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स्मृति पर बेला

स्मृति एक मानसिक क्रिया

है, जो अर्जित अनुभव को आधार बनाती है और आवश्यकतानुसार इसका पुनरुत्पादन करती है। इसे एक आदर्श पुनरावृत्ति कहा गया है। स्मृतियाँ मानव अस्मिता का आधार कही जाती हैं और नैसर्गिक रूप से हमारी अभिव्यक्तियों का अंग बनती हैं। प्रस्तुत चयन में स्मृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

17 नवम्बर 2024

‘शीशै’ को ‘शुक्रिया’ में बदलते हुए

‘शीशै’ को ‘शुक्रिया’ में बदलते हुए

साल 2015 में जब मैं ताइवान पहुँचा था तो बहुत रोया था। मेरा मन इस क़दर भटकता था कि मैं वहाँ पहुँचने के चार दिन बाद ही यह जान लेना चाहता था कि मैं कब भारत वापस आ पाऊँगा। लेकिन अब जब मैं ताइवान से लौट र

12 नवम्बर 2024

ज़िंदगी से ग़ायब आमों की महक

ज़िंदगी से ग़ायब आमों की महक

बारिश में पेड़ से टपका आम गद्द से ज़मीन में धँस जाए, आगे-पीछे मिट्टी में लिपटे हम, मिट्टी में छिपे आम को खोजने में मिट्टी में इधर-उधर झपट्टा मारते हुए; आम खोजते और बाल्टी, बोरा और खाँची सब भर डालते। 

08 नवम्बर 2024

छठ, शारदा सिन्हा और ये वैधव्य के नहीं विरह के दिन थे...

छठ, शारदा सिन्हा और ये वैधव्य के नहीं विरह के दिन थे...

मुझे ख़ूब याद है जब मेरी दादी गुज़र गई थीं! वह सुहागिन गुज़री थीं। उनकी मृत्यु के समय खींची गईं तस्वीरों में एक तस्वीर ऐसी है कि देखकर बरबस रोना आता है। पीयर (पीली) दगदग गोटेदार पुतली साड़ी में लिपटी

06 नवम्बर 2024

फूल की थरिया से छिटकती झनकार की तरह थीं शारदा सिन्हा!

फूल की थरिया से छिटकती झनकार की तरह थीं शारदा सिन्हा!

कहते हैं फूल की थरिया को लोहे की तीली से गर छेड़ दिया जाए तो जो झनकार निकलेगी वह शारदा सिन्हा की आवाज़ है। कोयल कभी बेसुरा हो सकती है लेकिन वह नहीं! कातिक (कार्तिक) में नए धान का चिउड़ा महकता है। शार

26 अक्तूबर 2024

मैं वही हूँ—‘कोई… मिल गया’ का ‘रोहित’

मैं वही हूँ—‘कोई… मिल गया’ का ‘रोहित’

ऋतिक रोशन ने जब मुझे अपनी ओर अट्रैक्ट किया, उसकी पहली वजह थी यह गाना और उस पर ऋतिक बेहतरीन डांस—“करना है क्या मुझको यह मैंने कब है जाना…” प्रभुदेवा की कोरियोग्राफ़ी और फ़रहान अख़्तर का कैमरा। इस ग

15 अक्तूबर 2024

महाप्राण निराला की आख़िरी तस्वीरें

महाप्राण निराला की आख़िरी तस्वीरें

महाप्राण! आज 15 अक्टूबर है। महाप्राण निराला की पुण्यतिथि। 1961 की इसी तारीख़ को उनका निधन हुआ था। लेकिन निराला अमर हैं। उनका मरणोत्तर जीवन अमिट है। उनकी शहादत अमर है। उनका अंत नहीं हो सकता। उन्ह

05 अक्तूबर 2024

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आख़िरी तस्वीरें

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आख़िरी तस्वीरें

दाह!  ये सभी चित्र सफ़ेद रंग के एक छोटे-से लिफ़ाफ़े में रखे हुए थे, जिस पर काली सियाही से लिखा हुआ था—दाह। पिछले 83 सालों से इन चित्रों को जाने-अनजाने बिला वजह गोपनीय बनाकर रखा गया और धीरे-धीरे

