पुस्तक पर बेला
पुस्तकें हमारे लिए नए
अनुभव और ज्ञान-संसार के द्वार खोलती हैं। प्रस्तुत चयन में ‘रोया हूँ मैं भी किताब पढ़कर’ के भाव से लेकर ‘सच्ची किताबें हम सबको अपनी शरण में लें’ की प्रार्थना तक के भाव जगाती विशिष्ट पुस्तक विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।
रविवासरीय : 3.0 : एक समय की बात है और नहीं भी...
• गत ‘रविवासरीय’ पढ़कर मेरे बचपन के दोस्त अनूप सोनकर ने कानपुर से मुझे फ़ोन पर एक कहानी सुनाई। उसे भी नहीं पता कि यह कहानी उसने कहाँ से अपने ज़ेहन में उतारी और मुझे भी यह अनसुनी-अनपढ़ी लगी! आइए इसे पढ़ते
यह दुनिया पेट की दौड़ है
ख़ालिद जावेद के उपन्यास ‘नेमत ख़ाना’ से गुज़रते हुए गाहे-ब-गाहे यह महसूस होता है कि निःसंदेह तमाम दुनिया पेट की दौड़ है—इससे ज़्यादा कुछ नहीं, इससे कम कुछ नहीं। आपके अंतर् से पारदर्शी परिचय करवाते इस
12 मार्च 2025
विशाल अनुभव-सागर की एक झलक
हिंदी में लेखकों का अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा लिया गया साक्षात्कार संकलित होकर पुस्तक के रूप में प्रकाशित होता रहा है और ऐसी पुस्तकों की संख्या भी अच्छी-ख़ासी (एक प्रकाशक ने तो ऐसे ‘साक्षात्कार’ की प
हमारे समय का आर्तनाद है ‘शान्ति पर्व’ की कविताएँ
आशीष त्रिपाठी का अद्यतन काव्य संग्रह ‘शान्ति पर्व’ विवेकशील मानस की भाव-यात्रा है। भाव के साथ चेतना भी जागृत है। इस यात्रा में सब कुछ है, सब कुछ! फणीश्वरनाथ रेणु के शब्दों में कहें तो—“इसमें फूल भी ह
एक विस्मृत क्रांतिकारी : जननायक कर्पूरी ठाकुर
लेखक संतोष सिंह और आदित्य अनमोल द्वारा अँग्रेज़ी में लिखी गई ‘दी जननायक कर्पूरी ठाकुर : वॉइस ऑफ़ दी वॉइसलैस’ एक प्रेरक जीवनी है, जो कर्पूरी ठाकुर की साधारण शुरुआत से लेकर एक परिवर्तनकारी राष्ट्रीय नेत
दुखी दादीबा और भाग्य की विडंबना
यह पुस्तक पारसी समुदाय के वैभवशाली जीवन की कथा है और लेखक द्वारा इसके किसी सच्चे जीवन वृत्तांत पर आधृत होने का दावा भी जगह-जगह पर मिलता है। यह बहुत पुरानी रचना है, संभवतः 20वीं सदी के शुरुआत की। इसका
रविवासरीय : 3.0 : ‘इन्हें कोई काश ये बता दे मकाम ऊँचा है सादगी का...’
