बुकर विजेता किताब 'ऑर्बिटल' के बारे में
किंशुक गुप्ता
13 नवम्बर 2024
अंतरिक्ष शब्द सुनते ही मैं आतंकित महसूस करता हूँ। मैं जिस शहर में बढ़ा हुआ वह करनाल के बहुत नज़दीक था—जहाँ चाँद पर क़दम रखने वाली पहली भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का जन्म हुआ। जब कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने की ख़बर मैंने अपने पाठ्यक्रम में पढ़ी, तो मैंने क्षोभ महसूस किया। मृत्यु से ज़्यादा उसकी अपरिहार्यता के कारण। अंतरिक्ष यात्री तकनीकी गड़बड़ियों से अवगत थे। ठीक करने के सभी प्रयासों के बावजूद जैसे ही शटल ने पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश किया, एक विस्फोट के साथ उसके पुर्ज़े-पुर्ज़े वायुमंडल में बिखर गए जिनमें से कुछ अत्यधिक तापमान के चलते पिघल गए। मैं अक्सर सोचा करता था—मृत्यु के मुहाने पर खड़े होकर उसकी उपस्थिति को साफ़-स्पष्ट रूप से सुन पाने के बावजूद भी कुछ न कर पाना व्यक्ति को कितना असहाय और मज़बूर महसूस कराता होगा?
सामंथा हार्वे द्वारा लिखित उपन्यास ऑर्बिटल अंतरिक्ष में होने की ऐसी ही विडंबनाओं और विरोधाभासों से जूझता है। 2024 के बुकर पुरस्कार से सम्मानित यह पुरस्कार के इतिहास में दूसरा सबसे छोटा उपन्यास है जिसे सम्मानित किया गया है। उपन्यास की लघुता पर सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि आमतौर पर बुकर ऐसे उपन्यासों को दिया जाता है जो कठिन, अस्पष्ट, निष्प्रदीप और तीन सौ पन्नों से बड़े होते हैं। हालाँकि जब ज्यूरी से यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने यह साफ़ कर दिया कि वह छोटा न होकर, अपने विषय के लिए पर्याप्त है।
एक ही वर्ष में बुकर पुरस्कार और उर्सुला के. ले गुइन पुरस्कार दोनों के लिए शॉर्टलिस्ट हुआ, हार्वे का यह पाँचवाँ उपन्यास, शैली और विषय दोनों में उनके पिछले उपन्यासों से मिलता-जुलता है—जिनके केंद्र में स्थितियों के गठजोड़ से उत्पन्न हुए उस महत्वपूर्ण क्षण यानी टिपिंग प्वाइंट की पड़ताल होती है, जब हक़ीक़त का कायाकल्प हो जाता है। इन दो हक़ीक़तों के बीच झूलता हार्वे का गद्य ‘कॉज़-इफ़ेक्ट’ की जटिल समीकरणों से गुज़रता हुआ जीवन के सतत संवेग का साक्षी बन जाता है।
कैपिटलिज़्म या पर्यावरण दोहन जैसी किसी भी व्यापक शक्ति को एक व्यक्ति या स्थिति पर आरोपित कर हार्वे उनके व्यक्तिगत परिणामों का बख़ूबी विश्लेषण करती हैं। तब बीमारी (द विलडरनेस) या आपदा (द वेस्टर्न विंड) एक डेवलपर द्रव बन जाता है, जिसमें डूबते ही स्थितियाँ अपनी फ़ोटोग्राफिक वास्तविकता में तुरंत दृश्यमान हो जाती हैं।