04 अक्तूबर 2024

पिता और मैं : कविता और माटी

पिता और मैं : कविता और माटी

मैं शुरू करना चाहता हूँ तब से—जब से मेरे पिता नवीन सागर ने मेरे आज को देख लिया था और शायद तब ही उन्होंने 27 सितंबर 2024 की शाम उनके नाम के स्टूडियो में ख़ुद पर होने वाले कविता पाठ को भी सुन लिया था।

30 सितम्बर 2024

यों याद किए गए नवीन सागर

यों याद किए गए नवीन सागर

गत शुक्रवार, 27 सितंबर को हौज़ ख़ास विलेज, नई दिल्ली में ‘नवीन सागर स्मृति रचना समारोह’ का पहला आयोजन हुआ। मेरी नज़र में बीते कई सालों में हिंदी-संसार में हो रहे आयोजनों में ऐसा कोई आयोजन हुआ या होता

25 सितम्बर 2024

क्या मिट्टी के आस-पास ‘मिट्टी न होने का’ कोई माध्यम नहीं हो सकता

25 सितम्बर 2024

क्या मिट्टी के आस-पास ‘मिट्टी न होने का’ कोई माध्यम नहीं हो सकता

प्रिय पांडू, तुम्हारे पत्र बहुत मज़ेदार होते हैं, लेकिन फ़ोन पर तुम्हारी भारी-भरकम गंभीर आवाज़ सुनकर मुझे लगता है जैसे अपने ग़ुस्सैल और असंतुष्ट अंकल से बात कर रहा हूँ। आवाज़ कानों को तो अच्छी लगत

24 सितम्बर 2024

‘जश्न-ए-फ़रीद काज़मी’ में खेला गया ‘मगध’

‘जश्न-ए-फ़रीद काज़मी’ में खेला गया ‘मगध’

गत दिनांक 16 सितंबर 2024 को ‘जश्न-ए-फ़रीद काज़मी’ का आयोजन किया गया। प्रयागराज स्थित स्वराज विद्यापीठ में यह कार्यक्रम शाम 5 बजे शुरू हुआ। यह तीन हिस्सों में संपन्न हुआ : • हमारी यादों में फ़रीद क

24 सितम्बर 2024

नवीन सागर को याद करेंगे कवि-प्रशंसक-प्रियजन

नवीन सागर को याद करेंगे कवि-प्रशंसक-प्रियजन

इस शुक्रवार यानी 27 सितंबर 2024 की शाम हौज़ ख़ास विलेज (नई दिल्ली) में हिंदी के एक अनूठे कवि-लेखक नवीन सागर [1948-2000] की स्मृति में एक रचना-समारोह आयोजित किया जा रहा है। इस समारोह में रामकुमार तिवारी

28 अगस्त 2024

राजेंद्र यादव का साहित्य लोग भूल जाएँगे, उन्हें नहीं

राजेंद्र यादव का साहित्य लोग भूल जाएँगे, उन्हें नहीं

उम्र के जिस पड़ाव पर ढेर सारे लोगों के आध्यात्मिक होते जाने के क़िस्से सुनाई देने लगते हैं, जीवन के उसी मक़ाम पर राजेंद्र यादव के प्रेम-संबंधों की अफ़वाहें लोग चटकारे लेकर एक-दूसरे से सुन-सुना रहे थे।

24 अगस्त 2024

प्रेसिडेंसी कॉलेज की कुछ स्मृतियाँ

प्रेसिडेंसी कॉलेज की कुछ स्मृतियाँ

प्रथम दर्शन मैं कक्षा में कुछ देर से ही पहुँचा था। धीमे और सधे हुए स्वर में अध्यापक महाशय अपनी बात रख रहे थे। वह गेस्ट लेक्चरर के रूप में वहाँ आए थे। उन्हें देखकर लगा, हर बार की तरह इस बार भी कोई

