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मैं जब चाहे बाल नहीं धो सकती

“आज बाल नहीं धोने हैं।”

“क्यों?”

“आज एकादशी है।”

“पर बाबा तो अभी-अभी शैंपू करके निकले हैं।”

“तुमसे तो बात ही करना बेकार है। चार किताब पढ़ के आज के लैकन तेज हो जाई त ह थ...”
 
औरतों का बाल धोना, मेरे घर में एक क्रांति का विषय है। मुझे पता है कि ‘क्रांति’ शब्द बहुत बड़ा है, इसलिए मैं इसे बहुत सोच-समझकर ही इस्तेमाल कर रही हूँ।

मैंने यहाँ क्रांति इसलिए कहा, क्योंकि हम हफ़्ते में जब चाहें बाल नहीं धो सकते। आज सोमवार है, शंकर भगवान का दिन, आज नहीं धुलना बाल, कल धुलना। आज तो मंगलवार है और पीरियड्स के बाल धुलोगी तुम? 

जी सही कह रही हूँ, पीरियड्स के भी बाल होते हैं! ऐसा नहीं है कि पीरियड्स के बाल से ख़ून टपक रहा होता है, जिस वजह से आप राह चलते लड़की को देखकर बोल सकें कि अरे तुम्हारे पीरियड्स के बाल हैं। पीरियड्स के बाल का एक हौवा है जो इतना विशाल हो गया है कि अब तो मैं भी मंगलवार को बाल नहीं धुलती। 

मेरे घर में दो दिन तय हैं—पीरियड्स के बाल धोने के लिए। वे दो दिन हैं—रविवार और गुरुवार। इन दो दिनों में ही मुझे मुक्ति मिलती है। 

हफ़्ते का तीसरा दिन जो बुधवार होता है, इस दिन कोई ख़ास वजह नहीं होती बाल नहीं धुलने की, बशर्ते की उस दिन कोई पूजा-पाठ या त्योहार न हो। जैसे कि अगर एकादशी है, तो माँ के हिसाब से तब हमको बाल नहीं धुलना है। यह पूजा-पाठ वाली थिअरी शुक्रवार पर भी लागू होती है। 

फिर आता है गुरुवार। गुरुवार बड़ा ही कॉन्ट्रोवर्सी वाला दिन है। जहाँ इस दिन बड़ी तादाद में लोग साबुन तक नहीं लगाते हैं, वहाँ शैंपू लगाने की क्या ही बात करना!

इस दिन विष्णु भगवान की पूजा की जाती है और इस दिन लोग पीला पहनना पसंद करते हैं। पीला रंग भगवान विष्णु के कपड़ों का रंग होता है। आमतौर पर मैंने उन्हें जितनी भी तस्वीरों में देखा है, उसमें वह पीले रंग में ही दिखे हैं। अरे, नहीं-नहीं! मैंने भगवान को नहीं देखा है, मैंने समाज में रहते हुए जो देखा है, ग़ौर किया है—मैं उस बारे में बात कर रही हूँ। 

पीले रंग पर वापस आते हैं। एक बार तो पीला पहनने की ऐसी लहर चली थी कि आप दरवाज़ा खोलो और आपको सरसों के फूल दिखने शुरू हो जाएँगे। 

दूसरी तरफ़ गुरुवार को लेकर यह एक धारणा और है कि इस दिन शैंपू करने से लगन चरचरा जाता है। चरचरा जाने का मतलब है, आपकी शादी जल्दी होने की संभावना और यह सिर्फ़ लड़कियों के लिए है। लड़के लगन चरचरा जाए—इसके लिए आज भी सरकारी नौकरी की तैयारी में एड़ियाँ घिस रहे हैं।
 
अब आते हैं शनिवार पर। शनिवार सोचते ही मुझे सब कुछ काला-काला दिखने लगता है, ऐसा इसलिए है क्योंकि बचपन से ही इस दिन के बारे में बड़े क़िस्से सुने हैं और उनमें से कुछ एक अगर सच हो जाएँ—जैसा एक दो बार हो भी चुका है—तो इस दिन को ही काला घोषित कर देते हैं।
 
शनिवार के दिन शुभ काम नहीं करते, शनिवार के दिन बाहर नहीं जाते, शनिवार के दिन शुभ यात्रा पर नहीं जाते और बाल तो बिल्कुल नहीं धुल सकते। बचपन से यह सब लगातार सुनते हुए, शनिवार आते ही मेरे विचार में भी काला आना शुरू हो जाता है। 

शनिवार के दिन काले कपड़े भी पहनते हैं, ग्रह काटने के लिए। शनिवार के दिन बाल धोना सख़्त मना है; लेकिन अगले दिन कुछ ख़ास है—जैसे कोई त्योहार या अगले दिन अगर उपवास रखना है—तो इस दिन बाल धुल सकते हैं, बस ग़ौर यह करना है कि नहाने से पहले कुछ खाना पड़ेगा और बिना कुछ मुँह पर लगाए बाल नहीं धो सकते। 

यह ध्यान रहे कि बाल धो लेने के इस अपवाद से जुड़ी यह बड़ी-सी थीसिस सिर्फ़ और सिर्फ़ बड़े त्योहारों पर ही काम करती है। आम दिनों में आप बिल्कुल भी ऐसा नहीं कर सकते। ऐसा करने पर आपको शहरी घोषित कर दिया जाएगा, या यह मान लिया जा सकता है कि आपको शहर की हवा लग गई है।
 
अंत में आता है रविवार। रविवार मतलब ठंड की दुपहरी। रविवार मतलब गर्मी की साँझ। रविवार मतलब तपती धूप में नीम की छाँव। रविवार मतलब गुड़ का पुआ और कद्दू की सब्ज़ी। रविवार का मतलब चिपचिपे हो चुके बाल से नजात। रविवार ही एक ऐसा दिन है, जिस रोज़ आपके बाल न धुलने पर सवाल होता है। आज तो रविवार है, आज क्यों नहीं धोए बाल?

