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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

07 नवम्बर 2025

‘कहानी : रिपोर्टर’

‘कहानी : रिपोर्टर’

अक्टूबर आ गया। मौसम करवटें लेने लगा है। प्रभु अपना चश्मा खोज रहे हैं। रात में कहीं रखा गया था। चाय उबलकर देगची से बाहर निकलने लगी। प्रभु ने गैस बंद किया। सुबह-सुबह ही उनके मन में क्या-क्या आने लगा था?

07 नवम्बर 2025

कामू-कमला-सिसिफ़स

कामू-कमला-सिसिफ़स

“The struggle itself toward the heights is enough to fill a man’s heart. One must imagine Sisyphus happy.” —अल्बैर कामू, द मिथ ऑफ़ सिसिफ़स कुछ सुबहें होती हैं जब दुनिया कुछ तिरछी प्रतीत होती है

06 नवम्बर 2025

कमल जीत चौधरी की दस कथाएँ

कमल जीत चौधरी की दस कथाएँ

कहानी उसने प्यार किया था। उसे अपने पुराने प्रेमी की याद सताती थी। पति की ग़ैरमौजूदगी में एक रात उसने अपने प्रेमी को घर बुलाया। घर के सभी बल्ब बंद करके, वह उसे पिछले दरवाज़े से अंदर ले आई। अंदर पहु

05 नवम्बर 2025

विकुशु के नाम एक पत्र

विकुशु के नाम एक पत्र

प्रिय विनोद कुमार शुक्ल जी, आपको मेरा सादर प्रणाम! मैंने जब ‘हिंद युग्म’ महोत्सव (रायपुर) में आपको पहली बार देखा और आपसे मिली तो मेरे मन में पहले जो भी भ्रांतियों के बादल घिरे थे, सब छँट गए। सो

03 नवम्बर 2025

गमछा : एक नमीदार सहचर

गमछा : एक नमीदार सहचर

जब भी मैं किसी थके हुए आदमी को देखती हूँ, जिसकी गर्दन पर पसीने से भीगा गमछा रखा होता है, मुझे सोबरन कक्का याद आते हैं। उनके माथे का पसीना उसी में उतरता, खेत की मिट्टी उसी से झाड़ी जाती और जब वह चुप ह

02 नवम्बर 2025

कवियों के क़िस्से वाया AI

कवियों के क़िस्से वाया AI

भरतपुर की वह दुपहर साहित्य की ऊष्मा से भरी हुई थी। हवा में हल्की गर्मी थी, लेकिन सभा-गृह के भीतर विचारों की शीतल छाया पसरी हुई थी। देश का स्वतंत्रता-संग्राम अपने चरम पर था और साहित्यकार इस संघर्ष के

01 नवम्बर 2025

साहित्यिक लेखन : जुनून या तिजारत

साहित्यिक लेखन : जुनून या तिजारत

कहा गया है कि इंसान दो दुनियाओं में जीता है-अंदरूनी और बाहरी। अंदरूनी दुनिया अध्यात्म की दुनिया होती है जिसे वो किसी तरह की कला जैसे कि साहित्यिक लेखन, नृत्य, संगीत, चित्रकारी, स्थापत्य या मुजस्समे आ

01 नवम्बर 2025

बेगम अख़्तर और लखनऊ का पसंदबाग़

बेगम अख़्तर और लखनऊ का पसंदबाग़

सवेरा कमरे में पसर गया था इसलिए हमें उठना पड़ा। कमरे का दरवाज़ा खुलते ही बालकनी शुरू हो जाती, जहाँ से मंदिर का शिखर दिखता जो गली के उस तरफ़ पार्क के दक्षिणी छोर पर था, जिसमें संघ की शाखा लगती। हम बाल

31 अक्तूबर 2025

सिट्रीज़ीन : ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

सिट्रीज़ीन : ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

सिट्रीज़ीन—वह ज्ञान के युग में विचारों की तरह अराजक नहीं है, बल्कि वह विचारों को क्षीण करती है। वह उदास और अनमना कर राह भुला देती है। उसकी अंतर्वस्तु में आदमी को सुस्त और खिन्न करने तत्त्व हैं। उसके स

30 अक्तूबर 2025

भोजपुरी मेरी मातृभाषा

भोजपुरी मेरी मातृभाषा

मेरी मातृभाषा भोजपुरी है। मेरी पैदाइश, परवरिश और तरबियत सब भोजपुरी के भूगोल में हुई है। मैं सोचता भोजपुरी में हूँ; मुझे सपने भोजपुरी में आते हैं। सपने में जब बड़बड़ाता हूँ तो वह भी भोजपुरी में ही होत