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मज़दूर पर बेला

देश-दुनिया में पूँजीवाद

के प्रसार के साथ वंचित-शोषित तबकों के सरोकार को आवाज़ देना कविता ने अपना प्रमुख कर्तव्य स्वीकार किया है। इस क्रम में अर्थव्यवस्था को अपने कंधे पर ढोते मज़दूर पर्याप्त सहानुभूति और प्रतिरोध कोण से देखे गए हैं। इस चयन में मज़दूरों के संवादों-सरोकारों को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

02 जुलाई 2024

काम को खेल में बदलने का रहस्य

काम को खेल में बदलने का रहस्य

...मैं इससे सहमत नहीं। यह संभव है कि काम का ख़ात्मा किया जा सकता है। काम की जगह ढेर सारी नई तरह की गतिविधियाँ ले सकती हैं, अगर वे उपयोगी हों तो।  काम के ख़ात्मे के लिए हमें दो तरफ़ से क़दम बढ़ाने

01 जुलाई 2024

काम से बचना सिर्फ़ अनिच्छा का मामला नहीं है

काम से बचना सिर्फ़ अनिच्छा का मामला नहीं है

...प्रतिवर्ष चौदह हज़ार से पचीस हज़ार मज़दूर काम के दौरान मारे जाते हैं। बीस लाख से ज़्यादा काम के अयोग्य हो जाते हैं। दो से ढाई करोड़ हर साल ज़ख्मी होते हैं। काम से जुड़ी दुर्घटनाओं के ये आँकड़े, एक

30 जून 2024

अगर कोई कहता है कि वह ‘आज़ाद’ है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या मूर्ख है।

अगर कोई कहता है कि वह ‘आज़ाद’ है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या मूर्ख है।

...काम आज़ादी का मज़ाक़ उड़ाता है। समझाया तो यह जाता है कि हम लोकतंत्र में रहते हैं और हमें सारे अधिकार प्राप्त हैं। दूसरे; जो दुर्भाग्यशाली हैं, वे हमारी तरह स्वतंत्र नहीं हैं और उन्हें पुलिसिया राज

29 जून 2024

दुनिया के मजदूरो! आराम करो।

दुनिया के मजदूरो! आराम करो।

किसी को कभी भी कोई भी काम नहीं करना चाहिए। काम दुनिया के सारे दुखों की जड़ है। बुराई चाहे कोई हो, सारी की सारी या तो काम से पैदा होती हैं, या फिर काम की दुनिया में रहने से। दुखों से मुक्ति का मतलब

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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