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मज़दूर पर ब्लॉग

देश-दुनिया में पूँजीवाद

के प्रसार के साथ वंचित-शोषित तबकों के सरोकार को आवाज़ देना कविता ने अपना प्रमुख कर्तव्य स्वीकार किया है। इस क्रम में अर्थव्यवस्था को अपने कंधे पर ढोते मज़दूर पर्याप्त सहानुभूति और प्रतिरोध कोण से देखे गए हैं। इस चयन में मज़दूरों के संवादों-सरोकारों को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

कोशिश मत करो

कोशिश मत करो

बेहतर ज़िंदगी का नुस्ख़ा ज़्यादा की चिंता में नहीं है; फ़ालतू चीज़ों पर ध्यान देने में है, सिर्फ़ वास्तविक और उस समय के लिए ज़रूरी बात पर ही ध्यान दिया जाना चाहिए। ~•~ ज़्यादा हमेशा बेहतर नहीं होता, वास

मार्क मैंसन
स्मृति-छाया के बीच करुणा का विस्तार

स्मृति-छाया के बीच करुणा का विस्तार

पूर्वकथन किसी फ़िल्म को देख अगर लिखने की तलब लगे तो मैं अमूमन उसे देखने के लगभग एक-दो दिन के भीतर ही उस पर लिख देती हूँ। जी हाँ! तलब!! पसंद वाले अधिकतर काम तलब से ही तो होते हैं। लेकिन ‘लेबर डे’ को

सुदीप्ति

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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