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वोटिंग-विचार पर कुछ विचार

प्रतियोगिताएँ, पुरस्कार और सूचियाँ हमेशा से संदिग्ध रही हैं। प्रतियोगिताओं में कोई भी निर्णय अंतिम निर्णय नहीं होता, बावजूद इसके कोई भी काव्य-प्रतियोगिता इस अर्थ में कविता के हक़ में होती है कि कविता के प्रति शुष्क हो रहे समाज में कविता की चर्चा हो सके। नई पीढ़ी में काव्य-संस्कार पल्लवित हो सकें।

‘हिन्दवी उत्सव’ [रविवार, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली] में आयोजित होने जा रही ‘ऑल इंडिया कैंपस कविता’ प्रतियोगिता में ‘हिन्दवी’ द्वारा अब तक उपलब्ध जानकारी में यह बात अब पाठकों के सामने हैं कि ‘हिन्दवी’ के पास कुल प्राप्त 901 वैध प्रविष्टियों में अंतिम दस का चुनाव कर, प्रतियोगिता के अंतिम निर्णय के लिए ऑनलाइन वोटिंग का निर्णय लिया गया है; यानी पाठकों द्वारा ही इन दस प्रतिभागी-कवियों में प्रथम, द्वितीय और तृतीय का चुनाव होना तय है।

वोटिंग-प्रक्रिया को लेकर ‘हिन्दवी’ की तरफ़ उपलब्ध जानकारी में यह कहा गया है : ‘‘हम आपको आमंत्रित कर रहे हैं कि आप दिए गए लिंक पर जाएँ और ‘ऑल इंडिया कैंपस कविता’ के टॉप-10 प्रतिभागियों की कविताएँ पढ़कर अपने प्रिय कवि को वोट करें। यह मौक़ा सिर्फ़ पाठक होने का नहीं, बल्कि साहित्यिक भागीदारी निभाने का भी है।’’

अब यह पाठक कौन है, जिसकी साहित्यिक भागीदारी निभाने की बात ऊपर की गई है?

वह पाठक देश या देश के बाहर हिंदी कविता से प्रेम करने वाला कोई भी व्यक्ति हो सकता है। इस क्रम में वह कहीं-किसी भी विश्वविद्यालय का कोई रिसर्च स्कॉलर भी हो सकता है, कवि-आलोचक भी हो सकता है, प्रोफ़ेसर भी हो सकता है या सुदूर बैठा हिंदी का कोई सामान्य पाठक भी हो सकता है।

इसमें ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि इस प्रक्रिया में रचनाधर्मिता से दूर, वे विशुद्ध पाठक जो पत्रिकाओं-डिजिटल माध्यमों से कविता के आस्वादक भर हैं, जिनकी साहित्यिक दुनिया में कोई भागीदारी नहीं हैं—वे भी इन दस कवियों की कविता पढ़कर, अपनी समझाइश से उन्हें वोट कर सकते हैं। यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है कि वोटिंग-प्रक्रिया कवि चुनने की नहीं, इन दस कवियों में कविता के आधार पर प्रथम, द्वितीय और तृतीय चुनने की है। चुने हुए अंतिम दस प्रतिभागी कवि ही हैं, इसलिए ही वे इस सूची में स्थान बना सके हैं।

‘हिन्दवी’ द्वारा इसे लोकतांत्रिक कहने का कारण भी यही है कि इसमें कवि-चयन उसकी व्यक्तिगत पहचान, उसकी स्थानीयता और लोकप्रियता के माध्यम से नहीं; अपितु उसकी कविताओं के आधार पर करना हैं। प्रत्येक कवि की ये कविताएँ उसके नाम के साथ ही ‘हिन्दवी’ पर वोटिंग-विकल्प के साथ उपलब्ध हैं।

‘हिन्दवी’ द्वारा इस प्रतियोगिता को लेकर दिए गए इस बयान को पढ़िए :

“यह प्रतियोगिता देश भर के शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ रहे नई पीढ़ी के कवियों को एक साथ एक मंच पर लाने वाला प्रयत्न-प्रयोग है। इस प्रतियोगिता में देश के कोने-कोने से आईं कविताओं में विचार, भावना, संवेदना, कल्पना और लय की सुंदरता तो थी ही; इनमें अपने समय की व्याकुलता, युवकोचित आत्मविश्वास, उचित आदर्शवाद, यथार्थ-दृष्टि और जीवन के विकट अनुभवों को कहने का साहस भी दृश्य हुआ।’’