23 अगस्त 2024

उन सबके नाम, जिन्होंने मुझसे प्रेम करने की कोशिश की

उन सबके नाम, जिन्होंने मुझसे प्रेम करने की कोशिश की

मैं तब भी कुछ नहीं था, और आज भी नहीं, लेकिन कुछ तो तुमने मुझमें देखा होगा कि तुम मेरी तरफ़ उस नेमत को लेकर बढ़ीं, जिसकी दुहाई मैं बचपन से लेकर अधेड़ होने तक देता रहा। कहता रहा कि मुझे प्यार नहीं मिला, न

10 अगस्त 2024

मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याख्यानमाला में यह कहा अशोक वाजपेयी ने

मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याख्यानमाला में यह कहा अशोक वाजपेयी ने

8 अगस्त 2024 को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक मनोहर श्याम जोशी की जयंती की पूर्व-संध्या पर यह आयोजन जानकीपुल

06 अगस्त 2024

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

तड़के तीन से साढ़े तीन बजे के बीच वह मेरे कमरे पर दस्तक देते, जिसमें भीतर से सिटकनी लगी होती थी। वह मेरा नाम पुकारते, बल्कि फुसफुसाते। कुछ देर तक मैं ऐसे दिखावा करता, मानो मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा हो

02 अगस्त 2024

दिल्ली नायकों की आस में जीती है और उन्हीं की सताई हुई है

दिल्ली नायकों की आस में जीती है और उन्हीं की सताई हुई है

जिस तरह निर्मल वर्मा की सभी कृतियाँ बार-बार ‘वे दिन’ हो जाती हैं, कुछ उसी तरह मुझे भी इलाहाबाद के वे दिन याद आते हैं। — ज्ञानरंजन एक ...और मुझे दिल्ली के ‘वे दिन’ याद आते हैं, और बेतरतीब याद

31 जुलाई 2024

प्रेमचंदजी के साथ दो दिन

प्रेमचंदजी के साथ दो दिन

“आप आ रहे हैं, बड़ी ख़ुशी हुई। अवश्य आइए। आपसे न-जाने कितनी बातें करनी हैं। मेरे मकान का पता है— बेनिया-बाग़ में तालाब के किनारे लाल मकान। किसी इक्केवाले से कहिए, वह आपको बेनिया-पार्क पहुँचा देगा

26 जुलाई 2024

शशिभूषण द्विवेदी के नाम : बारह कथाकारों, दो कवियों और एक आलोचक के पत्र

शशिभूषण द्विवेदी के नाम : बारह कथाकारों, दो कवियों और एक आलोचक के पत्र

आज शशिभूषण द्विवेदी [26 जुलाई 1975—7 मई 2020] की जन्मतिथि है। वह आज सदेह होते, तब आज उनका पचासवाँ वर्ष लग जाता। एक रचनाकार रचना के लिए एक कंदरा का निर्माण करता है। इस कंदरा में वह संसार से थक-भागकर छ

23 जुलाई 2024

तौमानी डिबाटे की याद में

तौमानी डिबाटे की याद में

ब्रिटिश लेखक और बायोलॉजिस्ट रिचर्ड डॉकिंस (Richard Dawkins) ने एकबारगी कहा था कि वी ऑल आर अफ़्रीकंस। इस कथन के पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण भी उपलब्ध हैं। कभी अमेरिका के कुछ लोग एजेंडा चलाते थे कि जैज़ औ

15 जुलाई 2024

‘सोज़’ के तखल्लुस से ग़ज़लें लिखने वाले कांतिमोहन का जाना

‘सोज़’ के तखल्लुस से ग़ज़लें लिखने वाले कांतिमोहन का जाना

लेखक, शिक्षक, विचारक और संगठनकर्ता कांतिमोहन का रविवार, 14 जुलाई को निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 14 जुलाई 1936 को हल्द्वानी, उत्तराखंड में उनका जन्म हुआ। 14 जुलाई 2024 को 88 वर्ष पूरे

07 जुलाई 2024

हुस्न को समझने को क्लबहाउस जाइए जानाँ

हुस्न को समझने को क्लबहाउस जाइए जानाँ

दूसरी कड़ी से आगे... समय और क्लबहाउस मैं समय हूँ!—यहाँ यह कहने वाला कोई नहीं, लेकिन फ़ेसबुक के अल्गोरिदम की तरह क्लबहाउस का भी अपना तिया-पाँचा था, जिसे स्पीकर्स जितना जानते थे—सुनने वाले भी उतना

