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क़ुबूलनामा : एक ड्रग पैडलर का

डिस्क्लेमर : 

यहाँ प्रस्तुत लेख में वर्णित सभी पात्र, कहानियाँ, घटनाएँ और स्थान काल्पनिक हैं; जो किसी भी व्यक्ति, समूह, समाज, सरकारी-ग़ैरसरकारी संगठन और अधिकारियों से कोई संबंध नहीं रखते हैं। यह लेख प्रथम व्यक्ति के दृष्टिकोण से लिखा गया है, जिसे लेखक ने अवलोकित किया है। 

एक

जब मैं कॉलेज में था, तब मैंने एक दोस्त के साथ हशीश (हैश) बेचना शुरू कर दिया था। हमने लगभग दस हज़ार रुपए इकट्ठे किए और कुछ ग्राम हशीश स्कोर (ख़रीदा) किया। इसे मैंने कुछ दोस्तों को बेच दिया। हमें अचरज हुआ कि इसका प्रॉफ़िट-मार्जिन हमारी उम्मीद से कहीं ज़्यादा था। हज़ारों में बढ़िया कमाई। अब यह तो तय हो चुका था कि हमारे पास एक व्यवसाय था, जिसे हम बहुत बड़ा बना सकते थे। 
इस बिज़नेस को आगे बढ़ाने के लिए हमने स्थानीय पुलिस, कॉलेज के सिक्योरिटी गार्ड्स और कुरियर सर्विस वाले लड़कों को भरोसे में लिया। इससे हमें ड्रग्स को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने में मदद मिली। अब हमारे पास न केवल एक बड़ा ग्राहक-वर्ग था, बल्कि हमारे ऐसे मज़बूत संपर्क भी बन गए जो समय आने पर हमें किसी बड़ी गड़बड़ी से बाहर निकालने में मददगार साबित हो सकते थे।

इस व्यवसाय में दो साल तक मैंने पर्याप्त कनेक्शन बनाए, जिससे मुझे इस दुनिया में अपनी पहचान बनाने में मदद मिली। सप्लायर मुझे हैश देता जिसका पेमेंट मैं पंद्रह दिनों के बाद करता था। हैश की बिक्री इसी तरह होती थी। छोटे डिस्ट्रीब्यूटर्स और ट्रैफ़िकर्स के पास हमेशा नगद रुपए नहीं होते, जिससे वो लोग पेमेंट फ़ौरन कर सकें।

धीरे-धीरे मुझे और मेरे साथी को और ज़्यादा पैसे कमाने की तलब हुई और तब हमने तय किया कि हम हिमाचल प्रदेश की पार्वती वैली (पार्वती घाटी) की यात्रा करेंगे। जानकारों का ऐसा मानना था कि पार्वती वैली में सबसे अच्छी क्वालिटी का हैश मिलता था, जो कि आज़माई हुई बात थी। यह एक बड़ा सोर्स था और अब प्रॉफ़िट-मार्जिन, इन्वेस्टमेंट का लगभग पैंतीस प्रतिशत ज़्यादा था।

मैं युवा था, पैसा कमाने के लिए आतुर भी और हर तरह के ख़तरे उठाने को तैयार। कॉलेज में पढ़ने वाले दो बेरोज़गार छात्र आख़िर हर हफ़्ते छह हज़ार रुपए कैसे कमा सकते हैं? यह बात हमारे दिमाग़ में दिन-रात घूमती रहती थी और फिर एक दिन... बूम!!! 

