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पुत्र पर उद्धरण

किंवदंती के अनुसार जब ईसा पैदा हुए तो आकाश में सूर्य नाच उठा। पुराने झाड़-झंखाड़ सीधे हो गए और उनमें कोपलें निकल आईं। वे एक बार फिर फूलों से लद गए और उनसे निकलने वाली सुगंध चारों ओर फैल गई। प्रति नए वर्ष में जब हमारे अंतर में शिशु ईसा जन्म लेता है, उस समय हमारे भीतर होने वाले परिवर्तनों के ये प्रतीक हैं। बड़े दिनों की धूप से अभिसिक्त हमारे स्वभाव, जो कदाचित् बहुत दिनों से कोंपलविहीन थे, नया स्नेह, नई दया, नई कृपा और नई करुणा प्रगट करते हैं। जिस प्रकार ईसा का जन्म ईसाइयत का प्रारंभ था, उसी प्रकार बड़े दिन का स्वार्थहीन आनंद उस भावना का प्रारंभ है, जो आने वाले वर्ष को संचालित करेगी।

हेलेन केलर

सहस्रों माता-पिता और सैकड़ों पुत्र पत्नियाँ युग-युग में हुए। सदैव के लिए वे किसके हुए और आप किसके हैं?

बाणभट्ट

पिता स्त्री की कुमारावस्था में, पति युवावस्था में तथा पुत्र वृद्धावस्था में रक्षा करता है। स्त्री को स्वतंत्र नहीं रहना चाहिए।

वेदव्यास

एक साधारण बेटी के संग यदा-कदा पहचान को बदल देने से बेटे का निर्माण नहीं हो जाता।

गर्ट्रूड स्टाइन

देशभक्त, जननी का सच्चा पुत्र है।

जयशंकर प्रसाद

पुरुष निर्दयी है, माना, लेकिन है तो इन्हीं माताओं का अंश, क्यों माता ने पुत्र को ऐसी शिक्षा नहीं दी कि वह माता या स्त्री-जाति की पूजा करता?

प्रेमचंद

अगर मैं जानती कि मेरा बेटा एक दिन इस गणतंत्र का राष्ट्रपति बनेगा तो मैंने इसे स्कूल ज़रूर भेजा होता।

गाब्रिएल गार्सीया मार्केस

नारियों का सम्मान स्वयं उनके कारण नहीं होता, बल्कि वह उनकी संतान और पुत्र प्रसव पर निर्भर करता है।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

जैसे-जैसे हम ज्ञान पाते हैं, हम अपने पिताओं को मूर्ख समझते हैं। निस्संदेह हमारे अधिक बुद्धिमान पुत्र हमें भी ऐसा ही समझेंगे।

अलेक्ज़ेंडर पोप

संसार की कोई भी नारी ऐसे पुत्र को जन्म दे, अमर्षशून्य, उत्साहहीन, बल और पराक्रम से रहित तथा शत्रुओं का आनंद बढ़ाने वाला हो।

वेदव्यास

अपनी शक्ति के अनुसार उत्तम खाद्य पदार्थ देने, अच्छे बिछौने पर सुलाने, उबटन आदि लगाने, सदा प्रिय बोलने तथा पालन-पोषण करने और सर्वदा स्नेहपूर्ण व्यवहार के द्वारा माता-पिता पुत्र के प्रति जो उपकार करते हैं, उसका बदला सरलता से नहीं चुकाया जा सकता।

वाल्मीकि

पुत्र को सभा में अग्रिम स्थान में बैठने योग्य बनाना पिता का सबसे बड़ा उपकार होगा।

तिरुवल्लुवर

यह पुत्र-स्नेह धनी तथा निर्धन के लिए समान रूप से सर्वस्व धन है। यह चंदन तथा ख़श से भिन्न हृदय का शीतल लेप है।

शूद्रक

जो माता-पिता की आज्ञा मानता है, उनका हित चाहता है, उनके अनुकूल चलता है, तथा माता-पिता के प्रति पुत्रोचित व्यवहार करता है, वास्तव में वही पुत्र है।

वेदव्यास

गुणवानों की गणना के आरंभ में खडिया जिसका नाम गौरवपूर्वक नहीं लिखती, ऐसे पुत्र से यदि माता पुत्रवती बनती है, तो वंध्या कैसी होगी?

विष्णु शर्मा

अजात, मृत तथा मूर्ख पुत्रों में मृत और अजात पुन श्रेष्ठ हैं क्योंकि ये दोनों थोड़ा दुःख देते हैं और मूर्ख जीवन पर्यंत जलाता है।

विष्णु शर्मा

पुत्र रूप एक जन और माता रूप भूमि के मिलन से ही देश‍ की सृष्टि होती है।

दीनदयाल उपाध्याय

जिस तरह माँ अपने बेटे को हमेशा दुबला ही समझती है, उसी तरह बाप भी बेटे को हमेशा नादान समझा करता है। यह उनकी ममता है, बुरा मानने की बात नहीं है।

प्रेमचंद

जो पुत्र इस लोक में दुर्गम संकट से पार लगाए अथवा मृत्यु के पश्चात् परलोक में उद्धार करे... सब प्रकार पिता को सार दे, उसे ही विद्वानों ने वास्तव में 'पुत्र' कहा है।

वेदव्यास

माताएँ ही सब संसार को उठा सकती हैं। माताएँ ही देश को उठा या गिरा सकती हैं। माताएँ ही प्रकृति के ज्वार में उतार और प्रवाह ला सकती हैं। महापुरुष सदा ही श्रेष्ठ माताओं के पुत्र हुआ करते हैं।

रामतीर्थ

परिवर्तन—जीवन का सबलतम पुत्र।

जॉर्ज मेरेडिथ

पुत्र के लिए माताओं का हस्त-स्पर्श प्यासे के लिए जल-धारा के समान होता है।

भास

पुत्र असमर्थ हो या समर्थ, दुर्बल हो या हृष्ट-पुष्ट, माता उसका पालन करती ही है। माता के सिवा कोई दूसरा विधिपूर्वक पुत्र का पालन नहीं कर सकता।

वेदव्यास
  • संबंधित विषय : माँ

पिता के प्रति पुत्र का प्रत्युपकार लोगों से यह कहलाना ही है कि मालूम इसके पिता ने ऐसे पुत्र की प्राप्ति के लिए कैसा तप किया।

तिरुवल्लुवर

राजन्! श्रुति है कि दर्प अधर्म के अंश से उत्पन्न संपत्ति का पुत्र है। उस दर्प ने बहुत से देवताओं और असुरों को नष्ट कर दिया है।

वेदव्यास

शेरनी का शिकार बाज़ को क्या मालूम! बाँझ को पुत्र के प्रति वात्सल्य का क्या ज्ञान !

लल्लेश्वरी
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