26 जून 2024

विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य

विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य

महोदया ‘श’ के लिए  एक ‘स्त्री दुःख है।’ मैंने हिंदी समाज में गीत चतुर्वेदी और आशीष मिश्र की लोकप्रिय की गई पतली-सुतली सिगरेट जलाते हुए एक सुंदर फ़ेमिनिस्ट से कहा और फिर डर कर वाक्य बदल दिया—

11 जून 2024

सबसे सुंदर होते हैं वे चुम्बन जो देह से आत्मा तक का सफ़र करते हैं

सबसे सुंदर होते हैं वे चुम्बन जो देह से आत्मा तक का सफ़र करते हैं

अंतिम यात्रा लौट आने के लिए नहीं होती। जाने क्या है उस नगर जो जाने वाला आता ही नहीं! (आना चाहता है या नहीं?) सब जानते हुए भी—उसको गए काफ़ी वक़्त गुज़रा पर— उसकी चीज़ें जहाँ थीं, वहाँ से अब तक नहीं

28 मई 2024

विषधारी मत डोल कि मेरा आसन बहुत कड़ा है

विषधारी मत डोल कि मेरा आसन बहुत कड़ा है

बचपन में पिता की टेबल पर जिन किताबों से मेरा साबका पड़ता था, उनमें शेक्‍सपियर के कंपलीट वर्क्‍स के साथ मुक्तिबोध की ‘भूरी-भूरी खाक धूल’, नामवर सिंह की ‘दूसरी परंपरा की खोज’ के अलावा रामधारी सिंह दिनक

27 मई 2024

छूटती हुई हर चीज़ मुझे घर मालूम लगती है

छूटती हुई हर चीज़ मुझे घर मालूम लगती है

02 अप्रैल 2024 (सूरतगढ़ से जैसलमेर के बीच कहीं ट्रेन में) हम सब शापित हैं। अपनी ही चुप्पियों का कोई तय ठिकाना नहीं ढूँढ़ पाने पर। चलते हुए कहानियाँ बनी—मिलने की, साथ में रोने की और दूर तक ज

26 मई 2024

ख़ुशियों का एरोडायनामिक्स : काग़ज़ के हवाई जहाज़

ख़ुशियों का एरोडायनामिक्स : काग़ज़ के हवाई जहाज़

हर साल 26 मई को पार्कों, खेत-खलिहानों और कक्षाओं में एक अजीब-ओ-ग़रीब लेकिन बेहद रोमांचक दृश्य देखने को मिलता है : आसमान रंग-बिरंगे और सफ़ेद रंग के काग़ज़ के हवाई जहाज़ों से भर जाता है। नेशनल पेपर एयरप्लेन

24 मई 2024

पंजाबी कवि सुरजीत पातर को याद करते हुए

पंजाबी कवि सुरजीत पातर को याद करते हुए

एक जब तक पंजाबी साहित्य में रुचि बढ़ी, मैं पंजाब से बाहर आ चुका था। किसी भी दूसरे हिंदी-उर्दू वाले की तरह एक लंबे समय के लिए पंजाबी शाइरों से मेरा परिचय पंजाबी-कविता-त्रय (अमृता, शिव और पाश) तक सी

22 मई 2024

सौ के साही : कार्यक्रम का यू-ट्यूब देखा हाल

सौ के साही : कार्यक्रम का यू-ट्यूब देखा हाल

वरिष्ठता कभी-कभी बहुत ऊब और थकान महसूस कराती है। कुछ ऐसा ही 1 मई 2024 को दिल्ली विश्वविद्यालय के शहीद भगत सिंह महाविद्यालय हिंदी-विभाग द्वारा आयोजित आग़ाज़-ए-वैखरी के कार्यक्रम से प्रतीत हुआ। यह का

