नवगीत का सूरज डूब गया
यश मालवीय 16 अप्रैल 2024
माहेश्वर तिवारी [1939-2024]—एक भरा-पूरा नवगीत नेपथ्य में चला गया—अपनी कभी न ख़त्म होने वाली गूँज छोड़कर। एक किरन अकेली पर्वत पार चली गई। एक उनका होना, सचमुच क्या-क्या नहीं था! उन्हें रेत के स्वप्न आते थे और वह मछलियों की तरह नींद में छटपटाते थे। वह चिट्ठियाँ भिजवाते थे—गाँव से। उनके पाँव धूप में जलते थे तो उन्हें घर की याद आती थी। वह गीत में पेंटिंग बनाते थे :
अगले घुटने मोड़े
झाग उगलते घोड़े
जबड़ों में कसती वल्गाएँ हैं, मैं हूँ
आस-पास जंगली हवाएँ हैं, मैं हूँ
माहेश्वर जी अपने को चिट्ठी लिखते थे और कहते थे :
बहुत बहुत बहुत दिन हुए
अपने को ख़त लिखे हुए
बहुत शिद्दत से आज के दौर के रहनुमाओं से सवाल पूछते थे :
सुनो सभासद
हम केवल विलाप सुनते हैं
तुम कैसे सुनते हो अनहद
और यह भी कहते थे
आ जा आ जा राजा बाबू
सूखा-बाढ़-महामारी है
आकर इन्हें चबा जा बाबू
बेटी बहन लुगाई हाज़िर
इज़्ज़त पाई पाई हाज़िर
हम हैं नहीं बाँसुरी, हम हैं
बाजा, हमें बजा जा बाबू
गई ईद पर उन्होंने समस्त देशवासियों को त्योहार की मुबारकबाद दी थी और 5 अप्रैल को अपना यह मुक्तक फ़ेसबुक पर पोस्ट किया था :
कितनी सदियाँ गुज़र गईं लेकिन
सारी दुनिया सफ़र में है अब भी
धूप में तप रहा है वर्षों से
छाँव बूढ़े शजर में है अब भी
ये पंक्तियाँ बताती हैं कि वह दुनिया से जाते-जाते तक रचनाशील रहे।
आज सुबह-सुबह ही नवगीत का यह सूर्य अस्त हो गया। मन बहुत-बहुत भरा है।
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
12 जून 2024
जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से-3
जेएनयू क्लासरूम के क़िस्सों की यह तीसरी कड़ी है। पहली कड़ी में हमने प्रोफ़ेसर के नाम को यथावत् रखा था और छात्रों के नाम बदल दिए थे। दूसरी कड़ी में प्रोफ़ेसर्स और छात्र दोनों पक्षों के नाम बदले हुए थे। अब त
14 जून 2024
Quotation न होते तब हम क्या करते!
एक “गोयम मुश्किल वगरना गोयम मुश्किल” हम रहस्य की नाभि पर हर रोज़ तीर मार रहे हैं। हम अनंत से खिलवाड़ करके थक गए हैं। हम उत्तरों से घिरे हुए हैं और अब उनसे ऊबे हुए भी। हमारी जुगतें और अटकलें भी एक
13 जून 2024
कविता की कहानी सुनता कवि
कविता आती है और कवि को आत्मा से शब्द की अपनी यात्रा की दिलचस्प दास्ताँ सुनाने लगती है। कवि के पूछने पर कविता यह भी बताती है कि आते हुए उसने अपने रास्ते में क्या-क्या देखा। कविता की कहानी सुनने का कवि
26 जून 2024
विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य
महोदया ‘श’ के लिए एक ‘स्त्री दुःख है।’ मैंने हिंदी समाज में गीत चतुर्वेदी और आशीष मिश्र की लोकप्रिय की गई पतली-सुतली सिगरेट जलाते हुए एक सुंदर फ़ेमिनिस्ट से कहा और फिर डर कर वाक्य बदल दिया—