सिनेमा पर बेला
सिनेमा ऐसा कला-रूप है
जहाँ साहित्य, संगीत, अभिनय, नृत्य जैसे कलासिक कला-रूपों के साथ ही फ़ोटोग्राफी, एनीमेशन, डिजिटल एडिटिंग, ग्राफ़िक्स जैसे अन्य आधुनिक कला-रूप प्रतिबिंबित होते हैं। आधुनिक समाज और सिनेमा का अनन्य संबंध देखा जाता है, जहाँ दोनों एक-दूसरे की प्रवृत्तियों का अनुकरण करते नज़र आते हैं। इस चयन में सिनेमा विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।
रविवासरीय : 3.0 : कभी-कभी लगता है कि गोविंदा भी कवि है
• यहाँ प्रस्तुत मज़मून लगभग चार वर्ष पुराना है, लेकिन इसके नायक से संबंधित समाचार रोज़-रोज़ कुछ इस क़दर आते हैं कि यह रोज़-रोज़ नया होता जाता है! • गत वर्ष के एक अक्टूबर की सुबह पाँच बजे के आस-पास छह गो
‘द गर्ल विथ द नीडल’ : महायुद्धों के बाद के महायुद्ध!
स्वीडिश-पॉलिश फ़िल्म डायरेक्टर मैग्नस वॉन हॉर्न अपनी फ़िल्मों के माध्यम से ‘अपराध’ एवं उससे जुड़ी ‘मनोदशा’ को बारीक़ी से समझना चाहते हैं। उन्होंने यह विषय तब चुना जब फ़िल्म-मेकिंग सीखने के लिए वह पोल
उम्मीद का चक्र जब पूरा होता है, तब ज़िंदगी कहाँ होती है!
सुंदरता की अपने तहें होती हैं। बहुत मुलायम और क्रूर भी। मन हमेशा इतना ही अनजान रहता है कि वह परतों के इस जमावड़े को भूल जाए। कहाँ ध्यान रहता है कि सुख के किस क्षण ने हाल में फूटे दुखों के ज्वालामुखी
इस बार 13 शहरों में अपनी रंगत बिखेरेगा ‘भारंगम’
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) द्वारा प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाने वाला विश्व प्रसिद्ध भारत रंग महोत्सव इस वर्ष भी कई रंगमंच की नई पहलों-गतिविधियों के साथ दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए तैयार है
एक मुसलमान का ‘पाताल लोक’
‘पाताल लोक’ का दूसरा सीज़न पूरा देखा और इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी की ‘हाथी’ जैसी अदाकारी के आगे सारे अदाकार फीके पड़ गए। मेरे जैसे दर्शक को यह देखकर ख़ुशी हुई कि चलो कम से कम किसी किरदार का नाम अंसारी
21 जनवरी 2025
भारतीय समाज का गुड गर्ल सिंड्रोम
भारतीय समाज में लड़कियों की परवरिश एक जटिल प्रक्रिया है—संरक्षण और स्वतंत्रता के बीच का एक सूक्ष्म संतुलन। वे शिक्षा और करियर के लिए प्रेरित की जाती हैं, लेकिन उनकी उड़ान पर अदृश्य धागों से खिंचाव डा
‘द लंचबॉक्स’ : अनिश्चित काल के लिए स्थगित इच्छाओं से भरा जीवन
जीवन देर से शुरू होता है—शायद समय लगाकर उपजे शोक के गहरे कहीं बहुत नीचे धँसने के बाद। जब सुख सरसराहट के साथ गुज़र जाए तो बाद की रिक्तता दुख से ज़्यादा आवाज़ करती है। साल 2013 में आई फ़िल्म ‘द लंचब
‘अभिमान’ और रोमांटिसाइजेशन की दिक़्क़त