ऑर्बिटल के लिए वह अनिश्चित क्षण बाहरी अंतरिक्ष बनता है। विभिन्न राष्ट्रीयताओं के छह अंतरिक्ष यात्री—नेल, चीय, एंटोन, रोमन, पिएट्रो और शॉन—अंतरिक्ष में भेजे जाते हैं। जब उनका अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाता है, उन्हें अंदर से तस्वीरें खींचनी होती हैं, प्रयोग करने होते हैं और डेटा एकत्र करना होता है। डगलस एडम्स की ‘द हिचहाइकर गाइड टू द गैलेक्सी’ या ऑर्थर सी. क्लार्क की ‘रेंडेवू विद राम’ जैसी अंतरिक्ष के बारे में लिखी गई स्काई-फ़ाई पुस्तकों से अलहदा, ऑर्बिटल अंतरिक्ष को वैकल्पिक घर या किसी सामाजिक समस्या के समाधान के रूप में देखने की घिसिपिटी कोशिश नहीं करता।
हाल ही में बीबीसी को दिए गए एक साक्षात्कार में हार्वे ने कहा कि ‘ऑर्बिटल’ पर काम करते समय उन्होंने अंतरिक्ष से ली गई पृथ्वी की ‘हज़ारों-हज़ारों घंटे’ की फ़ुटेज देखी थी। महामारी के दौरान काम करते हुए, हार्वे ने कहा, ऐसा महसूस हुआ कि “हर दिन ऐसा करने में सक्षम होना एक तरह की ख़ूबसूरत मुक्ति है, और साथ ही मैं छह लोगों के बारे में लिख रही हूँ जो एक टिन के डिब्बे में फँसे हुए हैं।”
लगभग डेढ़-सौ पन्नों के छोटे से फ़लक में फैले इस उपन्यास के बारे में सबसे रोचक बात यह है कि इसमें कोई ठोस कथानक नहीं है। दो घटनाएँ कॉन्फ़िलक्ट की झलक देती हैं—चीय की माँ की अचानक मृत्यु और ‘बीमारी से दुबलाए’ इंडोनेशिया के तट पर पनपते तूफ़ान के आसार। लेकिन लेखक द्वारा उनका ट्रीटमेंट भी निष्पक्ष, ग़ैर-नाटकीय तरह से ही किया गया है।
अंतरिक्ष यान द्वारा एक ही ‘पृथ्वी दिन’ में किए गए सोलह चक्करों के इर्द-गिर्द बुना यह कथानक तरल रूप से आगे बढ़ता है। गीतात्मक, ललित गद्य और लंबे वाक्यों के साथ उपन्यास मानवीय अस्तित्व की जटिल संरचना के रेशों को परत-दर-परत खोलता आगे बढ़ता है।
‘किसी चिकने उभयलिंगी की तरह उछलते-कूदते’ यान में यात्रा करते हुए उन पर अचानक छोटेपन का अहसास हावी हो जाता। वे पृथ्वी को माँ के रूप में और स्वयं को उसके बच्चों के रूप में देखने लगते हैं। जब वे खिड़की के बाहर आकर्षक हरे-भूरे रंगों में चमकते महाद्वीपों, नीले विशाल महासागरों और ‘वायुमंडल के परे कुचले पड़े चंद्रमा को देखते हैं, जो उनके ऊपर न होकर उनके समकक्ष है’ तब नगण्यता का यह एहसास और भी गहरा हो जाता। अपने होने की मानसिक अवधारणा उसी तरह गौण हो जाती जैसे शारीरिक भारहीनता।
हालाँकि ऐसे कालातीत, शून्य-गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में विचरने की उच्छृंखलता को पृथ्वी के कठोर, गणनीय मापदंडों से सावधानीपूर्वक संतुलित करना भी ज़रूरी हो जाता है। दिन और रात की अवधारणा का ठीक-ठाक अनुमान लगा पाना भी काम बन जाता, जैसे सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में ‘प्रयोगशाला के चूहों की तरह’ तैरते अपने शरीरों पर कठोर निगरानी रखना।
“रोमन अपने क्रू क्वार्टर में काग़ज़ के टुकड़े पर बनी टैली में अट्ठाइसवीं पंक्ति जोड़ देगा। अन्यथा—अन्यथा केंद्र बदल जाता है। अंतरिक्ष समय को टुकड़ों में बाँट देता है। यह उन्हें प्रशिक्षण के दौरान बताया गया था—जब आप जागें तो हर दिन एक टैली रखें; ख़ुद से कहें कि यह एक नए दिन की सुबह है। इस मामले में ख़ुद से स्पष्ट रहें। यह एक नए दिन की सुबह है।”
