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वेयर इज़ द फ़्रेंड्स हाउस? : जीवन की सबसे बड़ी सच्चाइयाँ सबसे सरल क्षणों में छिपी होती हैं

ईरानी सिनेमा के महान् शिल्पी अब्बास कियारोस्तमी एक ऐसे सिनेकार (जो चित्रकार बनना चाहते थे) थे, जिन्होंने फ़िल्म के कैनवास पर जीवन के रंगों को इस तरह बिखेरा, मानो कोई कवि अपने शब्दों से कविता रच रहा हो। उनकी कला में सादगी और गहराई का अद्भुत मेल था, जो दर्शकों को अपने भीतर झाँकने पर मजबूर करता है।

अब्बास कियारोस्तमी की फ़िल्में जीवन के उन क्षणों को सिनेमा के किरमिच पर लाती हैं, जो अक्सर हमारी नज़रों से ओझल रह जाते हैं। वह एक ऐसे सिनेकार थे, जो अपने कैमरे से न केवल दृश्यों को, बल्कि भावनाओं को भी क़ैद करते थे। उनकी हर फ़िल्म एक यात्रा की तरह होती है—बाहरी दुनिया से लेकर मानव मन की गहराइयों तक।

उनकी फ़िल्मों में प्रकृति भी एक महत्त्वपूर्ण किरदार की होती है। वह पेड़ों की पत्तियों की सरसराहट, पहाड़ों की विशालता और आसमान की अनंतता को इस तरह प्रस्तुत करते हैं, मानो ये सब मानव-जीवन के साथ एक गहरा संवाद कर रहे हों। उनकी फ़िल्मों में प्रकृति सिर्फ़ पृष्ठभूमि में नहीं होती, बल्कि एक जीवंत उपस्थिति की तरह मिलती है।

अब्बास कियारोस्तमी की कहानियाँ अक्सर सरल नज़र आती हैं, लेकिन उनमें जीवन के गहन सत्य छिपे होते हैं। वे मानव संबंधों की जटिलताओं को इस तरह प्रस्तुत करते हैं—जैसे कोई कुशल मूर्तिकार पत्थर में से नाज़ुक आकृतियाँ गढ़ रहा हो। उनकी फ़िल्मों में हर पात्र, हर संवाद एक गहरा अर्थ रखता है।

उनका कैमरा एक ऐसी आँख की तरह है, जो न केवल देखता है, बल्कि महसूस भी करता है। वह लंबे, धीमे शॉट्स का इस्तेमाल करके दर्शकों को समय और स्थान का एक नया अहसास कराते हैं। उनकी फ़िल्मों में समय अपनी गति से धीमा हो जाता है, मानो जैसे समय ख़ुद भी किसी ध्यान की अवस्था में हो।

आपको अब्बास कियारोस्तमी की कला में वास्तविकता और काल्पनिकता का एक अद्भुत मिश्रण मिलेगा। उन्होंने अक्सर ग़ैर-पेशेवर अभिनेताओं के साथ काम किया, जो उनकी फ़िल्मों को एक अलग तरह की प्रामाणिकता प्रदान करता था। उनकी फ़िल्में कभी-कभी डॉक्यूमेंट्री और फ़िक्शन के बीच की रेखा को धुँधला कर देती है।

उनकी फ़िल्म निर्माण शैली में एक ख़ास तरह की शायराना गुणवत्ता थी। वह जटिल विषयों को इस तरह प्रस्तुत करते थे, जैसे कोई कवि अपनी कविता में गहन भावों को सरल शब्दों में व्यक्त करता है। 

अब्बास कियारोस्तमी ने सिनेमा को एक नया आयाम दिया। उन्होंने दिखाया कि फ़िल्में सिर्फ़ मनोरंजन का माध्यम नहीं हैं, बल्कि वे जीवन को समझने, उसकी गहराइयों में उतरने का एक माध्यम भी हो सकती हैं। उनकी फ़िल्में दर्शकों को सोचने, महसूस करने और अपने आस-पास की दुनिया को नए तरीक़े से देखने के लिए प्रेरित करती हैं। उन्होंने दुनिया को एक नई दृष्टि दी। उनकी विरासत सिनेमा जगत में एक ऐसा प्रकाश-स्तंभ है, जो आने वाली पीढ़ियों को रास्ता दिखाता रहेगा।

कुरुसोवा ने उनके बारे कहा था कि सत्यजीत रे के निधन पर मैं बहुत दुखी हुआ था। लेकिन जब मैंने अब्बास की फ़िल्मों को देखा, तो मुझे लगा कि यह सही आदमी है, जो उनकी जगह ले सकता है। 

‘वेयर इज़ द फ़्रेंड्स हाउस?’—एक ऐसी फ़िल्म है जो अपनी सादगी में अद्भुत गहराई छिपाए हुए है। 1987 में रिलीज़ हुई यह फ़िल्म एक छोटे बच्चे की यात्रा को दर्शाती है, जो अपने सहपाठी की मदद करने के लिए एक साहसिक क़दम उठाता है।

