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संघर्ष पर बेला

26 मार्च 2025

प्रेम, लेखन, परिवार, मोह की 'एक कहानी यह भी'

प्रेम, लेखन, परिवार, मोह की 'एक कहानी यह भी'

साल 2006 में प्रकाशित ‘एक कहानी यह भी’ मन्नू भंडारी की प्रसिद्ध आत्मकथा है, लेकिन मन्नू भंडारी इसे आत्मकथा नहीं मानती थीं। वह अपनी आत्मकथा के स्पष्टीकरण में स्पष्ट तौर पर लिखती हैं—‘‘यह मेरी आत्मकथा

11 मार्च 2025

मैं काली हूँ! काली हूँ, काली!

मैं काली हूँ! काली हूँ, काली!

यह भी ब्लैक हिस्ट्री का एक चमकदार अध्याय है। 2 फ़रवरी 2025 की रात कैलिफ़ोर्निया में अफ़्रीकन-अमेरिकन सिंगर-डांसर बियोन्से नोल्स को कंट्री म्यूज़िक कैटेगरी में ‘काउबॉय कार्टर’ के लिए ग्रैमी का ‘एलबम ऑफ़ द

05 मार्च 2025

हमारे समय का आर्तनाद है ‘शान्ति पर्व’ की कविताएँ

हमारे समय का आर्तनाद है ‘शान्ति पर्व’ की कविताएँ

आशीष त्रिपाठी का अद्यतन काव्य संग्रह ‘शान्ति पर्व’ विवेकशील मानस की भाव-यात्रा है। भाव के साथ चेतना भी जागृत है। इस यात्रा में सब कुछ है, सब कुछ! फणीश्वरनाथ रेणु के शब्दों में कहें तो—“इसमें फूल भी ह

27 फरवरी 2025

रसोई घर का इंक़लाब

रसोई घर का इंक़लाब

रसोई घर की ओर बढ़ती हुई स्त्रियाँ सोचती तो होंगी कि कैसे शाम-सवेरे बिना किसी दबाव के उनके क़दम उस ओर जाने लगते हैं। इसके लिए अधिकतर उन्हें किसी से कहलवाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, न समय के दुरुस्त होन

22 फरवरी 2025

प्लेटो ने कहा है : संघर्ष के बिना कुछ भी सुंदर नहीं है

प्लेटो ने कहा है : संघर्ष के बिना कुछ भी सुंदर नहीं है

• दयालु बनो, क्योंकि तुम जिससे भी मिलोगे वह एक कठिन लड़ाई लड़ रहा है। • केवल मरे हुए लोगों ने ही युद्ध का अंत देखा है। • शासन करने से इनकार करने का सबसे बड़ा दंड अपने से कमतर किसी व्यक्ति द्वार

19 फरवरी 2025

दुखी दादीबा और भाग्य की विडंबना

दुखी दादीबा और भाग्य की विडंबना

यह पुस्तक पारसी समुदाय के वैभवशाली जीवन की कथा है और लेखक द्वारा इसके किसी सच्चे जीवन वृत्तांत पर आधृत होने का दावा भी जगह-जगह पर मिलता है। यह बहुत पुरानी रचना है, संभवतः 20वीं सदी के शुरुआत की। इसका

13 फरवरी 2025

कहानी : लुटेरी तवायफ़ें

कहानी : लुटेरी तवायफ़ें

शादियों का सीज़न आते ही रेशमा तैयारी करना शुरू कर देती। मेकअप से थोड़ा घबराती थी, लेकिन उम्र छुपाने की जद्दोजहद रहती थी हमेशा। चेहरे को कैसे सवारें, क्या करें, क्या न करें—ये सब परपंच उसे समझ नहीं आते।

12 फरवरी 2025

स्त्रियों के संसार में ही घिरती है रात

स्त्रियों के संसार में ही घिरती है रात

ये उसकी सुबह थी पीठ पर धक्का मारते पुलकित के नन्हें पैर सुबह की अलसाई नींद के गवाह थे। इससे पहले वह इस आनंद में डूबती, भागते समय की हक़ीक़त एक कुशल ग़ोताख़ोर की तरह उसे अप्रतिम सुख की नदी से बाहर

