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विचार पर बेला

01 नवम्बर 2024

जब कहानी पाठक को किरदार बना ले

जब कहानी पाठक को किरदार बना ले

साहित्य कोई महासागर है, कहानी उसमें बहने वाली धारा—शीत भी, उष्ण भी। वहीं से निकलती है, वहीं समा जाती है। सदियों से यह क्रम चल रहा है। धर्म और लोक रंग में रंगी हुई कथाएँ भी कही-सुनी जाती रही हैं। कहान

15 अक्तूबर 2024

आईआईसी से आयुष्मान

आईआईसी से आयुष्मान

बीते हफ़्तों में जितनी बार इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) जाना हो गया, उतना तो पहले कुल मिलाकर नहीं गया था। सोचा दोस्तों को बता दूँ कि अगर मैं यूनिवर्सिटी में न मिलूँ तो मुझे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में

06 अक्तूबर 2024

'बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला...'

'बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला...'

यह दो अक्टूबर की एक ठीक-ठाक गर्मी वाली दोपहर है। दफ़्तर का अवकाश है। नायकों का होना अभी इतना बचा हुआ है कि पूँजी के चंगुल में फँसा यह महादेश छुट्टी घोषित करता रहता है, इसलिए आज मेरी भी छुट्टी है। मेर

01 अगस्त 2024

आख़िर ऐसे तो न याद करें प्रेमचंद को

आख़िर ऐसे तो न याद करें प्रेमचंद को

गत 31 जुलाई 2024 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में महान् साहित्यकार प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में ‘प्रेमचंद का महत्त्व’ शीर्षक विचार-गोष्ठी का आयोजन विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विव

10 जुलाई 2024

आजकल लोग पैदा नहीं होते अवतरित होते हैं

आजकल लोग पैदा नहीं होते अवतरित होते हैं

सोचता हूँ कुछ लिखूँ पर लिखने के उत्साह पर अवसाद भारी है। ~ भाषा का बुनियादी ताना-बाना शब्दों से कहीं अधिक प्रयोगों से निर्मित होता है। आजकल लोग पैदा नहीं होते अवतरित होते हैं। वाक्यों में दो क्

02 जुलाई 2024

काम को खेल में बदलने का रहस्य

काम को खेल में बदलने का रहस्य

...मैं इससे सहमत नहीं। यह संभव है कि काम का ख़ात्मा किया जा सकता है। काम की जगह ढेर सारी नई तरह की गतिविधियाँ ले सकती हैं, अगर वे उपयोगी हों तो।  काम के ख़ात्मे के लिए हमें दो तरफ़ से क़दम बढ़ाने

01 जुलाई 2024

काम से बचना सिर्फ़ अनिच्छा का मामला नहीं है

काम से बचना सिर्फ़ अनिच्छा का मामला नहीं है

...प्रतिवर्ष चौदह हज़ार से पचीस हज़ार मज़दूर काम के दौरान मारे जाते हैं। बीस लाख से ज़्यादा काम के अयोग्य हो जाते हैं। दो से ढाई करोड़ हर साल ज़ख्मी होते हैं। काम से जुड़ी दुर्घटनाओं के ये आँकड़े, एक

30 जून 2024

अगर कोई कहता है कि वह ‘आज़ाद’ है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या मूर्ख है।

अगर कोई कहता है कि वह ‘आज़ाद’ है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या मूर्ख है।

...काम आज़ादी का मज़ाक़ उड़ाता है। समझाया तो यह जाता है कि हम लोकतंत्र में रहते हैं और हमें सारे अधिकार प्राप्त हैं। दूसरे; जो दुर्भाग्यशाली हैं, वे हमारी तरह स्वतंत्र नहीं हैं और उन्हें पुलिसिया राज

29 जून 2024

दुनिया के मजदूरो! आराम करो।

दुनिया के मजदूरो! आराम करो।

किसी को कभी भी कोई भी काम नहीं करना चाहिए। काम दुनिया के सारे दुखों की जड़ है। बुराई चाहे कोई हो, सारी की सारी या तो काम से पैदा होती हैं, या फिर काम की दुनिया में रहने से। दुखों से मुक्ति का मतलब

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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