मृत्यु पर बेला

मृत्यु शब्द की की व्युत्पत्ति

‘म’ धातु में ‘त्यु’ प्रत्यय के योग से से हुई है जिसका अभिधानिक अर्थ मरण, अंत, परलोक, विष्णु, यम, कंस और सप्तदशयोग से संयुक्त किया गया है। भारतीय परंपरा में वैदिक युग से ही मृत्यु पर चिंतन की धारा का आरंभ हो जाता है जिसका विस्तार फिर दर्शन की विभिन्न शाखाओं में अभिव्यक्त हुआ है। भक्तिधारा में संत कवियों ने भी मृत्यु पर प्रमुखता से विचार किया है। पश्चिम में फ्रायड ने मनुष्य की दो प्रवृत्तियों को प्रबल माना है—काम और मृत्युबोध। इस चयन में प्रस्तुत है—मृत्यु-विषयक कविताओं का एक अद्वितीय संकलन।

27 अप्रैल 2024

समॉरा का क़ैदी

27 अप्रैल 2024

समॉरा का क़ैदी

‘समारा का क़ैदी’ एक प्राचीन अरबी कहानी है। इस कहानी का आधुनिक रूपांतरण सोमरसेट मौ'म ‘अपॉइंटमेंट इन स्मारा’ (1933) नाम से कर चुके हैं। यहाँ इस कहानी का चित्रकथात्मक रूपांतरण कर रहे—अविरल कुमार और मैना

16 अप्रैल 2024

नवगीत का सूरज डूब गया

नवगीत का सूरज डूब गया

माहेश्वर तिवारी [1939-2024]—एक भरा-पूरा नवगीत नेपथ्य में चला गया—अपनी कभी न ख़त्म होने वाली गूँज छोड़कर। एक किरन अकेली पर्वत पार चली गई। एक उनका होना, सचमुच क्या-क्या नहीं था! उन्हें रेत के स्वप्न आते

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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