साहित्य और संस्कृति की घड़ी
कुछ दिन पहले ‘अभिमान’ (1973) देखी। गाने अच्छे हैं। कहानी इस प्रकार है : एक बड़ा गायक है। अपने व्यावसायिक शिखर के समय में। जीवन में एक संगिनी की तलाश है। सुंदरियों से घिरा है। पर कोई उसे भाता नहीं ह
पत्रकार और अध्येता मनोज मिट्टा की तीसरी किताब ‘कास्ट प्राइड : बैटल फ़ॉर इक्वलिटी इन हिंदू इंडिया’ अप्रैल 2023 में प्रकाशित हुई है। इससे पहले उन्होंने 1984 के सिख विरोधी जनसंहार पर ‘When A Tree Shook D
पहला सुझाव तो यह कि जीवन चलाने भर का रोज़गार खोजिए। आर्थिक असुविधा आपको हर दिन मारती रहेगी। धन के अभाव में आप दार्शनिक बन जाएँगे लेखक नहीं। दूसरा सुझाव कि अपने लेखक समाज में स्वीकृति का मोह छोड़
सूफ़ी साहित्य का कैनवास इतना विशाल है कि अक्सर तस्वीर का एक हिस्सा देखने में दूसरा हिस्सा छूट जाता है। इस तस्वीर में इतने रंग हैं और रंगों का ऐसा मेल-मिलाप है कि किसी एक रंग को ढूँढ़ना समझना लगभग नामुम
अस्सी के दशक की ढलान पर तेज़ी से लुढ़क रहे एक असंस्कृत समय में टीवी पर ‘भारत एक खोज’ शीर्षक धारावाहिक के अथ और इति का पार्श्वसंगीत अपने-आप में ग़ुस्ताख़ी से कम नहीं था। कास्टिंग में शामिल नाम और व
दिनांक 12 दिसंबर 2024 को साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, रवींद्र भवन के सभागार में आयोजित भारतीय शिक्षा बोर्ड की हिंदी की पाठ्य-पुस्तकों के विमोचन एवं पतंजलि योगपीठ (ट्रस्ट) तथा भारतीय शिक्षा बोर्ड के सं
इतना बोलता हुआ, इतना प्रसन्नमन, ऊर्जस्वी और संगीतमय मनुष्य आपने उनके पहले कब देखा था? उस्ताद ज़ाकिर हुसैन कुल मिलाकर 73 वर्षों तक इस दुनिया में रहे; लेकिन इस एक उम्र में उन्होंने कई ज़िंदगियाँ जी लेने
‘द बुक ऑफ़ एवरलास्टिंग थिंग्स’ लाहौर के विज परिवार के साथ बीसवीं सदी की शुरुआत से शुरू होती है। इसके शुरुआत में ही स्वदेशी आंदोलन का कपड़ा व्यवसायियों पर पड़ने वाला प्रभाव, प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय स
• जल्दी-जल्दी में लिखी गईं गोपनीय नोटबुक्स और तीव्र भावनाओं में टाइप किए गए पन्ने, जो ख़ुद की ख़ुशी के लिए हों। • हर चीज़ के लिए समर्पित रहो, हृदय खोलो, ध्यान देकर सुनो। • कोशिश करो कि कभी अपने
विचारहीनता ने आज जिस प्रकार तमाम राजनीतिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक परिदृश्य को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है, और भावनाओं के उकसावे को ही वैचारिक ताक़त का नाम दिया जाने लगा है, उससे यह बात और ज़्यादा पुष्ट होत