मित्र बन गए। मैं उनसे उम्र में छोटा था, लेकिन काव्य हमारे मध्य की सारी सीमाओं पर हावी था। हमारी अच्छी दोस्ती हो गई। उनका नाम वीरेंद्र
पिन-कैप्चा-कोड की दुनिया में पिता के दस्तख़त
लिखने वाले अपनी उँगलियों का हर क़लम के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते। उनके भीतर एक आदर्श क़लम की कल्पना होती है। हर क़लम का अपना स्वभाव होता है। अपनी बुरी आदतें और कुछ दुर्लभ ख़ूबियाँ भी। मैंने ह
मेहदी हसन : ‘पी के हम-तुम जो चले झूमते मैख़ाने से...’
मैं वर्ष 1977 में झुंझुनू से जयपुर आ गया था—राजस्थान विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम.ए. करने के लिए। वह अक्टूबर का महीना होगा, जब रामनिवास बाग़ स्थित रवींद्र मंच पर राजस्थान दिवस समारोह चल रहा
‘अब सनी देओल में वो बात नहीं रही’
‘बॉर्डर 2’ का विचार सुनते ही जो सबसे पहला दृश्य मन में कौंधा, वह बालकनी में खड़े होकर पिता का कहना था—‘अब सनी देओल में वो बात नहीं रही।’ इस वाक्य में सिर्फ़ एक अभिनेता का अवसान नहीं था, एक पूरे युग क
बज़्म-ए-आम : स्वाद, स्मृति और संगीत में रचा-बसा आम का जश्न
साहित्य-संस्कृति को समर्पित रचनात्मक पहल कशकोल कलेक्टिव शनिवार 14 जून 2025 को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के फ़ाउंटेन लॉन में बज़्म-ए-आम : आम के नाम एक शाम का आयोजन कर रहा है। यह उत्सव केवल आम के फल का उत्
ग्लोबल विलेज के शोर में पुरबिया गाँव
यह संस्मरण भूमंडलीय पीढ़ी का देहाती क़िस्सा है। गाँव-देहात को इसलिए नहीं याद कर रहा हूँ कि मेरे पास कुछ कहने के लिए कुछ यादें हैं, बल्कि इसलिए याद कर रहा हूँ कि मेरी पीढ़ी ने बदलावों को इतने तीव्र गति
माही मार रहा है
आईपीएल ख़त्म हो गया। आख़िरकार ‘आरसीबी’ [रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु] ने अपना पहला खिताब जीत ही लिया। विराट कोहली का अठारह साल का इंतिज़ार समाप्त हुआ। अंतिम ओवर में वह भावुक होकर रोने लगे। कोई भी होगा उसका इ
बारिश आँगनों का स्वप्न है
कई दिनों की लगातार बारिश के बाद मेरे घर के आँगन में यहाँ-वहाँ बारिश का साफ़ पानी तरह-तरह के आकारों में बैठ गया है। आँगन में बने पानी के इन आकारों में पानी का एकांत बैठ गया है। पानी का सौंदर्य, पानी का
ताइवान : गाओची रोड पर जीवन
गाओची रोड से मेरा पहला परिचय तब हुआ था, जब मैं इस सड़क के किनारे वाली कॉलोनी में कमरे की तलाश में गया था। कमरा मुझे रसोई के साथ चाहिए था। ऐसे कमरे शिन चू में कम ही मिलते हैं। गाओची रोड के पास वाली कॉ
23 मई 2025
इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो-3
दूसरी कड़ी से आगे... हाँ तो मैं ऑटो में था। वह धड़धड़ाता हुआ बैरहना डाट पुल से सीएमपी कॉलेज से मेडिकल चौराहा होते हुए सिविल लाइंस, हनुमान मंदिर के पास पहुँचा। मैं वहाँ से सीधा पुस्तक मेला गया। मेल
दास्तान-ए-गुरुज्जीस-4
तीसरी कड़ी से आगे... उन दिनों हॉस्टल के हर कमरे से ‘वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी’ की आवाज़ें आती थी। हर कमरे से कोई एक नाक सुड़कता, सुबकता मिल जाता था। उन दिनों जब भारत ने विश्व कप जीता तो
ओ इरशाद, प्यारे इरशाद! अलविदा!
