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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

04 दिसम्बर 2025

‘उद्भ्रांत की आत्मकथा : हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर’

‘उद्भ्रांत की आत्मकथा : हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर’

उद्भ्रांत हिंदी साहित्य की उस पीढ़ी के प्रतिनिधि कवि हैं, जिन्होंने ‘नई कविता’ के बाद सातवें दशक में छंद में हाथ आज़माते हुए, कविता के अन्य आंदोलनों के बीच अपनी जगह बनाई—यद्यपि बाद में उन्होंने अपने सम

15 नवम्बर 2025

प्रतिउत्तर : ‘नाकर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद’

प्रतिउत्तर : ‘नाकर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद’

शिवमूर्ति जी ने ‘अगम बहै दरियाव’ पर मेरी आलोचना देखकर एक प्रतिलेख लिखा है और ग़ालिब की यह मनःकामना मेरे हित में पूरी कर दी : नाकर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद या रब! अगर इन कर्दा गुनाहों क

15 नवम्बर 2025

प्रतिलेख : ‘अगम बहै दरियाव’ पर वागीश शुक्ल की आलोचना के बारे में कुछ तथ्य

प्रतिलेख : ‘अगम बहै दरियाव’ पर वागीश शुक्ल की आलोचना के बारे में कुछ तथ्य

गत 6 अक्टूबर को ‘बेला’ पर ‘अगम बहै दरियाव’ (शिवमूर्ति, राजकमल प्रकाशन, द्वितीय संस्करण : 2024, पृष्ठ 560-561) पर वागीश शुक्ल का एक आलोचनात्मक आलेख प्रकाशित हुआ। इसे पढ़कर शिवमूर्ति ने अपना पक्ष रखा है

19 अक्तूबर 2025

शरणार्थी शिविरों में समाए तिब्बती जीवन का दुख

शरणार्थी शिविरों में समाए तिब्बती जीवन का दुख

सेयरिंग यांगजोम लामा तिब्बती लेखक हैं। ‘वी मैज़र द अर्थ विथ ऑर बॉडिज़’ उनका पहला उपन्यास है। उनका जन्म और पालन-पोषण नेपाल के एक तिब्बती शरणार्थी समुदाय में हुआ। आपको कैसा महसूस होगा अगर आपको आपके

06 अक्तूबर 2025

अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव

अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव

एक पहलवान कुछ न समझते हुए भी पाँड़े बाबा का मुँह ताकने लगे तो उन्होंने समझाया : अपने धर्म की व्यवस्था के अनुसार मरने के तेरह दिन बाद तक, जब तक तेरही नहीं हो जाती, जीव मुक्त रहता है। फिर कहीं न

20 सितम्बर 2025

मृत्यु ही जीवन का सबसे विश्वसनीय वादा है

मृत्यु ही जीवन का सबसे विश्वसनीय वादा है

जिस क्षण हम जन्म लेते हैं, उसी क्षण मृत्यु हमारे साथ चल पड़ती है। हमारा हर क़दम अपनी मृत्यु की ओर उसकी छाया की तरह उठता है। हर बीता हुआ कल वर्तमान में समाकर आने वाले कल से मिलने की दिशा में बढ़ता है।

02 सितम्बर 2025

समीक्षा : मृत्यु अंत है, लेकिन आश्वस्ति भी

समीक्षा : मृत्यु अंत है, लेकिन आश्वस्ति भी

मृत्यु ऐसी स्थिति है, जिसका प्रामाणिक अनुभव कभी कोई लिख ही नहीं सकता; लेकिन इस कष्टदायी अमूर्तता के स्वरूप, दृश्य और प्रभाव को वरिष्ठ कवि अरुण देव ने पूरी सफलता के साथ काव्य शैली में ढाल दिया है। ‘मृ

30 अगस्त 2025

समीक्षा : सूर्यबाला के पहले उपन्यास का पुनर्पाठ

समीक्षा : सूर्यबाला के पहले उपन्यास का पुनर्पाठ

हिंदी साहित्य में जिसे साठोत्तरी रचना पीढ़ी के नाम से जाना जाता है, सूर्यबाला उसकी एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनकी साहित्यिक पहचान की नींव उनके पहले ही उपन्यास ‘मेरे संधि-पत्र’ से जुड़ी है। मैं इस किता

25 जून 2025

अब बाज़ार स्त्री के क़दमों में है

अब बाज़ार स्त्री के क़दमों में है

समकालीन हिंदी स्त्री-कविता की परंपरा में अनीता वर्मा सघन संवेदना और ऐन्द्रियबोध की कवि हैं। भाषा, भाव और बिंब के साथ प्रतीकों की अलग आभा उनकी कविताओं को दुर्लभ अर्थ-छवियों से जोड़ती है। परिवार, समाज,

21 जून 2025

नेहरू के पहले अफ़सर : स्वतंत्र भारत की विदेश नीति के निर्माता राजनयिक

नेहरू के पहले अफ़सर : स्वतंत्र भारत की विदेश नीति के निर्माता राजनयिक

यदि सरदार पटेल को भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) का संरक्षक माना जाए, तो राजनयिक दल के संदर्भ में वही उपाधि नेहरू पर भी लागू होती है। तथ्य यह है कि जहाँ IAS के पहले बैच की भर्ती स्वतंत्रता से पहले ही हो