जब आप इस फ़िल्म को देखते हैं, तो आपको लगता है जैसे आप ख़ुद उस छोटे से गाँव में घूम रहे हों, जहाँ हर गली, हर मोड़ एक नई कहानी कहता है। कियारोस्तमी ने इस फ़िल्म में जीवन के सबसे सरल क्षणों को इतनी ख़ूबसूरती से पेश किया है कि आप उनकी गहराई में खो जाते हैं।

फ़िल्म का केंद्रीय पात्र अहमद—एक आठ वर्षीय लड़का है, जिसकी आँखों से हम यह कहानी देखते हैं। उसकी मासूमियत और दृढ़ संकल्प आपको अपने बचपन की याद दिला देते हैं, जब दुनिया रहस्यों से भरी थी और हर छोटा कार्य एक बड़ा साहसिक क़दम लगता था।

जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है, आप अहमद के साथ उस छोटे से गाँव की गलियों में भटकते हैं। हर मोड़ पर, हर दरवाज़े पर, वह अपने दोस्त के घर की तलाश करता है। यह यात्रा सिर्फ़ एक नोटबुक लौटाने की नहीं, बल्कि एक बच्चे के नैतिक विकास की भी है।

अब्बास कियारोस्तमी ने इस फ़िल्म में समय को एक अलग ही अर्थ दे दिया है। जैसे-जैसे सूरज ढलता है, अहमद की यात्रा और भी कठिन होती जाती है। आप उसके साथ हर क़दम पर चिंतित होते हैं, हर असफलता पर निराश होते हैं, और हर छोटी-सी उम्मीद पर ख़ुश होते हैं।

गाँव के वयस्क, जो अहमद की मदद करने की बजाय उसे घर लौटने की सलाह देते हैं, आपको समाज के उन पहलुओं की याद दिलाते हैं जो बच्चों की भावनाओं को समझने में असमर्थ होते हैं। लेकिन अहमद की दृढ़ता आपको प्रेरित करती है, आपको याद दिलाती है कि कभी-कभी सबसे छोटे लोग भी सबसे बड़े सबक़ दे सकते हैं।

अब्बास कियारोस्तमी के कैमरा से दिखाया गया ईरान का यह छोटा-सा गाँव एक जीवंत चित्र बन जाता है। फ़िल्म के दृश्य ऐसे हैं मानो किसी कलाकार ने अपने ब्रश बहुत ही सलीक़े से फ़िल्मी परदे पर उतार दिया हो। टेढ़ी-मेढ़ी गलियाँ, मिट्टी के घर, और दूर क्षितिज पर फैले पहाड़—हर फ़्रेम एक कविता की तरह है जो बिना शब्दों के अपनी कहानी कहता है।

सूर्यास्त का समय न केवल दिन के अंत को दर्शाता है, बल्कि अहमद की बढ़ती चिंता को भी। आप महसूस करते हैं कि जैसे-जैसे अँधेरा बढ़ता है, उसकी चुनौतियाँ भी बढ़ती जा रही हैं।

अब्बास कियारोस्तमी ने लंबे, धीमे शॉट्स का इस्तेमाल करके न केवल गाँव के जीवन की गति को दर्शाया है, बल्कि दर्शकों को भी अहमद के संघर्ष में शामिल किया है। आप ख़ुद को उस छोटे से बच्चे के साथ चलते हुए पाते हैं, उसकी हर साँस, हर क़दम के साथ।

फ़िल्म में संगीत का प्रयोग बहुत कम है, लेकिन यह कमी एक ताक़त बन जाती है। आप गाँव की प्राकृतिक ध्वनियों में खो जाते हैं—बकरियों की आवाज़, पेड़ों की पत्तियों की सरसराहट, और अहमद के छोटे क़दमों की आवाज़। ये ध्वनियाँ न केवल वातावरण को जीवंत बनाती हैं, बल्कि अहमद की एकाकी यात्रा पर भी आपको ज़ोर देने पर मजबूर करती है। और जब कभी संगीत आता है, तो वह इतना सूक्ष्म और भावपूर्ण होता है कि आपका दिल एक अजीब-सी उम्मीद और उदासी से भर जाता है। यह संगीत अहमद के अंदर चल रहे भावनात्मक संघर्ष को बयान करता है। एक तरफ़ अपने दोस्त की मदद करने की इच्छा, और दूसरी तरफ़ अपने माता-पिता का डर।

फ़िल्म में अहमद का अभिनय इतना स्वाभाविक और सहज है कि आपको लगता है जैसे आप एक डॉक्यूमेंट्री देख रहे हों, न कि एक फ़िक्शन फ़िल्म। उसकी आँखों में दिखने वाला डर, उसके चेहरे पर आने वाली मुस्कान, और उसके कंधों का झुकाव—हर छोटा-सा हाव-भाव एक कहानी कहता है।