कुछ दिन पहले ‘अभिमान’ (1973) देखी। गाने अच्छे हैं। कहानी इस प्रकार है : एक बड़ा गायक है। अपने व्यावसायिक शिखर के समय में। जीवन में एक संगिनी की तलाश है। सुंदरियों से घिरा है। पर कोई उसे भाता नहीं
श्याम बेनेगल : ग़ैर-समझौतापरस्त रचनात्मक मिशन का सबसे भरोसेमंद और बुलंद स्मारक
अस्सी के दशक की ढलान पर तेज़ी से लुढ़क रहे एक असंस्कृत समय में टीवी पर ‘भारत एक खोज’ शीर्षक धारावाहिक के अथ और इति का पार्श्वसंगीत अपने-आप में ग़ुस्ताख़ी से कम नहीं था। कास्टिंग में शामिल नाम और व
गिफ़्टेड : एक जीनियस बच्ची के बचपन को बचाने की कहानी
अपनी माँ की भाषा में कहूँ तो गिफ़्टेड एक मामा और भांजी के एक आत्मीय रिश्ते पर आधारित एक फ़िल्म है। मामा यानी माँ का भाई, गिफ़्टेड देखते हुए मुझे अपने मामा की याद बरबस ही आती रही कि कैसे उन्होंने हम भा
CTRL : एक बेमेल दुनिया की सच्चाई, जहाँ से बचना लगभग असंभव है
कभी-कभी सोचती हूँ कि यह आभासी दुनिया भी कितनी उकताऊ हो चुकी है। कुछ भी आभासी देखने या सुनने का मन नहीं होता। जब मैंने नेटफ़्लिक्स पर ‘CTRL’ देखनी शुरू की, तो मुझे लगा कि यह एआई और डेटा-प्राइवेसी पर आ
ईमानदार CA से मेल एस्कॉर्ट तक का सफ़र
संघर्ष, विद्रोह और समाजवाद की सिनेमाई यात्रा : नेटफ़्लिक्स सीरीज़ त्रिभुवन मिश्रा सीए टॉपर आधुनिक भारतीय मनोरंजन की भीड़-भाड़ में, नेटफ़्लिक्स की सीए टॉपर एक ऐसी सिनेमाई रचना के रूप में उभरती है,
एंग्री यंग मैन : सलीम-जावेद की ज़िंदगी के अनछुए अध्याय
नम्रता राव द्वारा निर्देशित अमेज़न प्राइम डाक्यूमेंट्री सीरीज़ ‘एंग्री यंग मैन’ मशहूर पटकथा लेखक जोड़ी—सलीम ख़ान और जावेद अख़्तर के जीवन की एक खोज है, जिनके सहयोग ने 1970 और 80 के दशक में हिंदी-सिनेम
सेक्टर 36 : शहरों की नहीं दिखने वाली ख़ौफ़-भरी घटनाओं का रियलिस्टिक थ्रिलर
कभी-कभी सिनेमा देखने वालों को भी तलब होती है कि ऐसा कोई सिनेमा देखें जो उनके भीतर पनप रहे कोलाहल या एंग्जायटी को ऐसी ख़ुराक दे जिससे उनके दिल-ओ-दिमाग़ को एक शॉक ट्रीटमेंट मिले और वह कुछ ज़रूरी मानवीय मू
वेयर इज़ द फ़्रेंड्स हाउस? : जीवन की सबसे बड़ी सच्चाइयाँ सबसे सरल क्षणों में छिपी होती हैं
ईरानी सिनेमा के महान् शिल्पी अब्बास कियारोस्तमी एक ऐसे सिनेकार (जो चित्रकार बनना चाहते थे) थे, जिन्होंने फ़िल्म के कैनवास पर जीवन के रंगों को इस तरह बिखेरा, मानो कोई कवि अपने शब्दों से कविता रच रहा ह
आज के दिन भूलकर भी न देखें ये फ़िल्में
इन पंक्तियों के लेखक के एक प्राचीन आलेख (कभी-कभी लगता है कि गोविंदा भी कवि है) के शीर्षक की तरह ही यहाँ प्रस्तुत आलेख का शीर्षक भी बहुत बड़ा हो रहा था, इसलिए इसे किंचित संपादित करना पड़ा। दरअस्ल, पूरा