21 मई 2024

हिंदू कॉलेज में मेरे अंतिम दिन

हिंदू कॉलेज में मेरे अंतिम दिन

समय गुज़रता है...ना जल्दी, ना देर से, बस अपनी ही रफ़्तार से। यह जानते हुए भी लग रहा है कि पिछले तीन साल कितनी जल्दी गुज़र गए। कॉलेज का सफ़र रह-रहकर याद आ रहा है। उम्मीदों से शुरू हुआ सफ़र निराशा के ब

17 मई 2024

सोडा, बन-मस्का और वाल्टर बेन्यामिन

सोडा, बन-मस्का और वाल्टर बेन्यामिन

सोडा और बन-मस्का  पुणे के कैंप इलाक़े में साशापीर रोड पर एक कम प्रचलित शरबतवाला चौक है। शरबत अरबी शब्द है, शराब भी इसी से निकला है। शरबतवाला चौक पर 1884 में फ़्लेवर्ड सोडा कंपनी की शुरुआत हुई। पुणे

10 मई 2024

वालिद के नाम एक ख़त

वालिद के नाम एक ख़त

प्यारे अब्बा! मैं जानता हूँ कि मैं इस तहरीर के पहले लफ़्ज़ को आपको पुकारने के लिए इस्तेमाल करने के लायक़ नहीं हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि मैंने होश सँभालने से लेकर अब तक आपको सिर्फ़ दुख पहुँचाया ह

08 मई 2024

रवींद्रनाथ ने कहा है कि...

रवींद्रनाथ ने कहा है कि...

हमारे गाँव में और कुछ हो या न हो, कुछ मिले न मिले... पर रवींद्रनाथ थे। वह थे और वह पूरी तरह से घर के आदमी थे। घरवाले वही होते हैं जिन्हें देखकर भी हम अनदेखा करते हैं, जिन्हें सोचकर भी हम नहीं सोचते य

07 मई 2024

जब रवींद्रनाथ मिले...

जब रवींद्रनाथ मिले...

एक भारतीय मानुष को पहले-पहल रवींद्रनाथ ठाकुर कब मिलते हैं? इस सवाल पर सोचते हुए मुझे राष्ट्रगान ध्यान-याद आता है। अधिकांश भारतीय मनुष्यों का रवींद्रनाथ से प्रथम परिचय राष्ट्रगान के ज़रिए ही होता है, ह

06 मई 2024

एक रोज़ हम लौट आना चाहते हैं

एक रोज़ हम लौट आना चाहते हैं

मई 2024         तुमने कहा—जाती हूँ  और तुमने सोचा कवि केदार की तरह मैं कहूँगा—जाओ लेकिन मेरी लोकभाषा के पास अपने बिंब थे मेरी लोकभाषा में कोई कहीं जाता था ‘तो आता हूँ’ कहकर शेष बच जाता था

26 अप्रैल 2024

पिता के बारे में

पिता के बारे में

पिता का जाना पिता के जाने जैसा ही होता है, जबकि यह पता होता है कि सभी को एक दिन जाना ही होता है फिर भी ख़ाली जगह भरने हम सब दौड़ते हैं—अपनी-अपनी जगहों को ख़ाली कर एक दूसरी ख़ाली जगह को देखने। वह जगह

25 अप्रैल 2024

नाऊन चाची जो ग़ायब हो गईं

नाऊन चाची जो ग़ायब हो गईं

वह सावन की कोई दुपहरी थी। मैं अपने पैतृक आवास की छत पर चाय का प्याला थामे सड़क पर आते-जाते लोगों और गाड़ियों के कोलाहल को देख रही थी। मैं सोच ही रही थी कि बहुत दिन हो गए, नाऊन चाची की कोई खोज-ख़बर नहीं

10 अप्रैल 2024

हम भले होने के अभिनय से ऊब चुके हैं

हम भले होने के अभिनय से ऊब चुके हैं

तुम्हें थोड़ा-सा पिघला हुआ होना चाहिए। पिघला हुआ यानी नरम और मुलायम, ज़रा पानी-पानी-सा। दाईं आँख ने कहा।  तुम्हें थोड़ा कम झुँझलाना चाहिए। दूसरों को सुनने के दिखावटी अपार धैर्य से जन्मी खीझ को अपने द

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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