ओ अज़ीज़ इरशाद खान सिकंदर! ओ बुजुर्गों की तमीज़ से भरे युवा इंसान और शाइर-कवि! यह अचानक क्या! तुम्हारी हमेशा-हमेशा की ख़ामोशी हमें बहुत सताएगी यार! हमें फ़ख़्र है कि दिल्ली में दिल जीतने
ये day वो day और हाथी
वर्ल्ड अर्थ डे और हाथी का कोई सीधा संबंध नहीं है, पर पता नहीं क्यों मुझे ‘वर्ल्ड अर्थ डे’ पर हाथी याद आता है। हाथी का इतिहास संघर्षों की मिट्टी में दबा हुआ है। वह न पूरी तरह से जंगल का हुआ, न ही पूरी
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी महिला छात्रावास का फ़ोन, कविता और प्रेम
दूसरी कड़ी से आगे... टेलीफ़ोन का युग मध्यवर्गीय परिवार के लिए तब आया, जब मैं पंद्रह-सोलह साल का रहा होऊँगा। नब्बे का दशक अपने अंतिम सालों में था। मोहल्ले में बहुत कम लोगों के पास फ़ोन था। हम भी उनमें
सपना टॉकीज में हाउसफ़ुल
उस आदमी की स्मृति में अभी बुर्राक सफ़ेद परदा टँगा हुआ है, जब वह चोरी-छिपे सपना टॉकीज में पिक्चर देखने जाया करता था और उनके नाम एक डायरी में लिख लेता था। उसकी स्मृति में सपना टॉकीज की टीन की छत के बीचो
यूनिवर्सिटी का प्रेम और पापा का स्कूटर
पहली कड़ी से आगे... उन दिनों इलाहबाद में प्रेम की जगहें कम होती थीं। ऐसी सार्वजनिक जगहों की कमी थी, जहाँ पर प्रेमी युगल थोड़ा वक़्त बिता सकें या साथ बैठ सकें। ग्रेजुएशन में मुझे पहला प्रेम हुआ। वह ह
07 मई 2025
रवींद्रनाथ का भग्न हृदय
विलायत में ही मैंने एक दूसरे काव्य की रचना प्रारंभ कर दी थी। विलायत से लौटते हुए रास्ते में भी उसकी रचना का कार्य चालू रहा। हिंदुस्तान में आने पर इस काव्य-रचना की समाप्ति हुई। प्रकाशित होते समय मैंने
चिट्ठीरसा : कुछ परंपराओं का होना, जीवन का होना होता है
डाकिया आया है। चिट्ठी लाया है। ये शब्द अम्मा को चुभते थे। कहतीं चिट्ठीरसा आए हैं, बड़ी फुर्ती से उस दिन ओसारे से दुआर तक पहुँचतीं, जैसे कोई किसी अपने का इंतिज़ार करते माला जप रहा हो, और ईश्वर ने उसकी
इमली, इलाहाबाद, इश्क़
बचपन का इलाहाबाद बहुत खुला-खुला था। उसकी सड़कें खुली और ख़ाली थीं। सड़कों के अगल-बग़ल बाग़, जंगल और पेड़ बहुत थे। एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले तक की दूरी तब बहुत लंबी और वीरान हुआ करती थी। हमारी तरफ़ से आ
22 अप्रैल 2025
इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो-2
पहली कड़ी से आगे... इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था। दोपहर हो गई थी। बिस्तर मेरे भार से दबा हुआ था। मुझे उसे दबाएँ रखने की आज की मियाद पूरी हो गई थी। वह बिस्तर ओवरटाइम काम कर रहा था। जब उसे लगा कि मै
इलाहाबाद तुम बहुत याद आते हो!
“आप प्रयागराज में रहते हैं?” “नहीं, इलाहाबाद में।” प्रयागराज कहते ही मेरी ज़बान लड़खड़ा जाती है, अगर मैं बोलने की कोशिश भी करता हूँ तो दिल रोकने लगता है कि ऐसा क्यों कर रहा है तू भाई! ऐसा नहीं
दास्तान-ए-गुरुज्जीस-2
पहली कड़ी से आगे... हमने जैसे-तैसे पाँचवीं कक्षा पास कर ली, या ऐसे कहें कि मास्टर की पोती होने के एवज में हमें पाँचवा दर्जा डका दिया गया और हम से किसी ने यह न पूछा कि क्या आप पाँचवी पास से तेज़ है
दास्तान-ए-गुरुज्जीस
एम.ए. (दूसरे साल) के किसी सेमेस्टर में पाठ्यक्रम में ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़नी थी। अब संबंध ऐसे घर से था—जहाँ ‘श्रीरामचरितमानस’ और ‘श्रीदुर्गासप्तशती’ पूजा-पाठ के क्रम में पढ़ने के साथ ही, बुज़ुर्गों द