चुनाव के विकल्प की उपस्थिति (या अनुपस्थिति) भी उपन्यास में निहित दिलचस्प दुविधा है। एक सख़्त दिनचर्या में दिन बिताने के कारण उनका अपने जीवन से नियंत्रण छिन चुका है। यह उन्हें बोझ-रहित महसूस कराता है। चुनने की पीड़ा से मुक्त होकर वे दोबारा युवा हो गए हैं। वे कभी-कभी चुनाव के इस अधिकार को मनुष्य के अहंकार से जोड़कर भी देखने लगते हैं। हालाँकि स्वतंत्रता के इस आह्लादित एहसास के बावजूद वे अचानक अपने को शक्तिहीन पाते हैं। उनके पास कैमरा पकड़े पृथ्वी की ‘बनती भव्यता’ के ‘चिंताजनक’ दृश्य खींचने का विशेषाधिकार तो है लेकिन वे उस जानकारी का कोई विशेष उपयोग नहीं कर सकते।
निश्चितता और अनिश्चितता, वास्तविकता और भ्रम, कला और जीवन के बीच के द्वंद्व को विच्छेदित करने के लिए हार्वे रहस्यपूर्ण ‘लास मेनिनास’ का उपयोग करती हैं। मैड्रिड के म्यूजियो डेल प्राडो में रखी यह पेंटिंग 1656 में स्पेनिश बरोक के प्रमुख कलाकार डिएगो वेलाज़क्वेज़ द्वारा बनाई गई थी। डॉन किख़ोटे और नाटक ‘लाइफ इज़ ए ड्रीम’ से प्रेरित, इस पेंटिंग में राजा-रानी, महिलाओं का झुंड (लास मेनिनस का शाब्दिक अर्थ है द लेडीज़-इन-वेटिंग), एक कुत्ता और यहाँ तक कि ख़ुद चित्रकार भी उपस्थित है। कौन-किसको-क्यों देख रहा है और इसे बनाने के पीछे चित्रकार का क्या मंतव्य है, इसकी कोई साफ़-स्पष्ट व्याख्या संभव नहीं।
माइकल फ़ूको ने अपनी 1966 में प्रकाशित पुस्तक ‘द ऑर्डर ऑफ़ थिंग्स’ में प्रस्तावित किया कि यह पेंटिंग चित्रकार, विषय-मॉडल और दर्शक के बीच सचेत कृत्रिमता और दृश्य संबंधों के माध्यम से नए ज्ञानमीमांसा के संकेतों को दर्शाती है। वह लिखते हैं : “यह हमारे लिए जिस स्थान को खोलता है उसकी परिभाषा... प्रतिनिधित्व, अंततः उस संबंध से मुक्त हो जाता है जो इसे बाधित कर रहा था, वह अपने शुद्ध रूप में ख़ुद को प्रस्तुत कर सकता है।”
उपन्यास मनुष्य जीवन की अनिश्चितता को देखने के कई सुविधाजनक बिंदु प्रस्तावित करता है—पृथ्वी पर जीवन के एक विहंगम दृश्य के अलावा, जीवन को देखने के अनेक ज़ूम्ड-इन दृश्य उपस्थित हैं : उनके परिवारों से आते नियमित ईमेल, उनका ‘तैरता हुआ परिवार’, और प्रयोगात्मक चूहों के तीन समूह : वे जो ‘हथेलियों में बेर’ की तरह ख़त्म हो रहे हैं जैसे उनकी ‘आत्माएँ ढह गई हों’; वे जिन्हें उनकी माँसपेशियों को बर्बाद होने से रोकने के लिए नियमित रूप से इंजेक्शन दिया जा रहा है; और वे जो आनुवंशिक रूप से संशोधित, अधिक मजबूत और भारी हैं और गुरुत्वाकर्षण के साथ जीवन के लिए तैयार हैं।
साथ ही अंतरिक्ष यान का शरीर जो उन्हें धरती की कक्षा में तैराए रखता है, जब उनके शरीर की कोशिकाएँ अपने आप को खा रही हैं। जीवन के इस रहस्यात्मक अवधारणा के विपरीत चीय की माँ की मृत्यु की त्वरित ख़बर है।
