दुख पर उद्धरण

दुख की गिनती मूल मनोभावों

में होती है और जरा-मरण को प्रधान दुख कहा गया है। प्राचीन काल से ही धर्म और दर्शन ने दुख की प्रकृति पर विचार किया है और समाधान दिए हैं। बुद्ध के ‘चत्वारि आर्यसत्यानि’ का बल दुख और उसके निवारण पर ही है। सांख्य दुख को रजोगुण का कार्य और चित्त का एक धर्म मानता है जबकि न्याय और वैशेषिक उसे आत्मा के धर्म के रूप में देखते हैं। योग में दुख को चित्तविक्षेप या अंतराय कहा गया है। प्रस्तुत संकलन में कविताओं में व्यक्त दुख और दुख विषयक कविताओं का चयन किया गया है।

दुःख उठाने वाला प्रायः टूट जाया करता है, परंतु दुःख का साक्षात् करने वाला निश्चय ही आत्मजयी होता है।

श्रीनरेश मेहता

कविता के क्षेत्र में केवल एक आर्य-सत्य है : दुःख है। शेष तीन राजनीति के भीतर आते हैं।

विजय देव नारायण साही

वेदना बुरी होती है। वह व्यक्ति को व्यक्ति-बद्ध कर देती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

यादों का सुख दुख के बग़ैर नहीं होता।

कृष्ण बलदेव वैद

आत्म के दुःख कभी नहीं बाँटे जा सकते।

स्वदेश दीपक

कुछ दुख उम्र के साथ समझे जाते हैं।

स्वदेश दीपक

दुःख उठाना एक बात है और दुःख का साक्षात् करना सर्वथा भिन्न है।

श्रीनरेश मेहता

एक संपूर्ण समाप्ति के पूर्व शताधिक खंडित समाप्तियाँ चलती रहती हैं।

श्रीनरेश मेहता

सामान्य जीवन में बहुत बुरा जिस प्रकार असहनीय होता है, उसी प्रकार बहुत अच्छा होना भी कष्टदायक ही होता है।

श्रीनरेश मेहता

दुःख भाव है और करुणा स्वत्व।

श्रीनरेश मेहता

दुख गहराई और शांति देता है, मरने में मदद करता है, हलीमी सिखाता है, सुख का सतहीपन सामने लाता है। मुझे दुख का शुक्रगुज़ार होना चाहिए।

कृष्ण बलदेव वैद

ख़ुश होने से पहले बहाने ढूँढने चाहिए और ख़ुश रहना चाहिए। बाद में ये बहाने कारण बन जाते। सचमुच की ख़ुशी देने लगते।

विनोद कुमार शुक्ल

दुख एकदम मज़बूत भी बनाता है, अपने प्रति क्रुअल भी।

स्वदेश दीपक

दुःख ही एकमात्र निकष है।

श्रीनरेश मेहता

दुःख जब स्वत्व को भेद देता है तो व्यक्ति वीतरागी हो जाता है।

श्रीनरेश मेहता

दुखों के भी कई वर्ग होते हैं।

कृष्ण बलदेव वैद

दुःख और तकलीफ़ के कार्यक्रम भी यदि अच्छी तरह से प्रस्तुत होते तो तालियाँ तड़-तड़ बजतीं।

विनोद कुमार शुक्ल

गंतव्य दुःख का कारण होता। सुख का कारण है कि किसी अच्छी जगह जा रहे हैं। परंतु अच्छी जगह दुनिया में कहाँ है? जगह मतलब कहीं नहीं पहुँचना है।

विनोद कुमार शुक्ल

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