रविवार को लड़कियों का नेशनल शैंपू डे होता है। रविवार को हमें चिपचिपे बालों से आज़ादी मिल पाती है। हम बाल खोलकर बैठते हैं। हमारी अनगिनत तस्वीरें ली जाती हैं और हमारे बाल मुक्ति पाकर इठलाकर हवा में लहराते हैं। 

बाल न धुलने का नियम घर की औरतों ने घर की औरतों के लिए ही बनाया है। 

क्यों बनाया है?

उन्हें भी नहीं पता।

पता नहीं तो बनाया क्यों?

क्योंकि यह नियम उन्हें उनकी माँ, दादी और नानी ने सिखाया और वे अब हमें सिखा रही हैं।

मेरी दादी को लगता था कि मैं सप्ताह में दो दिन बाल धोकर कितना बड़ा पाप कर रही हूँ। मैं जब भी सप्ताह के बीच में बाल धुलते हुए पकड़ी जाती तो यही आवाज़ आती थी कि रोज बारे धोव लिश...
 
इस प्रकार देखें तो जितना बड़ा प्रपंच लड़कियों के बाल धुलने को लेकर है, उतना ही बड़ा प्रपंच उनके खुले रहने पर भी है। दिन भर बाल खोलकर रहने वाली लड़कियों को संस्कार के कटघरे में खड़ा करके बेदख़ल कर दिया जाता है। अगर उन्हें कुछ कहने के लिए इस कटघरे में वापस आना है तो शैंपू के ठीक एक दिन बाद बाल में एक चुरुवा तेल थापकर, बालों को गुँथकर बाँधना पड़ेगा। 

मैंने जितनी भी बातें लिखी हैं, ज़रूरी नहीं सब मेरे घर में हर बार लागू हों। ये सारे नियम एक टाइम पर सही हैं तो दूसरे ही टाइम सही नहीं माने जाते। जब मम्मी को ठीक नहीं लग रहा होता है, तो वह पलटी मार लेती हैं—बिल्कुल हमारे मुख्यमंत्री साहब की तरह।
 
एक बार मैंने बुधवार को शैंपू कर लिया, और माँ इस बात पर नाराज़ हो गईं। उनके तथाकथित नियम के मुताबिक़ बुधवार में कोई ख़राबी पहले से तो नहीं थी, फिर अचानक क्या हो गया! 

मैंने पूछा—“क्यों नहीं धो सकते।”

“बस नहीं धो सकते। कल धुल लेती, ये तो हुआ नहीं तुमसे।”

“पर आज में क्या परेशानी है?”

“अब हिंदू धर्म में पैदा हुए हैं, तो कुछ तो नियम का पालन करेंगे ना!”

अरे भाई! मुझे नहीं पता था, लड़कियों का बाल धुलना धर्म से कैसे कनेक्ट हुआ? अब इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो मुझे नहीं पता; लेकिन अगर ऐसा है तो मर्दों को भी अपने धर्म का पालन करना चाहिए। आख़िर उन्हें भी तो मोक्ष चाहिए होगा। है की नहीं!

इस सबके बीच माँ ने मुझे यूट्युब शॉर्ट्स से एक वीडियो दिखाया, जिसमें एक पीला वस्त्र धारण किए बाबाजी बता रहे थे कि महिलाओं को सप्ताह में सिर्फ़ बुधवार और शुक्रवार को बाल धुलने चाहिए। मैंने वीडियो देखा, फिर माँ की तरफ़ देखा और मुस्कुराई... इससे ज़्यादा करने की हिम्मत मुझमें थी नहीं। और न ही मैं उन्हें बाबा जी की बातों से बचाने की कोशिश कर सकती थी, क्योंकि उनकी उम्र पचास हो चुकी है।
 
हो सकता है कि देश में कुछ लोग प्रधानमंत्री के किसी दौरे को लेकर परेशान हों, कुछ लोग अंबानी के शादी-समारोह में हुए ख़र्चे पर चिंतित हों, वहीं कुछ ऐसे भी लोग हो सकते हैं जो बारिश-भूस्खलन में फँसे लोगों की मदद कर रहे हैं और कुछ ऐसे भी जो आने वाले सालों में ऐसी घटनाओं के विकराल हो जाने के डर से परेशान हों और भारत छोड़कर बाहर सेफ़ जगह पहुँचना चाहते हों।

संसद की कार्यवाही से लेकर सिविल सेवा में फ़र्जी सर्टिफ़िकेट से आईएएस बनने, पेरिस ओलंपिक से लेकर अमेरिका के अगले चुनाव में कमला हैरिस की दावेदारी तक दुनिया के लोगों के मुद्दों और चिंताओं में कितनी विविधता है, और एक हमारे यहाँ—बाल कब धुलने चाहिए, कब नहीं... यही क्लियर नहीं!

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