साहित्य और संस्कृति की घड़ी
हिंदी-साहित्य-संसार में गोष्ठी-संगोष्ठी-समारोह-कार्यक्रम-आयोजन-उत्सव-मूर्खताएँ बग़ैर कोई अंतराल लिए संभव होने को बाध्य हैं। मुझे याद पड़ता है कि एक प्रोफ़ेसर-सज्जन ने अपने जन्मदिन पर अपने शोधार्थी से ए
सोशल मीडिया के आला कर्मचारियों ने जब जनता के लिए रील्स फ़ॉर्मेट संभव किया, तब उन्हें मालूम न होगा कि लोक के गणराज में रील्स का क्या हाल होगा! उन्हें क़तई पता नहीं था कि इसी रील्स से सुदूर बाड़मेर के पत
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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