मुंबई के आराम नगर में शुरू होगी एक महीने की एक्टिंग वर्कशॉप, जुड़िए
मनोरमा थिएटर—मुंबई के आराम नगर में, एक अभिनय कार्यशाला (Acting Workshop) करने जा रही है। इस एक्टिंग वर्कशॉप की अवधि लगभग 30 दिनों की होगी। एक्टिंग स्किल्स पर फ़ोकस इस कार्यशाला के साथ-साथ, एक नाटक भी
सिद्धेश्वरी : मौन और ध्वनि की एक सिम्फ़नी
मणि कौल की फ़िल्म ‘सिद्धेश्वरी’ 1989 में बनी एक डॉक्यूमेंट्री है, जो प्रसिद्ध हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका सिद्धेश्वरी देवी के जीवन और कला पर आधारित है। सिद्धेश्वरी देवी भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक म
बेला तार की ‘द ट्यूरिन हॉर्स’ देखते हुए
...सर्वाधिक तुच्छ और साधारण जीवन में भी एक अपार महानता निहित होती है। ‘द ट्यूरिन हॉर्स’—मात्र एक फ़िल्म नहीं है; यह एक गहन अनुभूति है। एक आध्यात्मिक यात्रा है। यह फ़िल्म हमें आमंत्रित करती है कि हम अ
गोदार के बारे में दो-एक बातें
यह लेख सत्यजीत रे द्वारा सिनेमा पर लिखे गए लेखों के—संदीप रे द्वारा संपादित—संग्रह ‘डीप फ़ोकस : रिफ़्लेक्शंस ऑन सिनेमा’ से लिया गया है। इस लेख में वह फ़्रांसीसी फ़िल्म निर्देशक ज्याँ-लुक गोदार (Jean-
सत्यजीत रे और उनके स्वाद का संसार
सत्यजीत रे की सबसे उल्लेखनीय आदतों में से एक—भोजन की संस्कृति पर उनका विशेष ध्यान था। रे को भोजन, विशेष रूप से बंगाली व्यंजनों के प्रति उनके प्यार के लिए भी जाना जाता था। वह बढ़िया भोजन के पारखी
01 जून 2024
रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’ और दूसरे प्रसंग
‘‘महानतम कृत्य अपनी चमक खो देते हैं, अगर उन्हें शब्दों में न बाँधा जाए। क्या तुम स्वयं को ऐसा उद्यम करने के योग्य समझते हो, जो हम दोनों को अमर बना दे।’’ संसारप्रसिद्ध कहानीकार होर्हे लुई बोर्हेस की इ
‘लापता लेडीज़’ देखते हुए
‘लापता लेडीज़’ देखते हुए मेरे अंदर संकेतों और प्रतीकों की पहचान करने वाली शख़्सियत को कुछ वैसा ही महसूस हुआ जो कोड्स की सूँघकर पहचान कर देने वाले कुत्तों में होती है। मुझे लगा कि इस फ़िल्म के ज़ाहिर किए
23 अप्रैल 2024
'झीनी बीनी चदरिया' का बनारस
एक शहर में कितने शहर होते हैं, और उन कितने शहरों की कितनी कहानियाँ? वाराणसी, बनारस या काशी की लोकप्रिय छवि विश्वनाथ मंदिर, प्राचीन गुरुकुल शिक्षा के पुनरुत्थान स्वरूप बनाया गया बनारस हिंदू विश्वविद्य
सिफ़्सी लेकर आ रहा है देश-विदेश की 150 फ़िल्में
स्माइल फ़ाउंडेशन—यूरोपीय संघ (भारत में यूरोपीय संघ का प्रतिनिधिमंडल) के साथ साझेदारी में बच्चों और नौजवानों के लिए वार्षिक स्माइल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (सिफ्सी) के 10वें संस्करण की मेज़बानी करेगा। स