Font by Mehr Nastaliq Web

डर पर बेला

डर या भय आदिम मानवीय

मनोवृत्ति है जो आशंका या अनिष्ट की संभावना से उत्पन्न होने वाला भाव है। सत्ता के लिए डर एक कारोबार है, तो आम अस्तित्व के लिए यह उत्तरजीविता के लिए एक प्रतिक्रिया भी हो सकती है। प्रस्तुत चयन में डर के विभिन्न भावों और प्रसंगों को प्रकट करती कविताओं का संकलन किया गया है।

06 अगस्त 2024

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

तड़के तीन से साढ़े तीन बजे के बीच वह मेरे कमरे पर दस्तक देते, जिसमें भीतर से सिटकनी लगी होती थी। वह मेरा नाम पुकारते, बल्कि फुसफुसाते। कुछ देर तक मैं ऐसे दिखावा करता, मानो मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा हो

19 जुलाई 2024

क़ुबूलनामा : एक ड्रग पैडलर का

क़ुबूलनामा : एक ड्रग पैडलर का

डिस्क्लेमर :  यहाँ प्रस्तुत लेख में वर्णित सभी पात्र, कहानियाँ, घटनाएँ और स्थान काल्पनिक हैं; जो किसी भी व्यक्ति, समूह, समाज, सरकारी-ग़ैरसरकारी संगठन और अधिकारियों से कोई संबंध नहीं रखते हैं। यह ल

28 मई 2024

विषधारी मत डोल कि मेरा आसन बहुत कड़ा है

विषधारी मत डोल कि मेरा आसन बहुत कड़ा है

बचपन में पिता की टेबल पर जिन किताबों से मेरा साबका पड़ता था, उनमें शेक्‍सपियर के कंपलीट वर्क्‍स के साथ मुक्तिबोध की ‘भूरी-भूरी खाक धूल’, नामवर सिंह की ‘दूसरी परंपरा की खोज’ के अलावा रामधारी सिंह दिनक

27 अप्रैल 2024

समॉरा का क़ैदी

27 अप्रैल 2024

समॉरा का क़ैदी

‘समारा का क़ैदी’ एक प्राचीन अरबी कहानी है। इस कहानी का आधुनिक रूपांतरण सोमरसेट मौ'म ‘अपॉइंटमेंट इन स्मारा’ (1933) नाम से कर चुके हैं। यहाँ इस कहानी का चित्रकथात्मक रूपांतरण कर रहे—अविरल कुमार और मैना

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए