
असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में काँपकर लड़खड़ाओ मत।

हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-पहचानी योजना रहती है।

दुःख उठाने वाला प्रायः टूट जाया करता है, परंतु दूःख का साक्षात् करने वाला निश्चय ही आत्मजयी होता है।

मैंने अपनी कविता में लिखा है 'मैं अब घर जाना चाहता हूँ', लेकिन घर लौटना नामुकिन है; क्योंकि घर कहीं नहीं है।

सामाजिक चेतना सामाजिक संघर्षों में से उपजती है।

अगर इस दुनिया को ईश्वर का ख़्वाब समझ लिए जाए तो ईश्वर से अपेक्षा कम हो जाए, हमदर्दी ज़्यादा।

हम जितनी कठिनता से दूसरों को दबाए रखेंगे, उतनी ही हमारी कठिनता बढ़ती जाएगी।

अगर इनसान पैसे और शोहरत का मोह छोड़ दे तो वह ख़तरनाक हो जाता है, कोई उसे बरदाश्त नहीं कर पाता, सब उससे दूर भागते हैं, या उसे पैसा और शोहरत देकर फिर मोह के जाल में फाँस लेना चाहते हैं।

आँच केवल आग में ही नहीं पाई जाती। कभी एकांत मिले तो अपने लिखे हुए के तापमान को जाँचो।


आगे का कलाकार मेहनतकश की ओर देखता है।

जो मुझसे नहीं हुआ, वह मेरा संसार नहीं।

किसी को भी दूसरे के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं है। उपजीवी होना घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणी मात्र का धर्म है।

जो भी अपनी भूमि पर अँगूठे के बल खड़ा हो जाता है, वट-वृक्ष हो जाता है।


मुक्ति के बिना समानता प्राप्त नहीं की जा सकती और समानता के अभाव में मुक्ति संभव नहीं है।


मैं बाद अज़मर्ग कामयाबी का मुरीद हूँ।

क्या यही सच है कॉमरेड कि विचार और क्रिया में दूरी हमेशा बनी रहती है?

कहीं भी आग लगना बुरा है, मगर यह उत्साह पैदा करता है। आग आदमी को आवाज़ देकर सामने कर देती है।

कोई यथार्थ से जूझकर सत्य की उपलब्धि करता है और कोई स्वप्नों से लड़कर। यथार्थ और स्वप्न दोनों ही मनुष्य की चेतना पर निर्मम आघात करते हैं, और दोनों ही जीवन की अनुभूति को गहन गंभीर बनाते हैं।

स्वप्नद्रष्टा या निर्माता वही हो सकता है, जिसकी अंतर्दृष्टि यथार्थ के अंतस्तल को भेदकर उसके पार पहुँच गई हो, जो उसे सत्य न समझकर केवल एक परिवर्तनशील अथवा विकासशील स्थिति भर मानता हो।

मैं पैदाइशी ‘अछूत’ हूँ। मुझे किसी संस्था में कोई आस्था नहीं। बकवास और ख़ुराफ़ात मुझसे बरदाश्त नहीं होते। स्याह को सफ़ेद या भूरा मैं नहीं कह सकता। खेल मैं नहीं खेलता।

चींटियाँ अपने भार से कई गुना अधिक वज़न उठाकर आराम से चल लेती हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि वे चींटियाँ हैं।

बच्चों के साथ रहते हुए तन थक जाता है, मन मौज में रहता है; काम की चिंता के बावजूद। कभी-कभी मन भी मैला हो जाता है।