प्रतिरोध पर बेला
आधुनिक कविता ने प्रतिरोध
को बुनियादी कर्तव्य की तरह बरता है। यह प्रतिरोध उस प्रत्येक प्रवृत्ति और स्थिति के विरुद्ध मुखर रहा है, जो मानव-जीवन और गरिमा की आदर्श स्थितियों और मूल्यों पर आघात करती हो। यहाँ प्रस्तुत है—प्रतिरोध विषयक कविताओं का एक व्यापक और विशिष्ट चयन।
राजनीतिक संगठनकर्ताओं के बीच मुक्तिबोध
भारतीय आर्थिक ढाँचा एक बहुत बड़ी आबादी को ख़ाली समय की सुविधा ही नहीं देता कि वह साहित्य जैसे विषय को अपने जीवन से जोड़ सके। चिंता : हिंदी के लेखक कई बार सामूहिक तौर पर तो कई बार व्यक्तिगत सीम
जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं
कवि जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ (1930-2013) अवधी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। उनकी जन्मतिथि के अवसर पर जन संस्कृति मंच, गिरिडीह और ‘परिवर्तन’ पत्रिका के साझे प्रयत्न से जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ स्मृति संवाद कार्य
'मैं एक सतत अलक्षित अवाँगार्द हूँ'
सुख्यात कवि-कथाकार देवी प्रसाद मिश्र की किताब मनुष्य होने के संस्मरण हाल के दिनों में चर्चा में रही है। इस पुस्तक की अन्य कथाओं पर यहाँ उनसे एक बातचीत की है—सरबजीत गरचा ने जो अँग्रेज़ी भाषा के जाने-म
‘बिना शिकायत के सहना, एकमात्र सबक़ है जो हमें इस जीवन में सीखना है।’
जैसलमेर 10 मई 2023 आज जैसलमेर आया हूँ। अपनी भुआ के यहाँ। बचपन में यहाँ कुछ अधिक आना होता था। अब उतना नहीं रहा। दुपहर में साथी के साथ हमीरा जाना हुआ। दिवंगत साकर ख़ान के घर। जीवन में लय का बहुत मह