ऑर्बिट अवधारणा पर आधारित है—‘बड़ा’ और ‘छोटा’, ‘वास्तविकता’ और ‘भ्रम’ जैसे तथ्यों को ज़ूम इन और आउट करते हुए यह हमें अपनी समझ पर कठोर, निर्मम नज़र डालने के लिए उकसाता है कि क्या ये अवधारणाएँ कभी इतनी निरपेक्ष या निश्चित हो सकती हैं जितना हम सोचते हैं।
“और समय के साथ हम यह देखने लगते हैं कि हम ब्रह्मांड के किनारे पर हैं, लेकिन यह किनारे पर स्थित ब्रह्मांड है, जिसमें कोई केंद्र नहीं है, केवल चहलकदमी करने वाली चीज़ों का एक समूह है, और शायद हमारी समझ की संपूर्णता हमारे अपने बाहरीपन के एक विस्तृत और निरंतर विकसित होने वाले ज्ञान से बनी है, वैज्ञानिक जांच के साधनों द्वारा मानव जाति के अहंकार को तब तक कुचला जाता है जब तक कि वह अहंकार न बन जाए, एक बिखरी हुई इमारत जो प्रकाश को अंदर आने देती है।”
उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ और इतिहास—रोमन के नायक सर्गेई क्रिकेलेव, जिसे यू.एस.एस.आर. द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया था पर उसे मीर की कक्षा में लंबे समय तक रहना पड़ा क्योंकि तब तक यू.एस.एस.आर. का अस्तित्व समाप्त हो चुका था, या चीय के घर की दीवार पर चिपकी चंद्रमा पर लैंडिंग दिवस की तस्वीर-बौने होने लगते हैं। वे ख़ुद को और अपने सभी पूर्वजों को सिर्फ़ प्रयोगशाला के चूहों के रूप में देखने लगते हैं जिनकी यात्राएँ जल्द ही ‘कोच भ्रमण की तरह लगेंगी, और उनकी उँगलियों पर खुलने वाली संभावना के क्षितिज केवल उनके अपने छोटेपन और संक्षिप्तता की पुष्टि करेंगे।’
ऑर्बिटल की बड़ी सफलता यह भी है कि यह एक ऐसी जगह की कथा कह रहा है जो स्थिर न होकर लगातार घूम रही है। कथानक पल-प्रतिपल बदलते दृश्यों को सफलतापूर्वक क्रमबद्ध करता है। एक समय पर अंतरिक्ष यात्री ‘महाद्वीपों को एक-दूसरे से टकराते हुए या रूस और अलास्का को नाक से नाक सटाते हुए’ देखकर ख़ुश हो जाते हैं, लेकिन जल्द ही वे इस ‘निरंतर ट्रेडमिल’ से थक भी जाते हैं। ‘कभी-कभी उन पिछड़ते महाद्वीपों को अपने-आप से दूर धकेलना कठिन हो जाता है। वहाँ होने वाला सारा जीवन, जो आया और चला गया, आपकी पीठ पर बैठ जाता है।’ यहाँ तक कि सूक्ष्म बदलावों को भी कुशलतापूर्वक रेखांकित किया गया है।
कभी अंतरिक्ष यान सांसारिक द्वेष से सुरक्षा महसूस कराता है; कभी वह निष्क्रियता व्याप्त एक तंग जगह लगने लगता है। उदाहरण के लिए, पिएट्रो की बेटी द्वारा उससे पूछा गया सवाल—क्या प्रगति सुंदर हो सकती है? पृथ्वी पर रहते हुए, उसने इसका सकारात्मक उत्तर दिया था, और जोड़ा था कि प्रगति का अर्थ जीवित होना होता है जो स्वयं में ही एक सुंदर अवस्था है। लेकिन अंतरिक्ष यान पर रहते हुए जब उन्हें पृथ्वी पर होते ‘मनुष्य के विक्षिप्त हमले’ देखने को मिले, तब उन्हें यह एहसास हुआ कि प्रगति कोई चीज़ न होकर ‘रोमांच और विस्तार की भावना है जो पेट से शुरू होकर छाती तक पहुँचती है।’