08 फरवरी 2025

बहुत कुछ खोने के अँधेरे में किसी को बचाने की कहानियाँ

बहुत कुछ खोने के अँधेरे में किसी को बचाने की कहानियाँ

इस किताब को पढ़ते हुए यह महसूस होता है कि कवि-कथाकार-फ़िल्मकार देवी प्रसाद मिश्र की कहानियों के साथ चलना ख़ुद को विशद करना और उदात्त करना ही तो है। ‘कोई है जो’ खिड़की से भीतर गया, दरवाज़े से भीतर जात

03 फरवरी 2025

'सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक'

'सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक'

सुरेन्द्र वर्मा का जन्म सन् 1941 को झाँसी में हुआ, वह हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। उनका नाटक ‘सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक’ सन् 1972 में प्रकाशित हुआ। उपन्यास ‘मुझे चाँद चाहिए’

30 जनवरी 2025

भारंगम में खेला गया भिखारी ठाकुर का ‘बिदेसिया’

भारंगम में खेला गया भिखारी ठाकुर का ‘बिदेसिया’

‘बिदेसिया’ (नाटक) भिखारी ठाकुर की अमर कृति है, जिसे संजय उपाध्याय ने एक नया आयाम दिया है। भिखारी ठाकुर भोजपुरी भाषा के कवि, नाटककार, गीतकार, अभिनेता, लोक नर्तक, लोक गायक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्

28 जनवरी 2025

पेड़ों पर चढ़ने वाली स्त्रियों का संसार

पेड़ों पर चढ़ने वाली स्त्रियों का संसार

विशाल हिमालय की गोद में बसे दो देश—भारत और नेपाल एक-दूसरे के पड़ोसी हैं और दोनों साथ में 1850 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा भी साझा करते हैं। भारत और नेपाल बॉर्डर भारतीय उपमहाद्वीप के बाक़ी देशों

25 जनवरी 2025

इहबास में सोलह दिन

इहबास में सोलह दिन

मेरे चार दशक के अनुभव ने जीवन में चार चाँद लगा दिए हैं। कुछ दशक तो मेरे लिए एक सदी लिए हुए आए थे, सूरज सरीखे चमकीले, दमकीले और झुलसा देने वाले। दिल्ली के हाइटेक कहे-समझे जाने वाले खस्ताहाल अस्पतालों

23 जनवरी 2025

उम्मीद का चक्र जब पूरा होता है, तब ज़िंदगी कहाँ होती है!

उम्मीद का चक्र जब पूरा होता है, तब ज़िंदगी कहाँ होती है!

सुंदरता की अपने तहें होती हैं। बहुत मुलायम और क्रूर भी। मन हमेशा इतना ही अनजान रहता है कि वह परतों के इस जमावड़े को भूल जाए। कहाँ ध्यान रहता है कि सुख के किस क्षण ने हाल में फूटे दुखों के ज्वालामुखी

22 जनवरी 2025

एक मुसलमान का ‘पाताल लोक’

एक मुसलमान का ‘पाताल लोक’

‘पाताल लोक’ का दूसरा सीज़न पूरा देखा और इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी की ‘हाथी’ जैसी अदाकारी के आगे सारे अदाकार फीके पड़ गए। मेरे जैसे दर्शक को यह देखकर ख़ुशी हुई कि चलो कम से कम किसी किरदार का नाम अंसारी

13 जनवरी 2025

ब्रूस ली ने कहा है : शांति एक महाशक्ति है

ब्रूस ली ने कहा है : शांति एक महाशक्ति है

• मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए इस दुनिया में नहीं हूँ और आप मेरी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए इस दुनिया में नहीं हैं। • आसान जीवन के लिए प्रार्थना न करें, कठिन जीवन को सहने की शक्ति के लि