• एक प्रकाशक को देखकर मेरे मन में सबसे पहला ख़याल यही आता है कि उससे किताब ले लूँ। यहाँ ‘किताब ले लेने’ का अर्थ एकायामी नहीं है। • हिंदी के साहित्यिक प्रकाशकों के विषय में जो बात सबसे ज़्यादा परेशा
बहुत कुछ खोने के अँधेरे में किसी को बचाने की कहानियाँ
इस किताब को पढ़ते हुए यह महसूस होता है कि कवि-कथाकार-फ़िल्मकार देवी प्रसाद मिश्र की कहानियों के साथ चलना ख़ुद को विशद करना और उदात्त करना ही तो है। ‘कोई है जो’ खिड़की से भीतर गया, दरवाज़े से भीतर जात
यथार्थ का जादू और जादुई यथार्थवाद
‘अम्बर परियाँ’ बलजिंदर नसराली का तीसरा उपन्यास है। इससे पहले पंजाबी में उनके दो उपन्यास आ चुके हैं। उन्होंने कहानियाँ भी लिखी हैं। उनके दो कहानी संग्रह ‘डाकखाना खास’ और ‘औरत की शरण में’ भी प्रकाशित ह
'बहुत भेदक, कुशाग्र और कल्पनाशील पुस्तकें ही बचेंगी'
नई दिल्ली में जन्मीं साहित्यिक पत्रकारिता से लंबे समय तक संबद्ध रहने वालीं गगन गिल नब्बे के दशक में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ के साथ अपनी अभूतपूर्व उपस्थिति से हिंदी कविता के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़
रविवासरीय : 3.0 : हम आपके डिजिटल डिटॉक्स की कामना करते हैं
• 1 फ़रवरी से 9 फ़रवरी के बीच नई दिल्ली के प्रगति मैदान [भारत मंडपम] में आयोजित विश्व पुस्तक मेले की स्थिति जानने की उत्कंठा जैसे आप सबको है, वैसे ही धृतराष्ट्र को भी है। वह अपनी इस आकांक्षा की पूर्ति
क़स्बाई ज़िंदगी की तिकड़मों का लुत्फ़
हिंदुस्तान क़स्बों और नगरों से भरा देश है। अगर हिंदुस्तान से क़स्बे निकाल दिए जाएँ, तो बस धूल-खाते, मिलों के शोर से भरे इलाक़े, बजबजाते हुए नाले, एक दूसरे से उलझने को तैयार गाड़ियाँ और आसमान की कोख म
पेड़ों पर चढ़ने वाली स्त्रियों का संसार
विशाल हिमालय की गोद में बसे दो देश—भारत और नेपाल एक-दूसरे के पड़ोसी हैं और दोनों साथ में 1850 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा भी साझा करते हैं। भारत और नेपाल बॉर्डर भारतीय उपमहाद्वीप के बाक़ी देशों
जावेद आलम ख़ान की ‘स्याह वक़्त की इबारतें’ और अन्य कविताएँ पढ़ते हुए…
कविता की एक किताब में—एक ज़ख़्मी देश, एक आहत मन! एक कवि—जिसका नाम विमर्श में खो गया, जिसके चेहरे की ओर भी सबने नहीं देखा, लेकिन उसकी आवाज़ कुछ दिलों में, कुछ कविता की बातों के रास्ते पर, साहित्य के क
विश्व पुस्तक मेला 2025 : पुस्तकों के साथ साहित्य और संस्कृति का उत्सव
देशभर के साहित्य-प्रेमियों की उत्सुकता को बढ़ाते हुए—भारत में पठन-संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गठित शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की पुस्तक संबंधित नोडल एजेंसी—नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया (एनबीट
सीधे कहानी में ले जाने वाली कहानियाँ
दामोदर मावज़ो ज्ञानपीठ और साहित्य अकादेमी—भारतीय साहित्य के दोनों बड़े सम्मानों से सम्मानित कथाकार हैं। देश में गिनती के लेखक-कथाकार ही इस तरह अलंकृत हुए होंगे। वह गोवा में पैदा हुए और कोंकणी में लिखते
रविवासरीय : 3.0 : गद्यरक्षाविषयक
• गद्य की रक्षा करना एक गद्यकार का प्राथमिक दायित्व है। गद्यरत के गद्य की रक्षा कैसे होती है? आइए जानते हैं : गद्यरत जब प्रकाश पर रचे; तब चाहे कि प्रकाश के जितने भी संभव-असंभव आयाम हैं, वे सब व्यक
