काम से बचना सिर्फ़ अनिच्छा का मामला नहीं है
...प्रतिवर्ष चौदह हज़ार से पचीस हज़ार मज़दूर काम के दौरान मारे जाते हैं। बीस लाख से ज़्यादा काम के अयोग्य हो जाते हैं। दो से ढाई करोड़ हर साल ज़ख्मी होते हैं। काम से जुड़ी दुर्घटनाओं के ये आँकड़े, एक
अगर कोई कहता है कि वह ‘आज़ाद’ है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या मूर्ख है।
...काम आज़ादी का मज़ाक़ उड़ाता है। समझाया तो यह जाता है कि हम लोकतंत्र में रहते हैं और हमें सारे अधिकार प्राप्त हैं। दूसरे; जो दुर्भाग्यशाली हैं, वे हमारी तरह स्वतंत्र नहीं हैं और उन्हें पुलिसिया राज
विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य
महोदया ‘श’ के लिए एक ‘स्त्री दुःख है।’ मैंने हिंदी समाज में गीत चतुर्वेदी और आशीष मिश्र की लोकप्रिय की गई पतली-सुतली सिगरेट जलाते हुए एक सुंदर फ़ेमिनिस्ट से कहा और फिर डर कर वाक्य बदल दिया—
वासना सौंदर्य को देखने की इच्छा है
‘वासना’ इच्छाओं का संतुलित नाम अर्थों के कई संदर्भों में समाहित है। सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाओं की संगीन गुफ़्तगू अपने विस्तारित क्षेत्र में जो कुछ कहती है, उसका सहजता से निर्मित एक वैचारिक आलोक जि