07 जनवरी 2025

द वेजिटेरियन : हिंसा और अन्याय से मुक्ति का स्वप्न

द वेजिटेरियन : हिंसा और अन्याय से मुक्ति का स्वप्न

“मुझे एक स्वप्न आया था” कोरियाई लेखिका हान कांग के उपन्यास ‘द वेजिटेरियन’ के मूल में यही वाक्य है, जो उपन्यास की पात्र योंग-हे निरंतर दुहराती रहती है। यह वाक्य साधारण ध्वनित कर सकता है लेकिन यह शो

06 जनवरी 2025

सिंधियों की पीड़ा का बयान

सिंधियों की पीड़ा का बयान

चलना जीवन है और चलते जाना इंसान होने की नियति है। समाजशास्त्र की मूल स्थापना है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। ‘सिमसिम’ के मुख्य पात्र के जीवन की कोख कहानी और उससे निर्मित स्वचेतना से लेखक पाता है क

03 जनवरी 2025

कुसुमपुर के एक बूढ़े आदमी की कथा

कुसुमपुर के एक बूढ़े आदमी की कथा

कुसुमपुर के वृद्ध फ़क़ीरचंद जाएँगे बड़ाबाबू के पास। उनकी पीठ पर एक छड़ी है, जिसमें एक छोटी-सी पोटली लटकी हुई है। बूढ़ा आदमी थोड़ा झुक कर चलता है। अब प्रकाश होने का समय है, इस चैत माह की सुबह में पृथ्व

26 दिसम्बर 2024

जातिगत गर्व और समानता का संघर्ष

जातिगत गर्व और समानता का संघर्ष

पत्रकार और अध्येता मनोज मिट्टा की तीसरी किताब ‘कास्ट प्राइड : बैटल फ़ॉर इक्वलिटी इन हिंदू इंडिया’ अप्रैल 2023 में प्रकाशित हुई है। इससे पहले उन्होंने 1984 के सिख विरोधी जनसंहार पर ‘When A Tree Shook D

15 दिसम्बर 2024

व्यक्ति से प्रकाश-स्तंभ बनने की यात्रा

व्यक्ति से प्रकाश-स्तंभ बनने की यात्रा

विचारहीनता ने आज जिस प्रकार तमाम राजनीतिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक परिदृश्य को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है, और भावनाओं के उकसावे को ही वैचारिक ताक़त का नाम दिया जाने लगा है, उससे यह बात और ज़्यादा पुष्ट होत

10 दिसम्बर 2024

रूढ़ियों में झुलसती मजबूर स्त्रियाँ

रूढ़ियों में झुलसती मजबूर स्त्रियाँ

पश्चिमी राजस्थान का नाम सुनते ही लोगों के ज़ेहन में बग़ैर पानी रहने वाले लोगों के जीवन का बिंब बनता होगा, लेकिन पानी केवल एक समस्या नहीं है; उसके अलावा भी समस्याएँ हैं, जो पानी के चलते हाशिए पर धकेल

08 नवम्बर 2024

गिफ़्टेड : एक जीनियस बच्ची के बचपन को बचाने की कहानी

गिफ़्टेड : एक जीनियस बच्ची के बचपन को बचाने की कहानी

अपनी माँ की भाषा में कहूँ तो गिफ़्टेड एक मामा और भांजी के एक आत्मीय रिश्ते पर आधारित एक फ़िल्म है। मामा यानी माँ का भाई, गिफ़्टेड देखते हुए मुझे अपने मामा की याद बरबस ही आती रही कि कैसे उन्होंने हम भा

03 नवम्बर 2024

जीवन के मायाजाल में फँसी मछली

जीवन के मायाजाल में फँसी मछली

पेंगुइन बर्फ़ की कोख में नवजात पेंगुइन पैदा हुआ। पेंगुइन नहीं जानता था, वह क्यों और किस तरह पैदा हुआ। कौन-से उद्देश्य की ज़र खाई पाज़ेब पहन अपने पाँव ‌ज़मीन पर रखे। यह रूप, यह संज्ञा, यह संसार, यह