अब तस्वीर में ‘कोकेन’ आ चुका था। 

हम जानते थे कि आने वाले समय में ऐसे कई बड़े इवेंट्स आने वाले थे जो कोकेन लेने वालों के लिए महत्त्वपूर्ण थे। इसे हमारी अच्छी क़िस्मत ही कहेंगे कि अभी जब हम कोकेन बेचने की योजना तैयार कर ही रहे थे, तब ही हमें गोवा में कोकेन का एक बेहतरीन कनेक्शन मिल गया। मुझे याद है कि हमारी पहली ख़रीद बेहद जोखिम भरी थी। हमने एक किलो पर पैंतीस हज़ार रुपए ख़र्च किए थे।

अब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो सोचता हूँ कि एक बार जब आप इस खेल में उतर जाते हैं, तब बाहर निकलने के सभी दरवाज़े लगभग बंद हो जाते हैं। अगर आप चाहें भी तो किसी दरवाज़े को तोड़कर बाहर निकलना लगभग असंभव होता है। इस धंधे में जो बहुत ऊपर पहुँच चुके हैं, वे आपको इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने नहीं देते और फिर—पैसा!

पैसा—एक ऐसी लत है जो लग जाती है तो छूटती ही नहीं। पैसा—एक धीमा ज़हर है। मुझे इस धंधे में पंद्रह साल हो चुके हैं और मैं अब भी मज़बूत हूँ। बदलाव बस इतना-सा है कि मैं अब ड्रग्स बंदरगाहों से जहाज़ों के ज़रिए बाहर नहीं भेजता, क्योंकि पहले से अब सिक्योरिटी बहुत मज़बूत है और पकड़े जाना अपने आपमें बहुत बड़ा सिरदर्द है।

मैं इस बात को मानता हूँ कि इस काम में बहुत ज़्यादा ख़तरा है, लेकिन बदले में जो पैसे इससे आप कमाते हैं; वह सभी बातों को, सभी मुश्किलों को धुँधला कर देता है। मुझे कई बार गिरफ़्तार किया गया है, लेकिन मैं या तो लोगों को रिश्वत देकर या अपने कुछ नए ग्राहकों को पकड़वाकर फ़रार हो जाता हूँ। 

मेरा परिवार अब मुझसे इस बारे में कुछ नहीं कहता। अब किसी भी तरह की बात का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता और न ही मेरा परिवार मुझे नैतिकता का पाठ पढ़ाता है। मेरे पास एक आलीशान अपार्टमेंट है और इतनी दौलत है, जितनी मेरे आस-पास—मेरे रिश्तेदारों, मेरे दोस्तों और मेरे जानने वालों में से किसी के भी पास नहीं है। मैं अपनी ज़िंदगी में हर तरह की लग्ज़री का लुत्फ़ उठा रहा हूँ। यह एक सपनीली ज़िंदगी है!

दो

मैं उत्तर प्रदेश के एक अनाम से गाँव में पैदा हुआ और बड़ा हुआ। ग़रीबी सिर्फ़ एक सूरत नहीं थी, वह हवा थी—जिसमें हम साँस लेते थे। मेरे परिवार ने, दूसरे लोगों की तरह, दिन-रात काम करके ज़िंदगी बसर करने की कोशिश की। मेरे पिता एक दिहाड़ी मज़दूर थे और मेरी माँ लोगों के कपड़े सिलकर अपनी मामूली कमाई में सहयोग करती थीं।

पढ़ाई-लिखाई हमारे लिए एक लग्ज़री थी, जिसे हम छू भी नहीं सकते थे; इसलिए मैंने पाँचवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया ताकि मैं अपने माँ-बाप की मदद कर सकूँ।

मेरी बर्बादी के बीज बचपन में ही बो दिए गए थे। जवानी के दिनों में, मैं अक्सर पास के शहर (गोरखपुर) में सब्ज़ियाँ बेचने जाता था। शहर—अपनी चहल-पहल और अनगिनत उम्मीदों के साथ—मुझे आकर्षित करता था। लेकिन यहीं पर मुझे ज़िंदगी के एक ऐसे पहलू का पहली बार सामना करना पड़ा जिसमें बहुत गहरा और घना अँधेरा था। 