इसमें यह भी एक बात निहित है कि ‘हिन्दवी’ का यह प्रयास उन नवांकुरों के लिए कितना ज़रूरी है, जिनके यहाँ कविता का कोई संस्कार नहीं है। ‘हिन्दवी’ द्वारा जारी लॉन्ग-लिस्ट के अनुसार इस प्रतियोगिता में हिंदी के रिसर्च स्कॉलर से लेकर कक्षा नवीं तक, चौदह वर्ष से लेकर पैंतीस वर्ष तक के विद्यार्थियों की प्रविष्टियाँ आई हैं, जिनमें कुछ कविताएँ तो हस्तलिखित रूप में भी प्राप्त हुई हैं। कहने का आशय यहाँ यह है कि इस प्रतियोगिता शब्द को अगर थोड़ा किनारे रखकर देखा जाए तो यह सुखद है कि सुदूर विद्यालयों में अध्ययनरत वे विद्यार्थी, जिनके यहाँ कविता का संस्कार प्रारंभिक पाठ्यक्रम में उपलब्ध कविताओं तक ही है, वे भी कविता के प्रति जागरूक हैं और कविता रच रहे हैं।

वोटिंग-प्रक्रिया को लेकर कुछ पाठकों का संशय ग़ौरतलब है कि क्या कविता का निर्णय वोटिंग के आधार पर होगा। लेकिन यहाँ यह कहना भी ज़रूरी है कि इस प्रक्रिया के बारे में पाठकों का संशय तब कुछ और होता, अगर यह निर्णय किसी एक निर्णायक या निर्णायक-मंडल के द्वारा होता। तब यह संशय इसमें भी बदल सकता था कि निर्णयाक-मंडल द्वारा यह चयन जातीयता, स्थानीयता, पारस्परिकता आदि से प्रभावित है। चूँकि यह प्रतियोगिता किसी एक कैंपस तक सीमित नहीं है, बल्कि देश भर के शैक्षणिक संस्थानों के विद्यार्थियों के लिए है तो इसमें निर्णायक की भूमिका किसी निर्णायक-मंडल की अपेक्षा कविता के पाठकों द्वारा ज़्यादा स्वीकृत और प्रमाणिक प्रतीत होती है।

टॉप-10 में चयनित प्रतिभागी-कवि कोई स्थापित कवि नहीं हैं, बल्कि ये हिंदी की ‘अभी बिल्कुल अभी’ की पीढ़ी के कवि हैं, जो किसी न किसी शैक्षणिक संस्थान में अध्ययनरत-शोधरत हैं। उनके पास कोई बड़ा स्टारडम या भारी फ़ैन-फ़ॉलोइंग भी नहीं है, ऐसा कोई जनाधार भी नहीं है जो इनकी वोटिंग को पाठकीय समझदारी से इतर प्रभावित कर सके और इनके चयन-आधार को कविता के बजाय किन्हीं अन्य मानकों से देखे।

एक और बात—फ़ेसबुक पर उपस्थित हर जन कविता नहीं पढ़ता, न ही उसकी वॉल पर साहित्यिक गतिविधियाँ उपलब्ध होती है। इस ऑनलाइन वोटिंग में वैलिड-ईमेल से वोटिंग करने का इच्छुक वही होगा, जो कविता और उसके आस्वाद के प्रति सहृदय होगा। वह कविता को पढ़ने और उसमें अपनी समझ रखने का इच्छुक होगा।

हर प्रक्रिया के अपने गुण-दोष, पक्ष-विपक्ष होते हैं; लेकिन कविता के चयन के लिए सुधी अथवा बेसुध साहित्य-प्रेमी क्या इतने अल्प और अल्पबुद्धि हैं कि वे दस नवांकुरों की कविता को हफ़्ते भर में आराम से पढ़कर अपना अभिमत न दे सकें! यह एक घोर निराशा की बात होगी। ऐसी निराशा फैलाना कि साहित्य के इलाक़े में कविता को लेकर कोई सामूहिक पाठकीय विवेक नहीं है, और सब कुछ एक निर्णायक-मंडल ही तय करता हुआ शोभता है—यह एक प्रकार का अभिजनवाद है।

और फिर अंत के अंत में...

आजकल लोग पूर्णतः ग़लत बातें भी इतने सुगंभीर आत्मविश्वास से करते हैं कि लगता है यह इस वक़्त का सबसे आश्चर्ययुक्त विचार है! ऐसे में हर चीज़ का बेवजह विरोध करने का हलफ़ उठाए घूम रहे कुछ ‘हिंदी-प्रेमियों’ को देखकर सिर्फ़ नवीन सागर की एक कविता का शीर्षक ही याद आता है : ‘ये मेरे पागल विचार हैं...’

~~~

'ऑल इंडिया कैंपस कविता'-2025 के लिए वोटिंग करने की अंतिम तिथि : 25 जुलाई 2025 | वोट कीजिए : वोटिंग लिंक

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