अरुणाचल के न्यीशी जीवन का स्मृति-राग
‘गाय-गेका की औरतें’ जोराम यालाम नबाम के अब तक के जीवन में संभव में हुए प्रसंगों के संस्मरण हैं। जिस जगह के ये संस्मरण हैं; उसकी अवस्थिति अरुणाचल प्रदेश के ठेठ ग्रामीण ज़िले लोअर सुबानसिरी में है। पुस्
ज़िंदगी की बे-अंत नैरंगियों का दीदार
कहानी एक ऐसा हुनर है जिसके बारे में जहाँ तक मैं समझा हूँ—एक बात पूरे यक़ीन से कही जा सकती है कि आप कहानी में किसी भी तरह से उसके कहानी-पन को ख़त्म नहीं कर सकते, उसकी अफ़सानवियत को कुचल नहीं सकते। उद
सिंधियों की पीड़ा का बयान
चलना जीवन है और चलते जाना इंसान होने की नियति है। समाजशास्त्र की मूल स्थापना है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। ‘सिमसिम’ के मुख्य पात्र के जीवन की कोख कहानी और उससे निर्मित स्वचेतना से लेखक पाता है क
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से उपजी भाषा और कथा
भारत में लोकतंत्र एक परंपरा के रूप में मौजूद रहा है—इस तथ्य पर काशीप्रसाद जायसवाल से लेकर अमर्त्य सेन ने अपने-अपने तरीक़े से लिखा है। प्राचीन भारत में गणराज्य, शासन-पद्धति और प्रतिदिन के राजनय पर काशी
अंतहीन संभावना का आकार
हिंदी भाषा की प्रकृति अपने आप में जितनी सरल है, उतनी ही जटिल भी है। बहुत सरल और सामान्य से लगने वाले कई शब्दों की अशुद्ध वर्तनी लेखन के स्तर पर प्रचलित है। अर्थ-प्रयोग के स्तर पर भी ग़लत शब्दों का प्र
जातिगत गर्व और समानता का संघर्ष
पत्रकार और अध्येता मनोज मिट्टा की तीसरी किताब ‘कास्ट प्राइड : बैटल फ़ॉर इक्वलिटी इन हिंदू इंडिया’ अप्रैल 2023 में प्रकाशित हुई है। इससे पहले उन्होंने 1984 के सिख विरोधी जनसंहार पर ‘When A Tree Shook D
प्रेम का आईनाख़ाना
सूफ़ी साहित्य का कैनवास इतना विशाल है कि अक्सर तस्वीर का एक हिस्सा देखने में दूसरा हिस्सा छूट जाता है। इस तस्वीर में इतने रंग हैं और रंगों का ऐसा मेल-मिलाप है कि किसी एक रंग को ढूँढ़ना समझना लगभग नामुम
भारतीय शिक्षा बोर्ड की हिंदी पाठ्य-पुस्तकों का विमोचन
दिनांक 12 दिसंबर 2024 को साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, रवींद्र भवन के सभागार में आयोजित भारतीय शिक्षा बोर्ड की हिंदी की पाठ्य-पुस्तकों के विमोचन एवं पतंजलि योगपीठ (ट्रस्ट) तथा भारतीय शिक्षा बोर्ड के सं
सदा रहने वाली चीज़ों की किताब
‘द बुक ऑफ़ एवरलास्टिंग थिंग्स’ लाहौर के विज परिवार के साथ बीसवीं सदी की शुरुआत से शुरू होती है। इसके शुरुआत में ही स्वदेशी आंदोलन का कपड़ा व्यवसायियों पर पड़ने वाला प्रभाव, प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय स
व्यक्ति से प्रकाश-स्तंभ बनने की यात्रा
विचारहीनता ने आज जिस प्रकार तमाम राजनीतिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक परिदृश्य को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है, और भावनाओं के उकसावे को ही वैचारिक ताक़त का नाम दिया जाने लगा है, उससे यह बात और ज़्यादा पुष्ट होत
नागरीप्रचारिणी सभा की मनोरंजन पुस्तकमाला
अँग्रेज़ी की प्रसिद्ध पुस्तक के इस शीर्षक ने हिंदी में उस महान् मुहावरे को जन्म दिया; जिसके शब्द हैं : सादा जीवन उच्च विचार। यह किताब सन् 1897 में पहली बार प्रकाशित हुई थी और अँग्रेज़ी-साहित्य में इस
13 दिसम्बर 2024
जो बचा है वह है बस शब्दों का एक नगर