एक दिन बाज़ार में बिना कुछ बेचे वापस लौटते समय मेरी मुलाक़ात रज्जू से हुई, जो गाँव का पुराना दोस्त था। वह दुबला-पतला लड़का अब एक चकाचौंध से भरी ज़िंदगी जीने वाला एक ऐसा नौजवान बन चुका था, जिसके पास बाइक और स्मार्टफ़ोन था। उसका रहस्य जैसा कि उसने मुझे बताया—ड्रग्स बेचने में था।

रज्जू ने ड्रग-व्यापार की एक ग्लैमरस तस्वीर पेश की। फ़ौरी पैसा, इज़्ज़त और ग़रीबी से बाहर निकलने का सीधा-सा रास्ता। मैं हिचकिचाया, लेकिन मेरे ऊपर एक बार में बहुत पैसे कमाने एक सुरूर-सा चढ़ा हुआ था, जिससे मैं अपने परिवार को एक आर्थिक मज़बूती दे पाता। 

मैंने रज्जू के साथ काम करना शुरू किया, पहले छोटे स्तर पर, लोकल कस्टमर्स को गाँजा और चरस के छोटे पैकेट्स पहुँचाने का काम किया। पैसे बढ़िया थे और पहली बार मुझे महसूस हुआ कि मैं अपनी क़िस्मत ख़ुद लिख सकता हूँ और इसे मज़बूत भी बना सकता हूँ।

आने वाले समय में इस पेशे में बहुत सारे दाँव-पेंच आने वाले थे। रज्जू ने मुझे दिल्ली में काम करने वाले एक बड़े नेटवर्क से मिलवाया। यह ग्रुप केवल गाँजा ही नहीं, हेरोइन, कोकेन और सिंथेटिक ड्रग्स जैसे अधिक प्रॉफ़िट देने वाले और ख़तरनाक ड्रग्स का व्यापार करता था। कुछ ही महीनों में लाखों रुपए कमाने की उम्मीद ने मुझे लुभा लिया। 

इस दुनिया में मेरी भागीदारी बेहद ख़तरनाक और तेज़ थी। मैंने बड़े कनसाइनमेंट्स के लिए दिल्ली, मुंबई और गोवा जैसे शहरों में यात्राएँ करनी शुरू कर दीं।

हिंदुस्तान में ड्रग-डीलिंग एक मकड़जाल जैसा है। यह भ्रष्टाचार, संगठित अपराध और अंतरराष्ट्रीय तस्करी के ख़ेमों से जुड़ा हुआ है। मैंने इस ख़तरनाक इलाक़े को नेविगेट करना सीखा, स्थानीय पुलिस और राजनेताओं की हथेलियों को सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करने के लिए घिसा। गिरफ़्तारी और विश्वासघात का ख़तरा हमेशा बना रहता था, लेकिन क़ानून को चकमा देने का रोमांच अपने आपमें एक नशा बन गया।

मेरे सबसे जोखिम भरे असाइनमेंट्स में से एक गोल्डन क्रिसेंट—ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के त्रयी-सीमा-क्षेत्र—से भारत में हेरोइन की एक बड़ी खेप की तस्करी करना था। यह क्षेत्र अपने अफ़ीम प्रोडक्शन के लिए कुख्यात है, और यहाँ बनाए जाने वाले ड्रग्स दुनिया भर के बाज़ारों में पहुँचते हैं। मैं इस बहुत बड़ी मशीनरी में केवल एक कड़ी था, लेकिन शोहरत और भारी कमीशन ने मुझे आगे बढ़ने पर मज़बूर किया।

जैसे-जैसे मेरी भागीदारी गहरी होती गई, मेरी नैतिकता जैसे ग़ायब होती गई। मैंने ख़ुद भी उन्हीं ड्रग्स को लेना शुरू कर दिया, जिन्हें मैं बेच रहा था। तनाव से निपटने के लिए एक बार की हिट धीरे-धीरे पूरी तरह से लत में बदल गई। मेरी ज़िंदगी बेक़ाबू होती गई। मैंने जो पैसे कमाए, वे जल्दी ही मेरी लत को पूरा करने में ख़र्च हो गए। जो शोहरत मैंने कभी हासिल की थी, वह अब डर और बेइज़्ज़ती में तब्दील हो चुकी थी।

