Font by Mehr Nastaliq Web

बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

02 सितम्बर 2025

‘समीक्षा : मृत्यु अंत है, लेकिन आश्वस्ति भी’

‘समीक्षा : मृत्यु अंत है, लेकिन आश्वस्ति भी’

मृत्यु ऐसी स्थिति है, जिसका प्रामाणिक अनुभव कभी कोई लिख ही नहीं सकता; लेकिन इस कष्टदायी अमूर्तता के स्वरूप, दृश्य और प्रभाव को वरिष्ठ कवि अरुण देव ने पूरी सफलता के साथ काव्य शैली में ढाल दिया है। ‘मृत

30 अगस्त 2025

समीक्षा : सूर्यबाला के पहले उपन्यास का पुनर्पाठ

समीक्षा : सूर्यबाला के पहले उपन्यास का पुनर्पाठ

हिंदी साहित्य में जिसे साठोत्तरी रचना पीढ़ी के नाम से जाना जाता है, सूर्यबाला उसकी एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनकी साहित्यिक पहचान की नींव उनके पहले ही उपन्यास ‘मेरे संधि-पत्र’ से जुड़ी है। मैं इस किता

25 जून 2025

अब बाज़ार स्त्री के क़दमों में है

अब बाज़ार स्त्री के क़दमों में है

समकालीन हिंदी स्त्री-कविता की परंपरा में अनीता वर्मा सघन संवेदना और ऐन्द्रियबोध की कवि हैं। भाषा, भाव और बिंब के साथ प्रतीकों की अलग आभा उनकी कविताओं को दुर्लभ अर्थ-छवियों से जोड़ती है। परिवार, समाज,

21 जून 2025

नेहरू के पहले अफ़सर : स्वतंत्र भारत की विदेश नीति के निर्माता राजनयिक

नेहरू के पहले अफ़सर : स्वतंत्र भारत की विदेश नीति के निर्माता राजनयिक

यदि सरदार पटेल को भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) का संरक्षक माना जाए, तो राजनयिक दल के संदर्भ में वही उपाधि नेहरू पर भी लागू होती है। तथ्य यह है कि जहाँ IAS के पहले बैच की भर्ती स्वतंत्रता से पहले ही हो

12 जून 2025

भाषा, लोग और ‘बहुरूपिये’ वाया 2014

भाषा, लोग और ‘बहुरूपिये’ वाया 2014

आज़ादी के बाद के, हमारे देश का इतिहास जब भी लिखा जाएगा तो उसमें दो खंड लाज़िमी होंगे। पहला—आज़ादी से लेकर 2014 तक और दूसरा—2014 से बाद का। ऐसा नहीं है कि 2014 के बाद से हमारे समाज में धर्म के नाम पर

11 जून 2025

निश्छल नारी की नोटबुक

निश्छल नारी की नोटबुक

ऊषा शर्मा की डायरी ‘रोज़नामचा एक कवि पत्नी का’ (संपादक : उद्भ्रांत, प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन, संस्करण : 2024) एक ऐसी कृति है, जो एक गृहिणी की अनगढ़, निश्छल अभिव्यक्ति के माध्यम से कवि-पति उद्भ्रांत के

25 मई 2025

अतीत का अँधेरा और बचकानी ख़्वाहिशें

अतीत का अँधेरा और बचकानी ख़्वाहिशें

दिनेश श्रीनेत की कहानियों का संग्रह प्रकाशित होकर सामने आया है और मैं ख़ुशी के साथ एक अजीब से एहसास से भी सराबोर हूँ। मैं इस एहसास को कोई नाम देने में ख़ुद को लाचार समझता हूँ। मगर इस एहसास के केंद्र

06 मई 2025

यात्रा के बाद यात्रा-वृत्तांत से हटकर

यात्रा के बाद यात्रा-वृत्तांत से हटकर

जैसे कुमार अंबुज फ़िल्मों पर लिखते हुए फ़िल्म की समीक्षा नहीं करते, बल्कि उसके दृश्यों, संकेतों, अर्थों और आशयों की तहों को खोलते हुए एक स्वतंत्र कृति की रचना कर देते हैं, वैसे ही डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म

11 अप्रैल 2025

विभाजन-विस्थापन-पुनर्वासन की एक विस्मृत कथा

विभाजन-विस्थापन-पुनर्वासन की एक विस्मृत कथा

पहले पन्ने पर लेखक ने इस उपन्यास (‘मरिचझाँपि को छूकर बहती है जो नदी’) का मर्म लिख दिया है—“विभाजन, विस्थापन एवं पुनर्वासन की एक विस्मृत कथा”। यह पंक्ति पढ़ते ही आप सहज से थोड़े सजग पाठक में बदल जाते

28 मार्च 2025

यह दुनिया पेट की दौड़ है

यह दुनिया पेट की दौड़ है

ख़ालिद जावेद के उपन्यास ‘नेमत ख़ाना’ से गुज़रते हुए गाहे-ब-गाहे यह महसूस होता है कि निःसंदेह तमाम दुनिया पेट की दौड़ है—इससे ज़्यादा कुछ नहीं, इससे कम कुछ नहीं। आपके अंतर् से पारदर्शी परिचय करवाते इस