फ़िल्म में गाँव के अन्य पात्र भी उतने ही यथार्थवादी हैं। वे अपने छोटे-छोटे किरदारों में भी पूरी तरह से ढल जाते हैं, जिससे पूरा गाँव एक जीवंत समुदाय बन जाता है। आप महसूस करते हैं कि यहाँ हर व्यक्ति की अपनी एक कहानी है, अपने सपने और चुनौतियाँ हैं।

‘वेयर इज़ द फ़्रेंड्स हाउस?’—अपनी सरल कहानी के माध्यम से कई गहन विषयों को छूती है। फ़िल्म की थीम दोस्ती और कर्तव्य है। अहमद की अपने दोस्त की मदद करने की ज़िद्द आपको सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने दैनिक जीवन में कितनी बार दूसरों की परवाह करते हैं। बचपन की निर्दोषता और वयस्क दुनिया की जटिलताओं के बीच का संघर्ष भी फ़िल्म का एक प्रमुख विषय है। अहमद की सरल सोच कि उसे अपने दोस्त की नोटबुक वापस करनी चाहिए—वयस्कों की उलझी हुई दुनिया से टकराती है।

यह फ़िल्म, समाज में नियमों और मानवीयता के बीच के संतुलन पर भी प्रकाश डालती है। अहमद का शिक्षक जो कठोर नियमों पर ज़ोर देता है, और अहमद जो मानवीय भावनाओं से प्रेरित है, यहाँ यह द्वंद्व आपको सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं हम अपने नियमों और कानूनों के पीछे अपनी मानवता तो नहीं खो रहे हैं।

अब्बास कियारोस्तमी का निर्देशन इस फ़िल्म को एक साधारण कहानी से एक कालजयी कृति में बदल देता है। उनका नियंत्रित और धैर्यपूर्ण दृष्टिकोण फ़िल्म को एक ऐसी लय प्रदान करता है जो आपको अपने साथ बहा ले जाती है। वह छोटी-छोटी घटनाओं को इतनी गहराई से दिखाते हैं कि आप उनमें छिपे अर्थ को महसूस कर सकते हैं।

उनका कैमरा अक्सर अहमद के नज़रिए से दुनिया को देखता है, जो आपको एक बच्चे की आँखों से दुनिया देखने का मौक़ा देता है। यह दृष्टिकोण न केवल कहानी को और अधिक प्रभावशाली बनाता है, बल्कि आपको अपने ख़ुद के बचपन में वापस ले जाता है।

फ़िल्म ख़त्म होने के बाद भी, अहमद की यात्रा आपके मन में घूमती रहती है। आप अपने दैनिक जीवन में छोटी-छोटी चीज़ों को नए नज़रिए से देखने लगते हैं।

यह फ़िल्म आपको याद दिलाती है कि जीवन की सबसे बड़ी सच्चाइयाँ अक्सर सबसे सरल क्षणों में छिपी होती हैं। एक बच्चे की निस्वार्थ मदद की भावना, एक अजनबी का थोड़ा-सा सहयोग, या एक साधारण नोटबुक की अहमियत—ये सब मिलकर मानवता की एक बड़ी तस्वीर बनाते हैं।

अहमद की यात्रा का परिणाम आपको एक ऐसी संतुष्टि देता है, जो लंबे समय तक आपके साथ रहता है। यह अंत न केवल कहानी को समेटता है, बल्कि एक नए सवेरे की उम्मीद भी जगाता है। आप महसूस करते हैं कि छोटे-छोटे कार्य भी बड़े बदलाव ला सकते हैं।

जब आप स्क्रीन बंद करते हैं, तो आपको लगता है जैसे आप एक लंबी, भावनात्मक यात्रा से लौटे हों। आपका दिल एक अजीब-सी शांति और उम्मीद से भरा होता है। आप अपने आस-पास की दुनिया को नए नज़रिए से देखने लगते हैं।

इस फ़िल्म का प्रभाव सिर्फ़ सिनेमाई अनुभव तक सीमित नहीं रहता। यह आपके दैनिक जीवन में भी झलकता है। आप अपने आस-पास के लोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। एक अजनबी की मुस्कान, एक पड़ोसी की मदद—ये सब अचानक अधिक महत्त्वपूर्ण लगने लगते हैं।

जब मैं इस फ़िल्म के बारे में सोचता हूँ—तो मन में ख़याल आता है कि अगर मैं होता तो, क्या मैं अहमद जैसा साहस दिखा पाता? क्या मैं अपने आराम को त्याग कर किसी अजनबी की मदद कर पाता?

फ़िल्म आपको याद दिलाती है कि दुनिया में अभी भी अच्छाई मौजूद है, मानवता अभी जीवित है। यह आपको प्रेरित करती है कि आप अपने जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाएँ, दूसरों के प्रति अधिक दयालु बनें। यह आपको सिखाती है कि जीवन की सबसे बड़ी सच्चाइयाँ अक्सर सबसे छोटी चीज़ों में छिपी होती हैं। यह आपको याद दिलाती है कि हर एक की कहानी महत्त्वपूर्ण है, हर कोई किसी न किसी की मदद कर सकता है। और शायद, यही किसी कला के सबसे बड़े प्रभाव की निशानी है।

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