मैं, पम्पा कम्पाना, हूँ इस कृति की रचयिता/ मैंने एक साम्राज्य का उत्थान और पतन देखा है/ अब उन्हें कैसे याद करता है कोई, उन राजाओं और उन रानियों को?/ अब वे बचे हैं बस शब्दों में/ वे थे तो थे विजेता या
सौंदर्य की नदी नर्मदा : नर्मदा के वनवास से अज्ञातवास की पूरी कहानी
“सौंदर्य उसका, भूल-चूक मेरी!” शुरुआती पन्नों में ही यह पंक्ति लिखकर लेखक अपनी मंशा बिल्कुल साफ़ कर देते हैं। सारे ग्रह से लेकर परमाणु तक सब अपनी-अपनी कक्षा में परिक्रमा कर रहे हैं और इसी तरह प्रत्येक
बोरसी भर आँच : चीकू की चीख़ों में मनुष्य का चेहरा
“माँ कभी न थकने वाली चींटियों की तरह अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाती रहती।” चीकू की चमकीली पर पनीली आँखें दुनिया भर के दर्द का समुद्र भीतर समाए बड़ी हो रही थीं। नन्ही उम्र में चट्टानी प्रतिरोधक क्षमता च
भाषाई मुहावरे को मानवीय मुहावरे में बदलने का हुनर
दस साल बाद 2024 में प्रकाशित नया-नवेला कविता-संग्रह ‘नदी का मर्सिया तो पानी ही गाएगा’ (हिन्द युग्म प्रकाशन) केशव तिवारी का चौथा काव्य-संग्रह है। साहित्य की तमाम ख़ूबियों में से एक ख़ूबी यह भी है कि व
नवंबर में ‘क़यास’ पर कुछ क़यास
मृत्यु वैसे भी रहस्य में लिपटी होती है। इस पर कई बार वह अपने इस रहस्य को कोई ऐसा आकार दे देती है कि वह लगातार गड़ता है। हम बार-बार पीड़ा में लिपटे उस रहस्य की ओर लौटते हैं और हर बार एक अजीब-सी चोट खाक
मैं पृथ्वी से बिछुड़ गया था : कविता की हवा को ताज़गी से भरता संग्रह
इधर रुस्तम का नया कविता-संग्रह ‘मैं पृथ्वी से बिछुड़ गया था’ (संभावना प्रकाशन) सामने आया है। रुस्तम के काव्य-संसार में प्रवेश से पहले रिलेक्स होना ज़रूरी है, क्योंकि वह जीवन की आपाधापी के कवि नहीं है
13 नवम्बर 2024
बुकर विजेता किताब 'ऑर्बिटल' के बारे में
अंतरिक्ष शब्द सुनते ही मैं आतंकित महसूस करता हूँ। मैं जिस शहर में बढ़ा हुआ वह करनाल के बहुत नज़दीक था—जहाँ चाँद पर क़दम रखने वाली पहली भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का जन्म हुआ। जब कोलंबि
बंजारे की चिट्ठियाँ पढ़ने का अनुभव
पिछले हफ़्ते मैंने सुमेर की डायरी ‘बंजारे की चिट्ठियाँ’ पढ़ी। इसे पढ़ने में दो दिन लगे, हालाँकि एक दिन में भी पढ़ी जा सकती है। जो किताब मुझे पसंद आती है, मैं नहीं चाहती उसे जल्दी पढ़कर ख़त्म कर दूँ; इसलिए
माफ़िया और राजनीतिक गलियारों में खेले जाने वाले शह और मात के खेल की कहानी
पेशेवर कामयाबी का सबसे ख़राब बाई-प्रॉडक्ट यही है कि यह आपको उन सब चीज़ों से दूर कर देती है, जो आपको सबसे ज़्यादा ख़ुशी देती हैं। मेरे मामले में यह चीज़ किताबें पढ़ना है। जब भी वक़्त मिलता है, एक नई
धरती पर हज़ार चीज़ें थीं काली और ख़ूबसूरत
इक्कीसवीं सदी की हिंदी कविता की नई पीढ़ी का स्वर बहुआयामी और बहुकेंद्रीय सामाजिक सरोकारों से संबद्ध है। नई पीढ़ी के कवियों ने अपने समय, समाज और राजनीति के क्लीशे को अलग भाष्य दिया है। अनुपम सिंह की क
‘कई चाँद थे सरे-आसमाँ’ को फिर से पढ़ते हुए
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के उपन्यास 'कई चाँद थे सरे-आसमाँ' को पहली बार 2019 में पढ़ा। इसके हिंदी तथा अँग्रेज़ी, क्रमशः रूपांतरित तथा अनूदित संस्करणों के पाठ 2024 की तीसरी तिमाही में समाप्त किए। तब से अब
25 सितम्बर 2024