29 अक्तूबर 2024

धरती पर हज़ार चीज़ें थीं काली और ख़ूबसूरत

धरती पर हज़ार चीज़ें थीं काली और ख़ूबसूरत

इक्कीसवीं सदी की हिंदी कविता की नई पीढ़ी का स्वर बहुआयामी और बहुकेंद्रीय सामाजिक सरोकारों से संबद्ध है। नई पीढ़ी के कवियों ने अपने समय, समाज और राजनीति के क्लीशे को अलग भाष्य दिया है। अनुपम सिंह की क

19 अक्तूबर 2024

CTRL :  एक बेमेल दुनिया की सच्चाई, जहाँ से बचना लगभग असंभव है

CTRL : एक बेमेल दुनिया की सच्चाई, जहाँ से बचना लगभग असंभव है

कभी-कभी सोचती हूँ कि यह आभासी दुनिया भी कितनी उकताऊ हो चुकी है। कुछ भी आभासी देखने या सुनने का मन नहीं होता। जब मैंने नेटफ़्लिक्स पर ‘CTRL’ देखनी शुरू की, तो मुझे लगा कि यह एआई और डेटा-प्राइवेसी पर आ

11 अक्तूबर 2024

रसोई के ज़रिए संघर्ष, मुक्ति और प्रेम का वितान रचता उपन्यास

रसोई के ज़रिए संघर्ष, मुक्ति और प्रेम का वितान रचता उपन्यास

किताबें पढ़ने की यात्रा, मुझे उन्हें लिखने से कम रोमांचक नहीं लगती। ख़ासकर किताब अगर ऐसी हो कि तीन बजे देर रात भी—जब तक कि वह पूरी नहीं हो जाए—जगाए रखे, इस तरह की किताब से जुड़ी हर चीज़ स्मृति में अटक ज

05 अक्तूबर 2024

ईमानदार CA से मेल एस्कॉर्ट तक का सफ़र

ईमानदार CA से मेल एस्कॉर्ट तक का सफ़र

संघर्ष, विद्रोह और समाजवाद की सिनेमाई यात्रा : नेटफ़्लिक्स सीरीज़ त्रिभुवन मिश्रा सीए टॉपर आधुनिक भारतीय मनोरंजन की भीड़-भाड़ में, नेटफ़्लिक्स की सीए टॉपर एक ऐसी सिनेमाई रचना के रूप में उभरती है,

30 सितम्बर 2024

यों याद किए गए नवीन सागर

यों याद किए गए नवीन सागर

गत शुक्रवार, 27 सितंबर को हौज़ ख़ास विलेज, नई दिल्ली में ‘नवीन सागर स्मृति रचना समारोह’ का पहला आयोजन हुआ। मेरी नज़र में बीते कई सालों में हिंदी-संसार में हो रहे आयोजनों में ऐसा कोई आयोजन हुआ या होता

29 सितम्बर 2024

एंग्री यंग मैन : सलीम-जावेद की ज़िंदगी के अनछुए अध्याय

एंग्री यंग मैन : सलीम-जावेद की ज़िंदगी के अनछुए अध्याय

नम्रता राव द्वारा निर्देशित अमेज़न प्राइम डाक्यूमेंट्री सीरीज़ ‘एंग्री यंग मैन’ मशहूर पटकथा लेखक जोड़ी—सलीम ख़ान और जावेद अख़्तर के जीवन की एक खोज है, जिनके सहयोग ने 1970 और 80 के दशक में हिंदी-सिनेम

15 सितम्बर 2024

क़ुबूलनामा : एक एंबुलेंस ड्राइवर का

क़ुबूलनामा : एक एंबुलेंस ड्राइवर का

डिस्क्लेमर :  क़ुबूलनामा शृंखला में प्रस्तुत लेखों में वर्णित सभी पात्र, कहानियाँ, घटनाएँ और स्थान काल्पनिक हैं; जो किसी भी व्यक्ति, समूह, समाज, सरकारी-ग़ैरसरकारी संगठन और अधिकारियों से कोई संबंध न