अंत में, शॉन को एहसास होने लगता है कि शायद ‘लास मेनिनास’ उस कुत्ते के बारे में है जो इंसान होने के विशिष्ट परंतु हास्यास्पद तरीक़ों को भौंचक्का होकर देख रहा है। इस तरह ऑर्बिटल इंसान होने या (न होने) के उन सभी दार्शनिक और समसामयिक सवालों के जूझता है जिन पर ग़ौर करना आवश्यक है। इस तरह यह एक चेतावनी भी है कि यदि हमने अपने जीवन जीने के तरीक़ों में आमूल-चूल परिवर्तन नहीं किए तो वह दिन दूर नहीं जब हम पृथ्वी को उसी तरह देख पाएँगे जैसे वे छह अंतरिक्ष यात्री।
इस प्रकार ऑर्बिटल जीवन की भव्यता का प्रशस्ति पत्र भी बन जाता है। यह जीने के नए तरीकों और विरोधाभासों को स्वीकारने और ख़ुद को इसकी प्रबल शक्तियों के सामने आत्मसमर्पित करने का संदेश देता है। “मानव उपलब्धि के किसी शिखर पर पहुँचना केवल यह पता लगाने के लिए ज़रूरी है कि आपकी उपलब्धियाँ कुछ भी नहीं हैं और यह समझना किसी भी जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है, जो अपने आप में कुछ भी नहीं है, और हर चीज़ से कहीं ज़्यादा बढ़कर है। कोई धातु हमें शून्य से अलग करती है; मृत्यु बहुत क़रीब है। जीवन हर जगह है, हर जगह।”
~
लेखक की अनुमति से, 'समालोचन' से साभार।
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
28 नवम्बर 2025
पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’
ग़ौर कीजिए, जिन चेहरों पर अब तक चमकदार क्रीम का वादा था, वहीं अब ब्लैक सीरम की विज्ञापन-मुस्कान है। कभी शेविंग-किट का ‘ज़िलेट-मैन’ था, अब है ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’। यह बदलाव सिर्फ़ फ़ैशन नहीं, फ़ेस की फि
18 नवम्बर 2025
मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं
Men are afraid that women will laugh at them. Women are afraid that men will kill them. मार्गरेट एटवुड का मशहूर जुमला—मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं; औरतें डरती हैं कि मर्द उन्हें क़त्ल
30 नवम्बर 2025
गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!
मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में जितने भी... अजी! रुकिए अगर आप लड़के हैं तो यह पढ़ना स्किप कर सकते हैं, हो सकता है आपको इस लेख में कुछ भी ख़ास न लगे और आप इससे बिल्कुल भी जुड़ाव महसूस न करें। इसलिए आपक
23 नवम्बर 2025
सदी की आख़िरी माँएँ
मैं ख़ुद को ‘मिलेनियल’ या ‘जनरेशन वाई’ कहने का दंभ भर सकता हूँ। इस हिसाब से हम दो सदियों को जोड़ने वाली वे कड़ियाँ हैं—जिन्होंने पैसेंजर ट्रेन में सफ़र किया है, छत के ऐंटीने से फ़्रीक्वेंसी मिलाई है,
04 नवम्बर 2025
जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक
—किराया, साहब... —मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं। एक काम करो, सीधे चल पड़ो 1/1 बिशप लेफ़्राॅय रोड की ओर। वहाँ एक लंबा साया दरवाज़ा खोलेगा। उससे कहना कि ऋत्विक घटक टैक्सी करके रास्तों से लौटा... जेबें