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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

17 दिसम्बर 2025

‘भाभी कॉम्प्लेक्स और कार्ल मार्क्स’

‘भाभी कॉम्प्लेक्स और कार्ल मार्क्स’

हिंदी साहित्य में भाभी जिस रूप में उतरी है, उसमें सत्य से अधिक सुहावनापन है। आज भी पुरुष की बहुपत्नीक और स्त्री की बहुपति प्रवृत्तियाँ, जो तहज़ीब के नीचे से अब भी रिसती रहती हैं और साहित्यदानों में दि

16 दिसम्बर 2025

लॉकडाउन डायरी : सत्ता मेरे मज़े लेती है और मैं अपने से कमज़ोर लोगों के मज़े लेता हूँ...

लॉकडाउन डायरी : सत्ता मेरे मज़े लेती है और मैं अपने से कमज़ोर लोगों के मज़े लेता हूँ...

रात्रि की भयावहता में ही रात्रि का सौंदर्य है 25 मार्च 2020 पूर्व दिशा की ओर से खेरों की झाड़ियों में से उठती निशाचर उल्लुओं की किलबिलाहट से नींद खुल गई। यूँ तंद्रा का टूटना अनायास ही अकुलाहट क

15 दिसम्बर 2025

ऑक्सफ़ोर्ड, इलाहाबाद विश्वविद्यालय : कैंपस की कहानियाँ, अँग्रेज़ी संस्कृति और सिनेमा

ऑक्सफ़ोर्ड, इलाहाबाद विश्वविद्यालय : कैंपस की कहानियाँ, अँग्रेज़ी संस्कृति और सिनेमा

“मैं हॉस्पिटल में वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन मास्क पहने हुए नहीं मरना चाहता, बल्कि नेचुरल डेथ चाहता हूँ, अपनों के साथ रहते हुए। हॉस्पिटल में मरने से पहले जो थोड़ी-सी जीने की ख़्वाहिश बची है, वह भी मर जाती

13 दिसम्बर 2025

कहानी : आकांक्षा

कहानी : आकांक्षा

मेरे हाथ में संडे का अख़बार है। मेरे बाजू के स्टूल पर सुबह की पहली चाय का कप। स्मिता भी चाय पी रही है। बरसों पहले फ़्रेम करवायी गई रवींद्रनाथ ठाकुर की यह तस्वीर किताबों की रैक के नीचे टंगी है। रवी बा

12 दिसम्बर 2025

बकुला मरलें, बकुली रूसल जाली! : कथा और कथा की समझ

बकुला मरलें, बकुली रूसल जाली! : कथा और कथा की समझ

भोजपुरी में न जाने कितनी लोककथाएँ हैं। कुछ तो लोक में ख़ूब प्रचलित हैं और बहुतेरी कथाएँ लगभग विलुप्ति के कगार पर हैं। न जाने कितनी विलुप्त हो गई हैं। और इन सभी लोक कथाओं को एक जगह करना बहुत मुश्किल क

11 दिसम्बर 2025

लिखने ने मुझे मेरी याददाशत दी

लिखने ने मुझे मेरी याददाशत दी

मेरे नाना लेखक बनना चाहते थे। वह दसवीं तक पढ़े और फिर बैलों की पूँछ उमेठने लगे। उन्होंने एक उपन्यास लिखा, जिसकी कहानी अब उन्हें भी याद नहीं। हमने मिलकर उसे खोजना चाहा, वह नहीं मिला। पता नहीं वह किसी

10 दिसम्बर 2025

अनुवाद का द्वंद्व : भक्ति-काव्य की सार्वभौमिक अनुगूँजें

अनुवाद का द्वंद्व : भक्ति-काव्य की सार्वभौमिक अनुगूँजें

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे (1938–2009) आधुनिक मराठी साहित्य के प्रमुख कवि, आलोचक, अनुवादक, चित्रकार और फ़िल्मकार थे; जिन्होंने मराठी और अँग्रेज़ी—दोनों भाषाओं में अपनी रचनात्मकता का विस्तार किया। बड़ौदा

03 दिसम्बर 2025

मिसफ़िट होने की कला

मिसफ़िट होने की कला

एक मित्र और उनके मात्र ग्यारह साल के बेटे के बीच महीनों का अबोला पसरा है। अबोला अचानक नहीं आया है। कई-कई टकराव और असहमतियों के बाद यह समय आया है। मित्र हैरान हैं। ऐसा तो कहाँ होता था! उस उम्र में तो

01 दिसम्बर 2025

बिहार चुनाव में जातीय गानों की भूमिका

बिहार चुनाव में जातीय गानों की भूमिका

बीते नवंबर बिहार विधानसभा का चुनावी समर अपने शबाब पर रहा। बिहार की राजनीति हमेशा से पूरे देश में चर्चा का विषय रही है। जिसका प्रमुख कारण बिहार का एक बड़ा सूबा होना है क्योंकि केंद्र का रास्ता बहुत कु

30 नवम्बर 2025

गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!

गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!

मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में जितने भी... अजी! रुकिए अगर आप लड़के हैं तो यह पढ़ना स्किप कर सकते हैं, हो सकता है आपको इस लेख में कुछ भी ख़ास न लगे और आप इससे बिल्कुल भी जुड़ाव महसूस न करें। इसलिए आपक