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30-31 अगस्त को दिल्ली में होगा ‘एक है अमृता’

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता

कहते हैं अगर प्यार इंसान की शक्ल लेता, तो उसका चेहरा अमृता प्रीतम के जैसा होता। ‘एक है अमृता’ उसी प्यार की बात करता है। ‘एक है अमृता’ महज़ एक नाट्य रूपांतरण नहीं है, बल्कि यह एक सोची-समझी साज़िश है; ‘साज़िश…’ अमृता को ‘थी’ होने से बचाने की। 31 अगस्त, यानी अमृता प्रीतम का जन्मदिन… हर बरस ‘एक है अमृता’ के सफ़र का आग़ाज़ इसी तारीख़ के क़रीब-तरीन शनिवार-रविवार को होता आया है।

‘मैं तेनु फिर मिलांगी’ से इस नाटक को दर्शकों को सौंप दिया जाता है कि वे अमृता का जितना हिस्सा अपने साथ अपने घर ले जाना चाहें, ले जा सकते हैं। इमरोज़ कहते थे—उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं—अमृता प्रीतम की रूह हमारे साथ है और उसी रूह को जिस्म देने की यह एक छोटी-सी कोशिश है।

यह नाटक अमृता प्रीतम के बचपन की गलियों से होते हुए, बाँकपन में झाँकते हुए उम्र के ऐसे पड़ाव पर पहुँचता है, जहाँ अमृता ने अपना जिस्म त्याग कर अपनी रूह को साहित्य के हवाले कर दिया। एक ऐसी रूह, जिसकी चादर ओढ़कर सोने पर आने वाली नींद और स्वप्नों से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। यह नाटक अमृता की ज़िंदगी के अहम पहलुओं पर रौशनी डालने का काम करता है। यह नाटक उनके हर महत्त्वपूर्ण समयकाल को छूकर गुज़रता है। मिसाल के तौर पर साहिर से उनकी मुलाक़ात, तक़सीम का दर्द जो उन्होंने 1947 में महसूस किया, 1960 जब उन्हें अवसाद ने घेर लिया था या फिर अमृता प्रीतम की इमरोज़ से दोस्ती और फिर उनका एक साथ रहना। ‘एक है अमृता’ के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि साहित्य जगत में अमृता प्रीतम का क्या दर्जा है। ऐसे में, यह बताना बेहद ज़रूरी हो जाता है कि अनगिनत किताबों में छिपी अमृता प्रीतम को ‘एक है अमृता’ का रूप देने का काम किया है, इसके लेखक मोहित मुदिता द्विवेदी ने।

अमृता जी ने अपनी ज़िंदगी में मौत को बहुत क़रीब से देखा था और उन्हें मौत भी बेहद आरामदायक मिली थी… शायद। 31 अक्टूबर 2005 को अमृता ने नींद में ही ख़्वाबों की दुनिया को चुन लिया और इस दुनिया-ए-फ़ानी को अलविदा कह दिया। अफ़सोस कि अपने आख़िरी वक़्त में वह दिल्ली के जिस घर में रहतीं थीं, उनके देहांत के पश्चात उस घर को बेच दिया गया। वह अपने घर में हमेशा से एक लाइब्रेरी और म्यूज़ियम बनाना चाहती थीं। एक ऐसी जगह जहाँ उनकी किताबें और उनसे जुड़ी वस्तुएँ रखीं जा सकें। मगर यह हो न सका और अब यह आलम है कि यह सपना अधूरेपन की भेंट चढ़ गया।

‘एक है अमृता’— अमृता प्रीतम की ज़िंदगी पर आधारित नाटक—को लिखने वाले और उसका निर्देशन करने वाले शख़्स मोहित मुदिता द्विवेदी हैं। अमृता प्रीतम को पढ़ने के पश्चात उन्होंने अमृता को अपनी प्रेरणा और प्रेम में तब्दील कर लिया। अमृता की क़लम ने उनके दिल-ओ-दिमाग़ पर जो छाप छोड़ी, वह उसे कुछ इस तरह बयान करते हैं : “भले ही इस समय लोग साहित्य से जुड़ रहे हैं, लेकिन ऊपरी तौर पर और इस वजह से लोग लेखकों को ऊपरी तौर जानने में सीमित रह जाते हैं। हमारा ‘द मॉडर्न पोएट्स’ से प्रयास है कि हम लेखक व कवियों के जीवन और इस तरह से पेश करें कि उनके प्रशंसक उन्हें और नज़दीक से जान पाएँ, और उनसे प्रेरणा ले सके। हमारे कार्यक्रम ‘मंटोइयत’, ‘गुलज़ारियत’, ‘एक है अमृता’ इसी प्रयास का एक उदारहण हैं। ‘एक है अमृता’ में हमारा प्रयास है उन सवालों के जवाब देना जो अक्सर अमृता के पाठकों के ज़हन में रह जाते हैं, जिन पाठकों ने अमृता को पढ़ना शुरू किया है—उन्हें और जानने को मिले, जो अच्छे से पढ़ चुके हैं, उन्हें नए पहलू मिलें और जो नहीं जानते वे अपने साथ अमृता की विरासत ले जा सकें।”

‘एक है अमृता’ के माध्यम से उनके जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर रौशनी डाली जाएगी। इसमें उनके बचपन से लेकर उनके लेखक बनने और लेखक के परे एक आज़ाद, आत्म-सम्मान की मालिक और प्रेम आसक्त महिला के जीवन को दर्शाया गया है। यह नाटक पिछले छह सालों से मुंबई, दिल्ली, लखनऊ व तक़रीबन दस शहरों में अमृता के दर्शकों को लुभा चूका है।

कार्यक्रम में अमृता प्रीतम का किरदार निभाने वाली हैं पल्लवी महाजन। वहीं, अक्शा अमृता प्रीतम की बेटी व अमृता के बचपन के किरदार में नज़र आएँगी। साहिर लुधियानवी के किरदार में मोहम्मद बशीर और सूत्रधार व अमृता प्रीतम के पिता का किरदार अंशुल निभाएँगे। शिव कुमार बटालवी के रूप में नज़र आएँगे अंक्ष और स्मृति आनंद सारा शगुफ़्ता का किरदार निभाएँगी। नाटक में एक नृत्य व नाट्य प्रस्तुति भी संजोयी गई है जो कि ‘आज अख्खा वारिश शाह नूँ’ नज़्म पर सिमरन रेखा सिंह द्वारा दी जाएगी। वहीं इमरोज़ के किरदार में ख़ुद इस नाटक के निर्देशक व लेखक मोहित नज़र आएँगे।

इस वर्ष यह नाटक 30-31 अगस्त को शाम चार बजे से लोक कला मंच के वासुकी सभागार, दिल्ली में हो रहा है।

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