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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

10 मई 2025

‘सपना टॉकीज में हाउसफ़ुल’

‘सपना टॉकीज में हाउसफ़ुल’

उस आदमी की स्मृति में अभी बुर्राक सफ़ेद परदा टँगा हुआ है, जब वह चोरी-छिपे सपना टॉकीज में पिक्चर देखने जाया करता था और उनके नाम एक डायरी में लिख लेता था। उसकी स्मृति में सपना टॉकीज की टीन की छत के बीचोब

09 मई 2025

मोना गुलाटी की [अ]कविता

मोना गुलाटी की [अ]कविता

मोना गुलाटी अकविता की प्रतिनिधि कवि हैं। अकविता का मूल तत्त्व असहमति और विरोध से निर्मित हुआ है। असहमति और विरोध अक्सर समानार्थी शब्दों की तरह प्रयुक्त होते हैं, किंतु असहमति और विरोध में एक स्वाभावि

08 मई 2025

यूनिवर्सिटी का प्रेम और पापा का स्कूटर

यूनिवर्सिटी का प्रेम और पापा का स्कूटर

पहली कड़ी से आगे... उन दिनों इलाहबाद में प्रेम की जगहें कम होती थीं। ऐसी सार्वजनिक जगहों की कमी थी, जहाँ पर प्रेमी युगल थोड़ा वक़्त बिता सकें या साथ बैठ सकें। ग्रेजुएशन में मुझे पहला प्रेम हुआ। वह ह

07 मई 2025

रवींद्रनाथ का भग्न हृदय

रवींद्रनाथ का भग्न हृदय

विलायत में ही मैंने एक दूसरे काव्य की रचना प्रारंभ कर दी थी। विलायत से लौटते हुए रास्ते में भी उसकी रचना का कार्य चालू रहा। हिंदुस्तान में आने पर इस काव्य-रचना की समाप्ति हुई। प्रकाशित होते समय मैंने

06 मई 2025

यात्रा के बाद यात्रा-वृत्तांत से हटकर

यात्रा के बाद यात्रा-वृत्तांत से हटकर

जैसे कुमार अंबुज फ़िल्मों पर लिखते हुए फ़िल्म की समीक्षा नहीं करते, बल्कि उसके दृश्यों, संकेतों, अर्थों और आशयों की तहों को खोलते हुए एक स्वतंत्र कृति की रचना कर देते हैं, वैसे ही डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म

05 मई 2025

स्पर्श : दुपहर में घर लौटने जितना सुख

स्पर्श : दुपहर में घर लौटने जितना सुख

सोमवार से बहाल हुई दिनचर्या शुक्रवार शाम की राह तकती है—दरमियान का सारा वक़्त अनजाने निगलते हुए। एक जानिब को कभी लगा ही नहीं कि सुख शनिवार का नहीं, उसके पास जाने की हल्की तलब का होता है। कितना मुश्कि

04 मई 2025

बिंदुघाटी : कविताएँ अब ‘कुछ भी’ हो सकती हैं

बिंदुघाटी : कविताएँ अब ‘कुछ भी’ हो सकती हैं

यहाँ प्रस्तुत इन बिंदुओं को किसी गणना में न देखा जाए। न ही ये किसी उपदेश या वैशिष्ट्य-विधान के लिए प्रस्तुत हैं। ऐसे असंख्य बिंदु संसार में हर क्षण पैदा हो रहे हैं। उनमें से कम ही अवलोकन के वृत्त में

03 मई 2025

चिट्ठीरसा : कुछ परंपराओं का होना, जीवन का होना होता है

चिट्ठीरसा : कुछ परंपराओं का होना, जीवन का होना होता है

डाकिया आया है। चिट्ठी लाया है। ये शब्द अम्मा को चुभते थे। कहतीं चिट्ठीरसा आए हैं, बड़ी फुर्ती से उस दिन ओसारे से दुआर तक पहुँचतीं, जैसे कोई किसी अपने का इंतिज़ार करते माला जप रहा हो, और ईश्वर ने उसकी

02 मई 2025

उर्दू में हिंदू-धर्म का प्रचार-प्रसार : कुछ उदाहरण

उर्दू में हिंदू-धर्म का प्रचार-प्रसार : कुछ उदाहरण

ये लेख मूलतः एक किताब पर आधारित है। उस किताब में दी गई जानकारियों को यहाँ संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है। ऐसा दो-तीन कारणों से किया जा रहा है। एक तो ये कि वो किताब उर्दू में है, इसलिए हिंदी-पाठक

01 मई 2025

यह ‘जल तू जलाल तू’ फ़िल्म की समीक्षा नहीं है

यह ‘जल तू जलाल तू’ फ़िल्म की समीक्षा नहीं है

‘‘एक ज़माने पहले की बात है’’, लेकिन वो कौन-सी बात है जिसके बदलने से ज़माना बदल जाता है? ज़माना, जब कॉटन के साथ पॉलिस्टर मिलाया जाना बहुत प्रचलित बात नहीं थी, जब ‘टाटा-बिरला’ शब्द-युग्म लोकप्रिय मुहावर