
पुत्र को सभा में अग्रिम स्थान में बैठने योग्य बनाना पिता का सबसे बड़ा उपकार होगा।

अपनी शक्ति के अनुसार उत्तम खाद्य पदार्थ देने, अच्छे बिछौने पर सुलाने, उबटन आदि लगाने, सदा प्रिय बोलने तथा पालन-पोषण करने और सर्वदा स्नेहपूर्ण व्यवहार के द्वारा माता-पिता पुत्र के प्रति जो उपकार करते हैं, उसका बदला सरलता से नहीं चुकाया जा सकता।

ज्ञान कहीं भी मिलता हो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। परंतु अपनी ही भाषा और उसी के साहित्य को प्रधानता देना चाहिए, क्योंकि अपना, अपने देश का, अपनी जाति का उपकार और कल्याण अपनी ही भाषा के साहित्य की उन्नति से हो सकता है।

दूसरा मनुष्य जितना उपकार करे, उससे कई गुना अधिक प्रत्युपकार स्वयं उसके प्रति करना चाहिए।

उपकार्य के अभाव में उपकारी सामग्री से क्या लाभ?

किसी उपकार के प्रतिरूप किया गया उपकार कभी पूर्वकृत उपकार के समान नहीं हो सकता, यह तो उपकृत व्यक्ति की गुण-गरिमा के अनुसार ही होता है।


तृणतुल्य भी उपकार क्यों न हो, उसके फल को समझने वाले उसे ताड़ के समान मानेंगे।

तुकाराम कहते हैं कि अब मैं उपकार के लिए ही रह गया हूँ।