11 सितम्बर 2024

राजनीतिक संगठनकर्ताओं के बीच मुक्तिबोध

राजनीतिक संगठनकर्ताओं के बीच मुक्तिबोध

भारतीय आर्थिक ढाँचा एक बहुत बड़ी आबादी को ख़ाली समय की सुविधा ही नहीं देता कि वह साहित्य जैसे विषय को अपने जीवन से जोड़ सके।  चिंता : हिंदी के लेखक कई बार सामूहिक तौर पर तो कई बार व्यक्तिगत सीम

19 अगस्त 2024

जो रेखाएँ न कह सकेंगी

जो रेखाएँ न कह सकेंगी

एक युग बीत जाने पर भी मेरी स्मृति से एक घटा भरी अश्रुमुखी सावनी पूर्णिमा की रेखाएँ नहीं मिट सकी हैं। उन रेखाओं के उजले रंग न जाने किस व्यथा से गीले हैं कि अब तक सूख भी नहीं पाए—उड़ना तो दूर की बात है

17 अगस्त 2024

जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं

जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं

कवि जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ (1930-2013) अवधी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। उनकी जन्मतिथि के अवसर पर जन संस्कृति मंच, गिरिडीह और ‘परिवर्तन’ पत्रिका के साझे प्रयत्न से जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ स्मृति संवाद कार्य

13 अगस्त 2024

स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?

स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?

रात का एक अलग सौंदर्य होता है! एक अलग पहचान! रात में कविता बरसती है। रात की सुंदरता को जिसने कभी उपलब्ध नहीं किया, वह कभी कवि-कलाकार नहीं बन सकता—मेरे एक दोस्त ने मुझसे यह कहा था। उन्होंने मेरी तरफ़

06 अगस्त 2024

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

तड़के तीन से साढ़े तीन बजे के बीच वह मेरे कमरे पर दस्तक देते, जिसमें भीतर से सिटकनी लगी होती थी। वह मेरा नाम पुकारते, बल्कि फुसफुसाते। कुछ देर तक मैं ऐसे दिखावा करता, मानो मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा हो

06 अगस्त 2024

संवेदना न बची,  इच्छा न बची, तो मनुष्य बचकर क्या करेगा?

संवेदना न बची, इच्छा न बची, तो मनुष्य बचकर क्या करेगा?

24 जुलाई 2024 भतृहरि ने भी क्या ख़ूब कहा है— सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति।।  अर्थात् : जिसके पास धन है, वही गुणी है; या यह भी कि सभी गुणों के लिए धन का ही आसरा है।  बताइए, क्या यह आज भी सच

05 अगस्त 2024

मैं जब चाहे बाल नहीं धो सकती

मैं जब चाहे बाल नहीं धो सकती

“आज बाल नहीं धोने हैं।” “क्यों?” “आज एकादशी है।” “पर बाबा तो अभी-अभी शैंपू करके निकले हैं।” “तुमसे तो बात ही करना बेकार है। चार किताब पढ़ के आज के लैकन तेज हो जाई त ह थ...”   औरतों का ब

04 अगस्त 2024

मुग़लसराय से दिल्ली : मित्रता के तीस साल

मुग़लसराय से दिल्ली : मित्रता के तीस साल

मेरे एक मित्र हैं सुखलाल जी। उनसे मेरी मित्रता के लगभग तीस साल होने को हैं। वैसे तो वह मेरे साथ दिल्ली महानगर में एक प्रकाशन में काम कर चुके हैं, लेकिन उनसे और नज़दीकियाँ इसलिए हैं कि वह मेरे गाँव क्

31 जुलाई 2024

हिन्दवी उत्सव के बहाने दुःख ने दुःख से बात की...

हिन्दवी उत्सव के बहाने दुःख ने दुःख से बात की...