मुंबई में एक रात मेरी ज़िंदगी में मील का पत्थर साबित हुई। मुझे एमडीएमए की एक खेप को एक हाई-प्रोफ़ाइल ग्राहक तक पहुँचाना था। यह डील बांद्रा के एक पॉश नाइट-क्लब में होनी थी। सब कुछ सामान्य लग रहा था, जब तक कि मुंबई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने क्लब पर छापा नहीं मारा।

अफ़रातफ़री मच गई। इस अफ़रातफ़री में मुझे कई दूसरे संदिग्धों के साथ गिरफ़्तार कर लिया गया। मेरे ख़िलाफ़ सबूत बहुत पुख़्ता थे—ड्रग्स से भरा एक बैकपैक और मेरे लेन-देन का लेखा-जोखा देने वाला एक लेज़र। 

जेल में बिताया गया समय मेरे लिए एक बेहद डरावने सपने जैसा था। सभी दिखावे और लग्ज़री से दूर, मुझे अपने विकल्पों की वास्तविकता का सामना करना पड़ा। मैंने सामने से देखा कि ड्रग्स ने व्यक्तियों और परिवारों पर क्या क़हर ढाए। जेल कहानियों से भरी हुई थी—ऐसे लोगों की कहानियों से जो आसान पैसे के लालच में आए थे और अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर बैठे।

जेल से रिहा होने के बाद, मैंने अपनी ज़िंदगी को सुधारने की क़सम खाई। यह आसान नहीं था। एक पूर्व अपराधी और पूर्व ड्रग-डीलर होने का कलंक हर जगह मेरा पीछा करता था। लेकिन मैंने दूसरों की मदद करने में संतोष पाया, ताकि वे उस रास्ते पर नहीं चलें जिस पर मैं ख़ुद चलकर आ चुका था। 

मैंने स्थानीय एनजीओ के साथ काम करना शुरू किया, स्कूलों और कॉलेजों में अपनी कहानी साझा की; जिससे कि युवाओं को नशे की लत से बचाया जा सके। हिंदुस्तान की ड्रग समस्या बहुआयामी है, जिसमें सामाजिक-आर्थिक कारक, जागरूकता की कमी और अपर्याप्त क़ानून शामिल हैं। जबकि सरकार ने ड्रग तस्करी से निपटने के प्रयासों को तेज़ कर दिया है; लेकिन अब भी ग़रीबी, बेरोज़गारी और शिक्षा की कमी जैसी मूल समस्याओं को संबोधित करने की आवश्यकता है। नशेड़ियों और पूर्व अपराधियों के लिए रीहैबिटीलेशन महत्त्वपूर्ण हैं।

आज मैं दिल्ली के एक रीहैब सेंटर में काउंसलर के रूप में एक साधारण, लेकिन ईमानदार ज़िंदगी जीता हूँ। मेरा अतीत मुझे सताता है, लेकिन यह मेरे सुधार के प्रति मेरी प्रतिबद्धता को भी प्रेरित करता है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव से लेकर भारतीय ड्रग व्यापार की अँधेरी गलियों तक और फिर वहाँ से वापस आने की मेरी यात्रा भयानक रही है। फिर भी, इसने मुझे दृढ़ता का मूल्य और पुनरुत्थान की संभावना दी है।

अपनी कहानी कहते हुए मुझे उम्मीद है कि यह कहानी उन लोगों के लिए चेतावनी का काम करेगी जो कभी मेरे द्वारा चुने गए रास्ते पर आज और अपने वर्तमान में खड़े हैं। आसान पैसे का आकर्षण एक छलावा है, जो केवल निराशा और विनाश की ओर ले जाता है। सच्ची स्वतंत्रता—गरिमा और ईमानदारी से जीवन जीने में है, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न लगे।

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