जीवन की कविता और कविता का जीवन
सबसे पहले तो यही स्पष्ट कर देना यहाँ ज़रूरी है कि यह उद्भ्रांत की प्रतिनिधि कविताओं का संचयन नहीं है। उनकी प्रतिनिधि व चर्चित कविताओं के कई संकलन इससे पहले ही प्रकाशित हो चुके हैं, उनकी काव्य संचयिता
शिक्षकों के लिए होमवर्क
ख़ाली वक़्त में फ़ंतासियाँ रचना या दूसरे ढंग से कहें तो फ़ंतासियों के बारे में सोचने के लिए ख़ाली वक़्त निकालना मेरे पसंदीदा कामों में से एक है। मेरी सबसे प्रिय फ़ंतासी यह है—जिसे सोचने में एलियन या
भूमिकाओं में आस्था घट रही है
पुस्तक की भूमिका पुस्तक के साथ भूमिका का प्रकाशन आम चलन है। यह भूमिका किसी ऐसे व्यक्ति से लिखाई जाती है, जो उस विषय का मान्य विद्वान हो, उसकी बात का वजन हो और जिसके न्याय-विवेक पर भी लोगों का विश्
चिनार पुस्तक महोत्सव : कश्मीर घाटी का पहला सबसे बड़ा पुस्तक मेला
श्रीनगर में पहली बार बहुत बड़े स्तर पर आयोजित होने वाले पुस्तक मेले ‘चिनार पुस्तक महोत्सव’ का शुभारंभ 17 अगस्त 2024 को होगा। नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) और ज़िला प्रशासन श्र
तक्षशिला : फणीश सिंह पुस्तक-वृत्ति 2024-25 के लिए प्रस्ताव आमंत्रित
तक्षशिला फणीश सिंह पुस्तक-वृत्ति 2024-25—बौद्धिक वर्ग के लिए महत्त्वपूर्ण सूचना है। गत वर्ष आरंभ हुई यह पुस्तक-वृत्ति अपने प्रथम संस्करण में अजय कुमार को प्राप्त हो चुकी है। अजय कुमार बाबासाहेब भीमरा
सुशील दोशी की पुस्तक ‘द आर्ट एंड साइंस ऑफ़ क्रिकेट कमेंट्री’ का विमोचन
23 जुलाई 2024 को शिक्षाविद् और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (National Book Trust), भारत के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर मिलिंद सुधाकर मराठे, भारतीय क्रिकेटर और आईपीएल फ़्रेंचाइजी कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) के कोच
भूलना दुनिया का सबसे बुरा मर्ज़ है
“नदी इतनी पतली थी कि उसमें अब बस धूप से सनी थोड़ी नींद बहती थी।” पहली कहानी के पहले पन्ने पर ऐसी काव्यात्मक भाषा मिल जाए तो पठनीयता की भी ट्यूनिंग हो जाती है। नदी का पेट के मुहाने में बदल जाने की
20 जुलाई 2024
‘द सेंस ऑफ़ एन एंडिंग’ : आशिक़ बना देने वाला नॉवेल
इंसान शायद इसीलिए सबसे अकेला जानवर भी है, क्योंकि उसने अपने लिए जीवन के उसूल बनाए हैं। जूलियन बार्न्स के नॉवेल ‘द सेंस ऑफ़ एन एंडिंग’ का जब मैंने अध्ययन किया, तब उनकी इस छोटी-सी किताब से मुझे अप
'मैं एक सतत अलक्षित अवाँगार्द हूँ'
सुख्यात कवि-कथाकार देवी प्रसाद मिश्र की किताब मनुष्य होने के संस्मरण हाल के दिनों में चर्चा में रही है। इस पुस्तक की अन्य कथाओं पर यहाँ उनसे एक बातचीत की है—सरबजीत गरचा ने जो अँग्रेज़ी भाषा के जाने-म
ओशो अपनी पुस्तकों के विषय में
मेरे पिता वर्ष में कम से कम तीन या चार बार बंबई जाया करते थे और वह सभी बच्चों से पूछा करते थे, “तुम अपने लिए क्या पसंद करोगे?” वह मुझसे भी पूछा करते, “अगर तुम को किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो मैं उसको
वासना सौंदर्य को देखने की इच्छा है
‘वासना’ इच्छाओं का संतुलित नाम अर्थों के कई संदर्भों में समाहित है। सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाओं की संगीन गुफ़्तगू अपने विस्तारित क्षेत्र में जो कुछ कहती है, उसका सहजता से निर्मित एक वैचारिक आलोक जि