‘हिन्दवी’ ने बीते दिनों अपने चार वर्ष पूरे किए। अच्छे-बुरे से परे ‘हिन्दवी’ कभी चर्चा से बाहर नहीं रहा। ‘हिन्दवी’—‘रेख़्ता फ़ाउंडेशन’ का ही उपक्रम है। ‘जश्न-ए-रेख़्ता’ में ख़ूब भीड़ होती है। सवाल यह

15 जुलाई 2024

‘सोज़’ के तखल्लुस से ग़ज़लें लिखने वाले कांतिमोहन का जाना

‘सोज़’ के तखल्लुस से ग़ज़लें लिखने वाले कांतिमोहन का जाना

लेखक, शिक्षक, विचारक और संगठनकर्ता कांतिमोहन का रविवार, 14 जुलाई को निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 14 जुलाई 1936 को हल्द्वानी, उत्तराखंड में उनका जन्म हुआ। 14 जुलाई 2024 को 88 वर्ष पूरे

04 जुलाई 2024

सरकारी नौकर, टीका और अन्य कहानियाँ

सरकारी नौकर, टीका और अन्य कहानियाँ

दोस्तो! हम पाक-विस्थापितों में टीके के रिवाज का तारीख़ी सिलसिला कब शुरू हुआ, मेरे पास इसकी कोई पुख़्ता जानकारी नहीं है। मेरे परिवार में एक ताऊ ज़रूर हैं, जो बात-बात पर पारिवारिक मौक़ों में यह कहते हु

02 जुलाई 2024

काम को खेल में बदलने का रहस्य

काम को खेल में बदलने का रहस्य

...मैं इससे सहमत नहीं। यह संभव है कि काम का ख़ात्मा किया जा सकता है। काम की जगह ढेर सारी नई तरह की गतिविधियाँ ले सकती हैं, अगर वे उपयोगी हों तो।  काम के ख़ात्मे के लिए हमें दो तरफ़ से क़दम बढ़ाने

01 जुलाई 2024

काम से बचना सिर्फ़ अनिच्छा का मामला नहीं है

काम से बचना सिर्फ़ अनिच्छा का मामला नहीं है

...प्रतिवर्ष चौदह हज़ार से पचीस हज़ार मज़दूर काम के दौरान मारे जाते हैं। बीस लाख से ज़्यादा काम के अयोग्य हो जाते हैं। दो से ढाई करोड़ हर साल ज़ख्मी होते हैं। काम से जुड़ी दुर्घटनाओं के ये आँकड़े, एक

30 जून 2024

अगर कोई कहता है कि वह ‘आज़ाद’ है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या मूर्ख है।

अगर कोई कहता है कि वह ‘आज़ाद’ है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या मूर्ख है।

...काम आज़ादी का मज़ाक़ उड़ाता है। समझाया तो यह जाता है कि हम लोकतंत्र में रहते हैं और हमें सारे अधिकार प्राप्त हैं। दूसरे; जो दुर्भाग्यशाली हैं, वे हमारी तरह स्वतंत्र नहीं हैं और उन्हें पुलिसिया राज

26 जून 2024

विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य

विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य

महोदया ‘श’ के लिए  एक ‘स्त्री दुःख है।’ मैंने हिंदी समाज में गीत चतुर्वेदी और आशीष मिश्र की लोकप्रिय की गई पतली-सुतली सिगरेट जलाते हुए एक सुंदर फ़ेमिनिस्ट से कहा और फिर डर कर वाक्य बदल दिया—

20 जून 2024

वासना सौंदर्य को देखने की इच्छा है

वासना सौंदर्य को देखने की इच्छा है

‘वासना’ इच्छाओं का संतुलित नाम अर्थों के कई संदर्भों में समाहित है। सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाओं की संगीन गुफ़्तगू अपने विस्तारित क्षेत्र में जो कुछ कहती है, उसका सहजता से निर्मित एक वैचारिक आलोक जि